बनारस की सड़कों पर जाम ही जाम दिखता है। फोटो: नीतू सिंह 
वायु

भारत में आवाजाही: 'टोटो' के हवाले वाराणसी, तांगों व रिक्शा के वक्त भी नहीं लगता था इतना जाम

शहर में रोजाना एक से डेढ़ लाख पर्यटक आते हैं। वहीं इनकी 10 से 20 हजार गाड़ियां होती हैं

Neetu Singh

मूलरूप से मिर्जापुर के रहने वाले हरिश्चन्द्र बीते 13 वर्षों से बनारस में रह रहे हैं। कहते हैं,
“पहले अस्सी, राज घाट, रथ यात्रा, मंडुआडीह यहां जाम नहीं लगता था। लेकिन पांच छह साल से इधर भी खूब जाम लगने लगा है। बनारस पैदल और पैडल रिक्शा वाला शहर था लेकिन जबसे शहर में टोटो (ई-रिक्शा) आया है तबसे पूरे शहर में टोटो ही टोटो दिख रहे हैं। अभी तो प्रशासन ने इन ई-रिक्शों के रूट निर्धारित कर दिए हैं। मुझे लगता है इस छोटे से शहर में हजारों की संख्या में टोटो होंगे।”

पतली-सकरी गलियों वाला बनारस जो हमेशा से ठहराव का शहर था अब यहां भागमभाग दिखती है। शहर के सबसे ज्यादा भीड़भाड़ और जाम वाले क्षेत्र गदौलिया के लिए डाउन टू अर्थ संवाददाता ने कैंट चौराहे से ऑटो पकड़ा। यहां गदौलिया चौराहे के लिए अब सीधे कोई ऑटो नहीं जाता। ऑटो वाले ने नई सड़क चौराहे पर उतार दिया, जहां से करीब डेढ़ किलोमीटर पैदल चलकर आरती वाले घाट पर संवाददाता पहुंची। कैंट से गदौलिया घाट का पांच किलोमीटर का सफर 40 से 45 मिनट में पूरा हुआ। शाम के करीब सात बजे आरती के वक़्त पैदल चलने वालों की भी भीड़ ऐसी थी कि उसमें चलना मुश्किल हो रहा था। हर कोई गर्मी और भीड़ से जूझ रहा था, लेकिन श्रध्दा ऐसी कि सभी भीड़ को चीरते हुए दशाश्वमेध घाट की तरफ बढ़े जा रहे थे।  

बनारस सहायक पुलिस आयुक्त, यातायात अंजनी कुमार राय ने डाउन टू अर्थ से बात करते हुए कहा, “जबसे यहां काशी विश्वनाथ मंदिर का कारीडोर बना है तबसे यहां दर्शनार्थी लाखों की संख्या में आ रहे हैं। बढ़ती भीड़ को देखते हुए कारीडोर के आस-पास का जो भी इलाका है उसको नो व्हीकल जोन घोषित कर दिया है। उधर चार पहिया वाहन और सवारी गाड़ी नहीं जाती। सभी वाहनों को एक डेढ़ किलोमीटर पहले ही रोक दिया जाता है। यहां से मंदिर प्रशासन कुछ गाड़ियां चलवाता है या जो ईलेक्ट्रानिक वाहन है उससे लोग जाते हैं। ज्यादातर लोग सकरी गलियों से होते हुए पैदल ही जाते हैं।”

उन्होंने आगे बताया, “शहर में रोजाना एक से डेढ़ लाख पर्यटक आते हैं। वहीं इनकी 10 से 20 हजार गाड़ियां होती हैं। हालांकि ये गाड़ियां आसपास जिलों से होती हैं जो दर्शन करके शाम को वापस हो जाती हैं। कुछ विशेष मौकों पर यह संख्या काफी बढ़ जाती है उस समय ट्रैफिक को कंट्रोल करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। जैसे महाकुम्भ में यह दिक्कत आयी थी। उस दौरान शहर के बाहर 22-23 जगह पर पार्किंग बनाकर बड़े वाहन रोक दिए गये थे। शहर के अन्दर लोग छोटे वाहनों से अन्दर आये थे। तो हमारे यहां व्यवस्था बहुत अच्छी रही। पूरा कुंभ बहुत बढ़िया से निपट गया। कहीं जाम वाम नहीं लगा।”

