इलेस्ट्रेशन : योगेंद्र आनंद 
वायु

भारत में आवाजाही: क्या हमें निजी इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना चाहिए?

समय की मांग है कि हम अपनी सड़कों पर निजी परिवहन को कम करें और एक ऐसे दृष्टिकोण को अपनाएं जो इंसानों को एक से दूसरी जगह ले जाए न कि वाहनों को

Sunita Narain

व्यक्तिगत इलेक्ट्रिक वाहनों का क्या महत्व है? क्या टेस्ला या बीवाईडी आज हमारे सामने खड़ी जलवायु पहेली का उत्तर हैं? यह न तो कोई सुविधाजनक प्रश्न है और न ही इसका कोई आसान उत्तर है।

फिर भी, इस पर चर्चा करना महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया ग्रीन हाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन से निपटने के लिए कदम उठा रही है। कुछ देश आगे बढ़ रहे हैं और अन्य रिवर्स गियर में। ऐसी स्थिति में हम तेजी से जलवायु आपदा की ओर बढ़ रहे हैं।

इससे पिछले स्तंभ में मैंने वाहन बेड़े को विद्युतीकृत करने के महत्व पर विस्तृत चर्चा की है। इससे जीएचजी उत्सर्जन में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले तेल की खपत कम होगी। इसके अलावा मैंने शून्य-उत्सर्जन वाहनों के माध्यम से स्थानीय वायु प्रदूषण को कम करने और साथ ही साथ तेल आयात पर निर्भरता को कम करने की बात की है।

इसलिए मैं इलेक्ट्रिक वाहनों की आवश्यकता पर सवाल नहीं उठा रही हूं, मेरा सवाल है कि क्या निजी कारों को बढ़ावा देने में कोई फायदा है? चाहे वे स्वच्छ और न्यून उत्सर्जन वाले ईवी ही क्यों न हों।

इसका उत्तर इस सवाल में छुपा है, इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) आखिर क्यों? पुराने औद्योगिक देश जिन पर सबसे पहले और तेजी से कार्बन कम करने वाली अर्थव्यवस्थाओं की ओर बढ़ने का दबाव है, वे ईवी कार्यक्रम को इंटरनल कंबशन इंजन ( कारों, मोटर साइकिलों में इस्तेमाल होने वाले इंजन) वाले वाहनों के विकल्प के रूप में देख रहे हैं।

इन देशों को उम्मीद है कि इलेक्ट्रिक व्हीकल्स को अपनाने से जीएचजी उत्सर्जन कम हो जाएगा। यह बदलाव ऐसे अनिवार्य आदेशों द्वारा लाया गया है, जिनका लक्ष्य परिवर्तन सुनिश्चित करना है। 

उदाहरण के लिए यूरोप में अनिवार्य किया गया है कि 2030 तक 80 प्रतिशत नई कारें शून्य-उत्सर्जन वाहन होंगे, जिसे 2035 तक बढ़ाकर 100 प्रतिशत किया जाना चाहिए।

बाइडेन  के कार्यकाल के दौरान अमेरिका ने 2030 तक 50 प्रतिशत नए वाहन पंजीकरण इलेक्ट्रिक करने का लक्ष्य रखा था। इन देशों में का मुख्य उद्देश्य परिवहन क्षेत्र को डीकार्बोनाइज करने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग करना है और यह तभी संभव है जब आईसी इंजन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जाए।

चलिए, यूरोप की बात करते हैं जहां पिछले तीन दशकों में परिवहन क्षेत्र से जीएचजी उत्सर्जन में वृद्धि हुई है। यूरोप में सड़क परिवहन उत्सर्जन के 60 प्रतिशत भाग के लिए निजी कारें जिम्मेदार हैं। इसलिए मुख्य उद्देश्य इस क्षेत्र को कार्बन मुक्त करना है, लेकिन अब यूरोप को वाहन आपूर्ति श्रृंखला की भू-राजनीति के सबसे बड़े खिलाड़ी चीन से चुनौती मिल रही है।

ऐसे में लक्ष्य और आगे की रूपरेखा बनाने वाला आदेश ही यह निर्धारित करेगा कि आगे का रास्ता कैसा होगा।

ऐसे में अगला बड़ा सवाल यह है कि क्या यूरोपीय देशों को इस परिवर्तन के लिए निजी कार मालिकों को सब्सिडी देनी चाहिए या फिर उस पैसे से परिवहन को कार्बन मुक्त करने और लोगों को निजी से सार्वजनिक साधनों की ओर ले जाने पर खर्च करना बेहतर होगा? अगर अमीर देश दोनों काम एक साथ कर सकते हैं तो फिर बहस करने का कोई कारण नहीं रह जाता।

