वायु

संसद में आज: बढ़ते वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए क्लाउड-सीडिंग पर 3.2146 करोड़ रुपये खर्च

आज संसद में उठाए गए विभिन्न मुद्दों - आर्थिक वृद्धि, पर्यावरणीय चुनौतियों, ऊर्जा क्षेत्र के विकास और जल संसाधन प्रबंधन से संबंधित नवीनतम सरकारी आंकड़ों को प्रस्तुत किया गया।

Madhumita Paul, Dayanidhi

  • बंधवाड़ी लैंडफिल का लीचेट निर्धारित मानकों से अधिक पाया गया।

  • जलवायु प्रगति - सीसीपीआई 2026 में भारत को 23वां स्थान मिला।

  • ऊर्जा क्षेत्र सुधार- इंडिया एनर्जी स्टैक के पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत, 51.3 करोड़ निधि स्वीकृत।

  • भूजल स्थिति- देश में भूजल दोहन स्तर 60.63 फीसदी दर्ज, कई क्षेत्रों में स्थिति चिंताजनक।

यह रिपोर्ट आज, आठ दिसंबर, 2025 को संसद के शीतकालीन सत्र में प्रस्तुत विभिन्न मंत्रालयों की रिपोर्टों और जानकारी पर आधारित है, जिनमें आर्थिक विकास, पर्यावरण, ऊर्जा और जल संसाधन से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दे शामिल हैं।

इसमें उपभोग आधारित आर्थिक वृद्धि, कचरा प्रबंधन, जलवायु प्रदर्शन, क्लाउड सीडिंग, कार्बन उत्सर्जन में कमी, स्मॉग टावरों की प्रभावशीलता, वनाग्नि से नुकसान, ऊर्जा क्षेत्र में डिजिटल परिवर्तन, थर्मल बिजली संयंत्रों की स्थिति और भूजल संसाधनों की मौजूदा स्थिति जैसे विषयों का वर्णन किया गया है।

उपभोग आधारित वृद्धि का आर्थिक प्रभाव

लोकसभा में उठाए गए एक सवाल के जवाब में, वित्त मंत्रालय मंत्रालय में मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज बताया कि भारत की अर्थव्यवस्था में निजी उपभोग की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती जा रही है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के अनुसार, साल 2025-26 की दूसरी तिमाही में वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत रही, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि में 5.6 प्रतिशत थी। यह दर्शाता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में गति लगातार तेज हो रही है

उपभोग व्यय की वृद्धि इस गति को मजबूती देने में प्रमुख भूमिका निभा रही है। निजी अंतिम उपभोग व्यय (पीएफसीई) का जीडीपी में हिस्सा भी 62.2 प्रतिशत से बढ़कर 62.5 प्रतिशत हो गया है। उपभोग व्यय की वास्तविक वृद्धि 6.4 प्रतिशत से बढ़कर 7.9 प्रतिशत हो जाना बताता है कि लोगों की खरीद क्षमता और बाजार में मांग दोनों बढ़ रही हैं। यह स्थिति रोजगार, उत्पादन और सेवाओं के विस्तार में सकारात्मक प्रभाव डालती है, जिससे अर्थव्यवस्था एक सकारात्मक चक्र में प्रवेश करती है।

गुरुग्राम में बांधवाड़ी लैंडफिल से जहरीले कचरे का रिसाव

सदन में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में आज, केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने लोकसभा में कहा कि गुरुग्राम और फरीदाबाद के बीच स्थित बंधवाड़ी लैंडफिल पिछले 13 वर्षों से संचालित हो रहा है, जहां पर लंबे समय से जमा कचरे का ढेर एक गंभीर समस्या बन चुका है। शुरुआती दौर में यहां लगभग 44 लाख मीट्रिक टन कचरा जमा था और इसकी ऊंचाई 41 मीटर तक पहुंच गई थी।

वर्तमान में बायोमाइनिंग प्रक्रिया चल रही है, जिससे कचरे की मात्रा घटकर 14 लाख मीट्रिक टन और ऊंचाई 19 मीटर रह गई है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के द्वारा लिए गए लीचेट नमूनों की जांच में यह पाया गया कि इनकी रासायनिक गुणधर्म निर्धारित मानकों से अधिक हैं। यह स्थिति भूजल, मिट्टी और आसपास के पर्यावरण के लिए अत्यंत हानिकारक सिद्ध हो सकती है। इस समस्या का समाधान तेज गति से बायोमाइनिंग और प्रभावी कचरा प्रबंधन से ही संभव है।

जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक

सदन में जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक को लेकर उठाए गए एक सवाल के जवाब में आज, केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने लोकसभा में जर्मनवॉच द्वारा जारी क्लाइमेट चेंज परफॉर्मेंस इंडेक्स (सीसीपीआई) 2026 का हवाला दिया। जिसमें भारत को 23 वां स्थान हासिल हुआ है।

यह रैंकिंग उत्सर्जन स्तर, नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा, ऊर्जा उपयोग तथा जलवायु नीतियों के आधार पर तय की जाती है। यद्यपि भारत के प्रयास वैश्विक स्तर पर सराहनीय हैं, फिर भी इंडेक्स में रैंकिंग में उतार-चढ़ाव जलवायु नीतियों के क्रियान्वयन और ऊर्जा संक्रमण की गति को दर्शाते हैं। यह रैंक भारत के जलवायु नेतृत्व को मध्यम श्रेणी में रखता है और देश के लिए आगे और कड़े कदम उठाने की जरूरत को दर्शाता है।

वायु प्रदूषण को रोकने के लिए क्लाउड-सीडिंग

सदन में पूछे गए एक और प्रश्न के उत्तर में राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने लोकसभा में बताया कि दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए नई-नई तकनीकों पर प्रयोग किए जा रहे हैं। इसी दिशा में दिल्ली सरकार ने “क्लाउड सीडिंग” के एक पायलट प्रोजेक्ट को मंजूरी दी है। इसकी लागत 3.2146 करोड़ रुपये है और इसे आईआईटी कानपुर द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।

क्लाउड सीडिंग का उद्देश्य कृत्रिम वर्षा उत्पन्न कर प्रदूषित हवा को साफ करना है। हालांकि यह तकनीक अभी शुरुआती चरण में है, लेकिन यदि सफल रही तो यह भविष्य में प्रदूषण प्रबंधन के लिए एक वैकल्पिक आपात उपाय साबित हो सकती है। यह प्रयास दर्शाता है कि सरकार प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए नवाचार का सहारा लेने को तैयार है।

कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कमी

सदन में आज, राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह के लिए सवालों का सिलसिला जारी रहा, एक अन्य सवाल के जवाब देते हुए सिंह ने लोकसभा में कहा कि भारत ने साल 2020 में कुल 2437 मिलियन टन सीओ2-समतुल्य उत्सर्जन किया, जो 2019 की तुलना में 7.93 प्रतिशत कम है। इसका प्रमुख कारण ऊर्जा क्षेत्र में 5.7 प्रतिशत की कमी और औद्योगिक प्रक्रियाओं एवं उत्पाद उपयोग (आईपीपीयू) में 9.5 प्रतिशत की कमी है।

यह आंकड़े भारत की जलवायु नीतियों और स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ते कदमों का प्रमाण हैं। साथ ही यह कोविड-19 के दौरान औद्योगिक गतिविधियों में कमी का भी प्रभाव दिखाता है। फिर भी यह कमी भारत के लंबे समय के कार्बन-न्यूट्रल होने के संकल्प की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।

स्मॉग टावरों की प्रभावशीलता

स्मॉग टावरों के असर को लेकर सड़ में पूछे गए एक ओर प्रश्न के उत्तर में आज, केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने लोकसभा में बताया कि दिल्ली के आनंद विहार क्षेत्र में स्थापित स्मॉग टावर के प्रभाव का आकलन किया गया, जिसमें यह पाया गया कि यह अपने आसपास के 200-400 मीटर के दायरे में पीएम2.5 और पीएम10 स्तरों को लगभग 20 प्रतिशत तक कम कर सकता है।

हालांकि इसका प्रभाव सीमित क्षेत्र तक ही रहता है, फिर भी यह स्थानीय स्तर पर प्रदूषण नियंत्रण का एक सहायक साधन सिद्ध हो सकता है। लेकिन शहर-स्तरीय समाधान के लिए ऐसी संरचनाएं पर्याप्त नहीं हैं, इसके लिए बड़े और व्यापक नीति-स्तरीय कदमों की आवश्यकता है।