क्या शहरों के अन्दर भी पार्किंग के इंतजाम है? इस सवाल के जवाब में अंजनी कुमार राय ने कहा, “शहर के अन्दर सीमित संसाधन है तो यहां नई पार्किंग बनाना संभव नहीं है। लेकिन फिर भी सरकार ने नगर निगम ने पांच छह पार्किंग बनवाई हैं। कुछ अंडरग्राउंड पार्किंग हैं। इसके अलावा जो स्कूल, कॉलेज हैं भीड़ बढ़ने पर उन्हें अधिकृत कर पार्किंग कुछ समय के लिए बना लेते हैं।”

मौजूदा वक़्त में रोजाना शहर में कितनी गाड़ियां सड़क पर चलती हैं? इस सवाल के जवाब में अंजनी कुमार राय ने कहा, “आंकड़ा बता पाना तो मुश्किल है लेकिन इस समय शहर में बहुत गाड़ियाँ हैं। क्योंकि यह शहर पुराना बिजनेस का केंद्र रहा है। निजी वाहन भी हर शहर की तरह यहां भी तेजी से बढ़े हैं। पर हमारी पूरी कोशिश रहती है कि शहर में यातायात सुगमता से चले।”

वैसे वाहन पोर्टल पर अबतक बनारस में 15,67,116 वाहन रजिस्टर्ड हैं। साल 2025 में यानि छह महीने के अन्दर वाहन पोर्टल पर बनारस में कुल 48690 वाहन रजिस्टर्ड हुए हैं। जिसमें मोटर  साईकिल/स्कूटर की संख्या 35,226 है। साल 2024 में मोटर साइकिल/स्कूटर 72,030 रजिस्टर्ड हुए।  साल 2023 में यह संख्या 64,519 थी और 2022 में 60,119 थी। साल 2024 में दो पहिया वाहन (एनटी) 76,695 रजिस्टर्ड हुए, जबकि साल 2024 में रजिस्टर्ड ई-रिक्शा(पी) 5,752 इतने थे। वहीं 2023 में 7,238 और 2022 में 4,026 जबकि साल 2025 में 12 जून तक यह संख्या 223 है।

जाम से बचने के लिए शहर में क्या इंतजाम किये गये हैं? इस पर अंजनी कुमार ने कहा, “जो श्रद्धालु बसों से आते हैं उनकी बसें शहर के बाहर बने स्टेंड पर ही रुकवा दी जाती हैं। शहर के अन्दर ये लोग छोटे वाहनों से यात्रा करते हैं। चार पहिया वाहनों के रूट शहर में जगह-जगह प्रतिबंधित किये गये हैं। यहां के स्थानीय लोगों को तो पता है कि किन रास्तों से जाना और कौन से रास्ते वाहनों के लिए प्रतिबंधित हैं। निजी वाहनों को पार्किंग में खड़ा कर दर्शनार्थियों को सार्वजनिक वाहन का उपयोग करने या दो पहिया का इस्तेमाल करने का सुझाव देते हैं।”

उन्होंने आगे बताया, “अभी रेलवे स्टेशन कैंट से सीधे मन्दिर तक के लिए रोपवे बन रहा है। जल्द ही प्रधानमन्त्री इसका उद्घाटन करेंगे इससे यात्रियों को आवाजाही करने के लिए काफी आसानी होगी। सरकार की तरफ से एक सर्वे भी चल रहा है कि हम शहर में निजी वाहनों की संख्या को कैसे कम करें और सार्वजनिक वाहन साथ ही इलेक्ट्रानिक वाहन का उपयोग लोग ज़्यादा से ज़्यादा करें इसके लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।”

रिक्शा और तांगा का शहर था बनारस

लेखक एवं पत्रकार सुरेश प्रताप सिंह ने बताया, “पहले बनारस रिक्शा और तांगा का शहर था। हर चौराहे पर 40-50 रिक्शे, तांगे रहते थे। गोदौलिया चौराहे पर एक तांगा स्टेंड था अब उसे तोड़कर बाइक स्टेंड बना दिए हैं जिसमें एक घंटे का 20 रुपए लेते हैं। शहर में अब तांगा बिलकुल खतम हो गया है। दूसरा 20-25 साल पहले शहर में ऑटो आ गया। यह लोगों को सुविधाजनक और सस्ता लगा। समय भी कम लगता था। जिस वजह से धीरे-धीरे रिक्शे भी खतम हो गये। बचे हुए रिक्शों की संख्या पहले की तुलना में अब न के बराबर बची है।”