हालांकि यह सवाल हमारे और आसपास के देशों के लिए बहुत प्रासंगिक है, क्योंकि हम दोनों काम एक साथ नहीं कर सकते। निजी कारें चाहे वे डीजल हों या पेट्रोल की उन पर पहले से ही सब्सिडी दी जा रही है और इससे सरकारी खजाने पर काफी बोझ पड़ता है।

ये सब्सिडी स्पष्ट नहीं दिखती और इन पर चर्चा नहीं होती है लेकिन अगर आप मेरे जैसे कार मालिकों द्वारा चुकाए जाने वाले रोड टैक्स को देखें तो आप पाएंगे कि यह किसी भी बस यात्री द्वारा चुकाए जाने वाले टैक्स से कम है। निजी कारें सड़क पर 90 प्रतिशत या उससे अधिक जगह घेरती हैं।

इसके साथ ही सड़कों, फ्लाईओवर और निजी आवागमन के लिए अन्य ढांचे बनाने की भारी लागत निजी कार मालिकों के लिए बहुत बड़ी सब्सिडी के बराबर है। इसलिए हमारे डीकार्बोनाइजेशन और वायु प्रदूषण में कमी के उद्देश्यों की यह मांग है कि हम अपनी सड़कों पर निजी परिवहन के साधनों को कम करें और ऐसे दृष्टिकोण को अपनाएं जो लोगों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने पर केंद्रित हो न कि वाहनों को। 

इसका मतलब है कि हमारे देश में निजी ईवी केवल तभी काम करेंगे जब इस दिशा में कोई अनिवार्य आदेश होगा। कारों की संख्या में वृद्धि, भले ही वे इलेक्ट्रिक क्यों न हों वायु प्रदूषण या जलवायु उद्देश्यों के लिए काम नहीं करेगा। 

अच्छी खबर यह है कि भारत सरकार आंखें मूंदकर इलेक्ट्रिक कारों के पीछे नहीं पड़ी हैं। हमने बसों जैसे सार्वजनिक परिवहन या तिपहिया जैसे पैराट्रांजिट के लिए इस्तेमाल होने वाले ईवी को सब्सिडी देने का विकल्प चुना है।

यहां तक कि अगर निजी वाहनों पर सब्सिडी लागू होती भी है तो वह दोपहिया वाहनों पर केंद्रित होती हैं जो सड़क पर जगह का कुशल उपयोग करते हैं। यह असली “गेम चेंजर” है।

अगर हम सार्वजनिक परिवहन को व्यापक और स्वच्छ बनाते हैं तो हमें स्वच्छ परिवहन के दोहरे-तिहरे लाभ मिलेंगे लेकिन यह अभी भी पर्याप्त नहीं है।

अब हमें एक स्पष्ट नीति/आदेश की आवश्यकता है जिससे यह सुनिश्चित हो कि यह परिवर्तन आवश्यक अंतर लाए। इसलिए सबसे पहले वाहनों में हर अत्यधिक प्रदूषणकारी हिस्से (तिपहिया वाहनों से लेकर टैक्सियों और बसों तक) को समयबद्ध आदेश के माध्यम से इलेक्ट्रिक में परिवर्तन की अनिवार्यता होनी चाहिए।

यह आदेश न केवल नए पंजीकरणों पर लागू होना चाहिए बल्कि पुराने, अधिक प्रदूषणकारी वाहनों को बदलने पर भी लागू होना चाहिए।

दूसरा, सार्वजनिक परिवहन के लिए प्रोत्साहन के साथ-साथ पार्किंग शुल्क जैसे उपायों के माध्यम से निजी वाहन के उपयोग पर प्रतिबंध होना चाहिए। जब निजी कारों के बदले में कम कार्बन उत्सर्जन वाले विकल्पों को अपनाने की आवश्यकता है जैसे, पैदल चलने से लेकर साइकिल चलाने, बसों, ट्राम और मेट्रो।

तभी हम अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर सकते हैं। हमारा विद्युतीकरण एजेंडा एक गतिशीलता परिवर्तन एजेंडा है और इससे कम हमें मंजूर नहीं होना चाहिए।

डाउन टू अर्थ की संपादक सुनीता नारायण का लेख उस पहल का हिस्सा है, जो डाउन टू अर्थ ने देश के 50 शहरों की जमीनी रिपोर्ट्स जुटाकर यह जानने का प्रयास किया था कि आखिर शहर के लोग रोजमर्रा की आवाजाही के लिए किस साधन का इस्तेमाल कर रहे हैं और ये साधन शहर के वायु प्रदूषण में कितनी हिस्सेदारी निभाते हैं। आप यह पूरी सीरीज पढ़ने के लिए यहां क्लिक कर सकते हैं।