प्रतीकात्मक तस्वीर: विकास चौधरी/सीएसई  
वायु

भारतीय वैज्ञानिकों ने बनाया नया सेंसर, हानिकारक नाइट्रोजन ऑक्साइड के बेहद मामूली स्तर का भी लगा सकता है पता

रिसर्च से पता चला है कि सेंसर नाइट्रोजन ऑक्साइड के बेहद कम स्तर करीब नौ भाग प्रति बिलियन (पीपीबी) का भी पता लगा सकता है

Lalit Maurya

भारतीय वैज्ञानिकों को ऐसे नए गैस सेंसर के विकास में सफलता हाथ लगी है, जो हवा में मौजूद हानिकारक नाइट्रोजन ऑक्साइड के बेहद मामूली स्तर का भी पता लगा सकता है। इतना ही नहीं वैज्ञानिकों द्वारा विकसित यह नैनो संरचना कमरे के तापमान में भी नाइट्रोजन आक्साइड के मामूली स्तर का भी पता लगा पाने में सक्षम है।

वैज्ञानिकों को भरोसा है कि यह सेंसर शहरों और औद्योगिक क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता की सटीक निगरानी में महत्वपूर्ण सुधार कर सकता है।

गौरतलब है कि यह गैस सेंसर आधुनिक तकनीक में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो पर्यावरण निगरानी से लेकर ​​औद्योगिक सुरक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में भी मददगार साबित होते हैं।

यही वजह है कि शोधकर्ता लगातार सामग्री और नई तकनीकों की मदद से गैस सेंसरों के सुधार में लगे हैं। उनका मकसद इन सेंसरों को कहीं अधिक संवेदनशील, चयनात्मक, तेज, स्थिर और विभिन्न तापमानों पर काम करने योग्य बनाना है। हालांकि यह काम जितना आसान दिखता है उससे कहीं ज्यादा चुनौतीभरा है। बता दें कि गैस सेंसर में उपयोग की जाने वाली सामग्री विशेष रूप से महत्वपूर्ण होती है क्योंकि वे सेंसर के काम करने के तरीके को बहुत हद तक प्रभावित करती है।

पिछले कुछ वर्षों में, वैज्ञानिक ऐसे विशेष गैस सेंसरों पर अध्ययन कर रहे हैं जो गैसों का पता लगाने के लिए पदार्थों के प्रतिरोध में आने वाले बदलावों की मदद से गैसों का पता लगाते हैं। इस कड़ी में विभिन्न प्रकार के धातु ऑक्साइड अर्धचालकों का उपयोग करके व्यापक रूप से अध्ययन किया गया है। हालांकि इनमें से अधिकांश सेंसरों को यह पता लगाने में परेशानी होती है कि वहां कौन से गैस मौजूद है।

इसके साथ ही वो गैस के मामूली स्तर का पता लगाने में भी अच्छे नहीं होते और अक्सर उन्हें काम करने के लिए बहुत अधिक तापमान की आवश्यकता होती है, जो रोजमर्रा में कम उपयोगी बनाता है।

कितना कारगर है यह सेंसर

यही वजह है कि मौजूदा सेंसिंग सामग्री से जुड़ी सीमाओं को ध्यान में रखते हुए सेंटर फार नैनो एण्ड साफट मैटर साइंसिज (सीईएनएस) से जुड़े शोधकर्ताओं के नेतृत्व में वैज्ञानिकों ने मिश्रित स्पाइनल जिंक फेराइट नैनोस्ट्रक्चर आधारित एक नए गैस सेंसर का विकास किया है। यह सेंसर कमरे के तापमान पर भी नाइट्रोजन ऑक्साइड के बेहद मामूली स्तर का भी पता लगा सकता है। वैज्ञानिकों द्वारा इस सेंसर को लेकर किए अध्ययन के नतीजे जर्नल कैमिकल इंजीनियरिंग में प्रकाशित हुए हैं।

यह सेंसर कितना प्रभावी है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सेंसर नाइट्रोजन ऑक्साइड के प्रति अरबवें हिस्से (पीपीबी) का भी पता लगा पाने में सक्षम है। देखा जाए तो यह गैस सेंसिंग के क्षेत्र में एक बड़ी सफलता है।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ता विष्णु जी नाथ और डॉक्टर एस अंगप्पन सहित अन्य वैज्ञानिकों की एक टीम ने सावधानीपूर्वक एक विशेष जिंक फेराइट की संरचना बनाई। इस संरचना में जिंक और आयरन आयनों की स्थिति सामान्य व्यवस्था से अलग है, जो इसे अद्वितीय बनाती है।

वैज्ञानिकों ने एक्स-रे डिफ्रेक्शन (एक्सआरडी), एक्स-रे फोटोइलेक्ट्रान स्पेक्ट्रोस्कोपी (एक्सपीएस) और फोरियर- ट्रांसफार्म इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी (एफटीआईआर) जैसी उन्नत तकनीकों की मदद से यह पता लगाया है कि नैनोकणों के संश्लेषण के दौरान कैल्सीनेशन तापमान को समायोजित करके, वे पदार्थ की संरचना में कुछ आयनों की स्थिति को नियंत्रित कर सकते हैं।

गहन परीक्षणों से पता चला कि मिश्रित स्पिनल ZnFe2O4 संरचना का उपयोग करने वाला सेंसर सामान्य परिस्थितियों में नाइट्रोजन ऑक्साइड के अणुओं का पता लगाने में उत्कृष्ट है। यह इसके बहुत कम स्तर (30 पीपीबी तक) का भी पता लगा सकता है। यह कमरे के तापमान पर काम करता है, और बेहद तेजी से प्रतिक्रिया करता है, और बहुत जल्द स्थिर हो जाता है। सेंसर विशिष्ट गैसों पर ध्यान केंद्रित करने में बहुत अच्छा है, करीब 100 चक्रों तक स्थिर रहता है, और तीन महीने से अधिक समय तक चलता है।

रिसर्च में सामने आया है कि यह सेंसर नाइट्रोजन ऑक्साइड के बेहद कम स्तर करीब नौ भाग प्रति बिलियन (पीपीबी) का भी पता लगा सकता है, जोकि अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (ईपीए) द्वारा निर्धारित 53 पीपीबी सीमा से बेहद कम है। अध्ययन में शोध दल ने वाहनों से निकलने वाली गैसों पर भी सेंसर का परीक्षण किया है, जिसे सेंसर की मदद से सटीकता से मापा जा सका है।

यह सेंसर बहुत कम ऊर्जा का उपयोग करता है, जो उसे उपयोग में सस्ता बना सकता है। ऐसे में वैज्ञानिकों को भरोसा है कि यह पर्यावरण निगरानी को अधिक किफायती और सुलभ बनाने में मदद कर सकता है।