सुरेश प्रताप के मुताबिक गोदौलिया चौराहा पहुंचने के तीन चार रास्ते हैं पर किसी भी रास्ते से जाने पर आपको चौराहे से 500 मीटर से डेढ़ किलोमीटर तक पहले ही छोड़ा जाएगा। यहां से मन्दिर और घाट पर नौजवान लोग तो पैदल चले जाते हैं लेकिन बुजुर्ग लोगों को बहुत असुविधा होती है। जो अन्दर वाहन चलते हैं वो पर्याप्त नहीं हैं। इस इलाके के जो स्थानीय निवासी हैं उन्हें अस्पताल और स्कूल जाते वक़्त भीड़ की वजह से बहुत असुविधा होती है। महिलाओं की डिलीवरी के वक़्त और मुश्किलें बढ़ जाती हैं।

पहले गोदौलिया चौराहे होते हुए बीएएचयू के अन्दर तक सिटी बस कैंट से जाती थी जो मदनपुरा एरिया से होकर गुजरती थी। एक बस सारनाथ से सीधे लंका गेट तक जाती थी उसे भी बंद कर दिया गया। सुरेश प्रताप का कहना है कि अगर बनारस में मिनी बसें भी चला दी जाएँ तो यहां यातायत की समस्या दूर हो सकती है। ये मिनी बसें हर दस मिनट पर एक इनर सर्किल में और एक आउटर सर्किल में चलाई जाए तो भी यात्रियों की मुश्किलें आसान हो जाएंगी।

इन चौराहों पर रहता है सबसे ज्यादा जाम

शहर के मुख्य चौराहे गोदौलिया, मैदागिन, लौहराबीग, बेनियाबाग, चौका घाट, कचहरी और मेन सिटी एरिया में बहुत जाम रहता है। जिन जगहों पर निर्माण कार्य चल रहा है वहां भी खूब जाम रहता है।  बनारस तो गलियों का बाजार है। यहां कई गलियां हैं जहां होल-सोल में सामान बिकता है, जहां से पूर्वांचल के छोटे-मोटे व्यापारी सामान होल सेल में ले जाते हैं।

सुरेश प्रताप ने कहा, “अभी शहर की आबादी 20 से 25 लाख हो गयी। बनारस घूमने हर दिन दो लाख लोग आते हैं। सड़क पर भीड़ और बाइक दोनों बढ़ी हैं। आबादी बढ़ने के साथ यातायात की कोई व्यवस्था सोची नहीं गई, जिस वजह से अब शहर मुश्किलों से जूझ रहा है।”

पर्यटन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक बनारस में साल 2025  के शुरुआती तीन महीने (जनवरी से मार्च) में घरेलू पर्यटकों की संख्या में पिछले साल के मुकाबले 77.59 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। वहीं विदेशी पर्यटकों की संख्या में 34 प्रतिशत वृद्धि हुई है, जबकि साल 2024  में जनवरी से मार्च तक के बीच 2.56 करोड़ पर्यटक काशी आये थे। इस साल के पहले तीन महीनों में यह संख्या बढ़कर 11.46 करोड़ हो गई। विदेशी पर्यटकों की संख्या भी जो 2024 में 98,961 थी वो साल 2025 के शुरुआती तीन महीने में बढ़कर 1.5 लाख हो गई। यानी सिर्फ तीन महीनों में 50 प्रतिशत से ज़्यादा की बढ़ोतरी हुई। घरेलू पर्यटकों की संख्या में भी एक साल के अंदर लगभग 8.89 करोड़ की बढ़ोतरी हुई।

बनारस नगर निगम के जनसंपर्क अधिकारी संदीप श्रीवास्तव ने डाउन टू अर्थ से बात करते हुए कहा, “काशी में कॉरीडोर बनने के बाद यहां फ्लोटिंग पॉपुलेशन (अस्थायी आबादी) की संख्या काफी तेजी से बढ़ी है। ये  संख्या करोड़ों में पहुंची है। कोविड के बाद यहां टूरिज्म काफी तेजी से बढ़ा है। जिसे नियंत्रित करने के लिए यातायात पुलिस, नगर निगम और वाराणसी विकास प्राधिकरण द्वारा संयुक्त रूप से मिलकर काम किया जा रहा है। शहर में जगह-जगह सिग्नल पर जो ट्रैफिक लाइट्स लगी हुई हैं उसे यातायात विभाग द्वारा निरिक्षण और परिक्षण करके कई कट नए बनाये गए और कई कट बंद किये गए हैं।”