जंगल की आग से होने वाला नुकसान

सदन में उठाए गए एक सवाल के जवाब में आज, केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने लोकसभा में कहा कि  वन सर्वेक्षण भारत (एफएसआई) उपग्रह आधारित तकनीक से देशभर में वनाग्नि की निगरानी करता है। इसके अनुसार कुल 34,562.33 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पिछले समय में अग्निकांड से प्रभावित हुआ है।

यह आंकड़ा जलवायु परिवर्तन, सूखे, मानवीय गतिविधियों और वन प्रबंधन की चुनौतियों की ओर इशारा करता है। वनाग्नियां जैव विविधता को नुकसान पहुंचाती हैं, वायु प्रदूषण बढ़ाती हैं और ग्रामीण आजीविका को प्रभावित करती हैं। इसलिए निगरानी तंत्र के साथ-साथ रोकथाम और त्वरित प्रतिक्रिया तंत्र को और मजबूत करने की आवश्यकता है।

इंडिया एनर्जी स्टैक

ऊर्जा स्टैक को लेकर सदन में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में आज, विद्युत मंत्रालय में राज्य मंत्री श्रीपद नाइक ने कहा कि भारत ऊर्जा क्षेत्र में डिजिटल परिवर्तन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाने जा रहा है। “इंडिया एनर्जी स्टैक” (आईईएस) का उद्देश्य पूरे विद्युत क्षेत्र के लिए एक साझा डिजिटल ढांचा तैयार करना है, ताकि विभिन्न प्रणालियां आपस में सुरक्षित और मानकीकृत तरीकों से जुड़ सकें।

दिल्ली, गुजरात, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और मुंबई को इसके पायलट के लिए चुना गया है। इस परियोजना पर कुल 51.3 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत की गई है, जिनमें से 3.88 करोड़ रुपये जारी कर दिए गए हैं। वित्तीय वर्ष 2026-27 तक इसके प्रदर्शन का लक्ष्य रखा गया है। यह पहल ऊर्जा क्षेत्र में दक्षता, पारदर्शिता और आंकड़ों पर आधारित निर्णय प्रक्रिया को बढ़ाएगी।

थर्मल पावर प्लांट

सदन में उठे एक अन्य सवाल का जवाब देते हुए आज, विद्युत मंत्रालय में राज्य मंत्री श्रीपद नाइक ने जानकारी देते हुए राज्यसभा में बताया कि भारत में वर्तमान में कुल 280 थर्मल पावर प्लांट संचालित हो रहे हैं। पिछले पांच वर्षों में 27,709 मेगावाट नई तापीय क्षमता स्थापित की गई है।

यह बताता है कि भारत अभी भी ऊर्जा आवश्यकता की पूर्ति के लिए कोयला-आधारित बिजली उत्पादन पर काफी निर्भर है। हालांकि नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार तेजी से हो रहा है, लेकिन देश की बढ़ती मांग को ध्यान में रखते हुए तापीय बिजली अभी भी ऊर्जा सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बनी हुई है।

देश भर में भूजल भंडार की स्थिति

देश भर में भूजल को लेकर पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में आज, जल शक्ति मंत्रालय में राज्य मंत्री राज भूषण चौधरी ने राज्य सभा में कहा कि देश में वर्ष 2025 के आकलन के अनुसार, कुल वार्षिक भूजल पुनर्भरण 448.52 बिलियन क्यूबिक मीटर है, जबकि 407.75 बीसीएम भूजल निकालने योग्य है। पूरे देश में वार्षिक भूजल निकासी 247.22 बीसीएम है। इसके आधार पर भूजल दोहन स्तर 60.63 प्रतिशत है, जो राष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षित माना जा सकता है।

हालांकि क्षेत्रीय स्तर पर कई हिस्से अति-दोहन की श्रेणी में हैं, जहां भूजल स्तर लगातार गिर रहा है। इस स्थिति को सुधारने के लिए जल संरक्षण, वर्षा जल संचयन और माइक्रो-इरिगेशन तकनीकों के व्यापक विस्तार की आवश्यकता है।

इन सभी जानकारियों के आधार पर सरकार का कहना है कि भारत आर्थिक विकास, पर्यावरण संरक्षण और ऊर्जा सुरक्षा के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए निरंतर प्रयासरत है। बेहतर नीतियों, तकनीक और संसाधन प्रबंधन के माध्यम से देश आने वाली चुनौतियों का प्रभावी सामना कर सकता है और सतत विकास की दिशा में आगे बढ़ सकता है।