उन्होंने आगे बताया, “ट्रैफिक मैनेजमेंट के लिए हमने प्लानिंग भी की है। एक इंटरनेशनल लेवल की संस्था का चयन भी किया गया है जिनके सहयोग से यहां काम शुरू किया गया है। कुछ स्थान हैं जैसे गदौलिया, ज्ञानवापी जहां पर काशी विश्वनाथ मंदिर का गेट है। कालभैरव मंदिर, संकटमोचन मंदिर, दुर्गा जी के मन्दिर हैं यहां कुछ यहां व्यावसायिक प्रतिष्ठान हैं। गल्ला मंडी पूर्वांचल की सबसे बड़ी गल्ला मंडी है। सप्तसागर एक दवा मंडी है, काशीपुर मसालों की मंडी है। यहां पांच-छह यूनिवर्सिटीज हैं और कई हॉस्पिटल्स हैं इसलिए भीड़ का बढ़ना स्वाभाविक है।”

संदीप श्रीवास्तव ने हर दिन शहर में आने वाले पर्यटकों की संख्या के बारे में बताया। उन्होंने कहा, “इस समय पर्यटन विभाग द्वारा और काशी विश्वनाथ  मंदिर की जो फुटेज है उससे हमने जो एनालिसिस किया है उस हिसाब से प्रतिदिन पांच-छह लाख फ्लोटिंग पॉपुलेशन बनारस में है। वाराणसी शहर की जो पॉपुलेशन है वो 22 से 25 लाख के बीच में है।  कभी पर्व जैसे महाशिवरात्रि हो गया दीपावली हो गया तो ऐसे समय में करोड़ों में भी यह संख्या पहुँच जाती है।” 

दुनिया के तीन शहरों में शामिल

दुनिया में भीड़ प्रबंधन के लिए टोयोटा मोबिलिटी फाउंडेशन ने तीन शहरों को चुना है: वाराणसी (भारत), वेनिस (इटली) और डेट्रॉइट (अमेरिका)। इनमें वाराणसी एशिया का इकलौता शहर है जिसे इस काम के लिए चुना गया है। टोयोटा मोबेलिटी फाउंडेशन ने वाराणसी में भीड़ प्रबंधन के लिए प्रथम चरण में अन्तराष्ट्रीय स्तर की 10 उच्च स्तरीय कम्पनियों का चयन किया है जिस पर संस्था 3 मिलियन डालर (करीब 26 करोड़ रुपए) खर्च करेगी।

बनारस में जिन 10 कम्पनियों का चयन किया गया है  उनमें सिटीडेटा इंक, फैक्टल एनालीटिक्स लिमिटेड, ग्रेमैटिक्स, आर्केडिश, इंटपिक्सेल लैब्स प्राइवेट लिमिटेड, प्रमेय कंसल्टिंग प्राइवेट लिमिटेड, स्मार्टविज लिमिटेड, स्टीयर डेविस एंड ग्लीव लिमिटेड, द अर्बनाइजर और टियामी नेटवर्क्स हैं। इन

चयनित 10 फर्मों के द्वारा सिटी फ्लो,  डेटा प्लेटफार्म,  मानव केन्द्रित डिजायन, सार्वजनिक बुनियादी  ढांचे, रियल टाइम कनेक्टिविटी, सुरक्षा, रियल टाइम निगरानी, स्थानिक विश्लेषण, स्थलों की सुरक्षा, स्मार्ट और अधिक दक्षतापूर्ण वातावरण, नागरिकों के सूचनाओं का आदान प्रदान किया जाएगा। साथ ही नयी चाल नाम का डाटा प्रबन्धन, थ्रीडी लाइनर सेंसर, मशीन लर्निंग, पूर्वानुमान और पूर्वाकलन डेटा तैयार करना और आने-जाने वाली भीड़ का बेहतर अंदाजा लगाना, रियल टाइम डिजिटल नेविगेशन तथा बड़े स्तर पर पैदल यात्रियों और वाहनों के आने-जाने पर निगरानी एवं प्रबधंन इत्यादि का कार्य किया जाएगा।

उधर वाराणसी में देश का पहला शहरी सार्वजनिक परिवहन रोपवे बनाया जा रहा है। इसके पांच में से तीन स्टेशन लगभग बनकर तैयार हो चुके हैं। जल्द ही ट्रायल रन शुरू होने वाले हैं। दावा है कि इस रोप वे से शहर के जाम में भारी कमी आएगी।

ऑटो चालक भी हैं परेशान

जुबैर खान बागी जो उत्तरप्रदेश चालक मंच के अध्यक्ष हैं। इस मच से शहर के लगभग 1300 वाहन चालक जुड़े हुए हैं। जुबैर खान ने डाउन टू अर्थ से बात करते हुए बताया, “बनारस गलियों का शहर है। यहां छोटी गाड़ियां ही एक तरह से यातायात का लाइफलाइन रही हैं। अभी यहां बेहिसाब गाड़ियाँ हो गयी हैं। प्रशासन ने बारकोट जारी किया है। वाहनों को दो किलोमीटर, तीन-चार किलोमीटर के हिसाब से जारी किया है। जिससे यात्रियों और चालकों दोनों को दिक्कत है।”

जुबैर के मुताबिक़ बनारस में पार्किंग नाम की कोई जगह अब बची ही नहीं है लेकिन रोजाना पार्किंग के नाम पर लाखों रूपये वसूले जाते हैं। बनारस का कोई ऐसा चौराहा नहीं है जिस चौराहे पर वसूली न होती हो। यहां ऑटो और ई-रिक्शा के लिए जो व्यवस्था होनी चाहिए वो नहीं है। एक तरफ पार्किंग का पैसा वसूला जाता है वहीं दूसरी तरफ नो पार्किंग जोन के नाम पर चालान कट जाता है। बनारस में एक गाड़ी पर महीने में औसतन 15 से 20 हजार रूपये का चालन कट जाता है। पूरे प्रदेश में अगर कहीं सबसे बेकार व्यवस्था है तो वह बनारस में है। हर चौराहे को इन्होंने बंद करके रखा है। न कहीं पार्किंग, न कोई नियम और न सिस्टम बस किसी तरह से चल रहा है।”

उन्होंने शहर के बदलते हालातों के बारे में कहा, “लॉकडाउन के बाद पूरा शहर बदला है। लोगों का कारोबार बंद हुआ। तो उन्होंने अपने परिवार को चलाने के लिए ऑटो या ई-रिक्शा फाईनेंस कराया इससे गाड़ियाँ ज्यादा हो गईं। सितंबर 2024 से जोन वाइज गाड़ी चलाने की अनुमति मिली है इस नियम से मुश्किलें और बढ़ी हैं। कागज पर इनकी 24 जगहों पर 52 पार्किंग हैं लेकिन जमीन पर आपको हकीकत कुछ और ही देखने को मिलेगी। स्मार्ट सिटी की बजाए अब यह परेशान सिटी बन गया है।”

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा दर्ज किये गये आंकड़ों के अनुसार वाराणसी में रजिस्टर्ड मोटर वाहनों की संख्या अप्रैल 2025 में 10,657 यूनिट था। वहीं मार्च 2025 में यह संख्या 9,346 यूनिट थी। जबकि जनवरी 2006 से अप्रैल 2025 तक का औसत 5,494 यूनिट रहा। यह आंकड़ा नवंबर 2024 में अब तक के सबसे उच्च स्तर 15,884 यूनिट पर पहुंचा था, जबकि सबसे कम संख्या मई 2020 में 312 यूनिट दर्ज की गई थी।

बनारस के महमूरगंज शिवाजी नगर कॉलोनी में रहने वाले रवि शेखर पिछले कुछ सालों से हरित सफर अभियान चला रहे हैं। इस अभियान की कोशिश है कि उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड जैसे राज्यों में मोबिलिटी एक अहम सवाल बने। हरित सफर क्लीन इनर्जी बेस्ड लास्ट माईल्स कनेक्टिविटी वाली पब्लिक ट्रांसपोर्ट की वकालत कर रहा है। तो उसमें यह समझना ज़रूरी है कि इसमें इनक्लूजन का जो प्रिंसिपल फ़ॉलो किया जाना चाहिए कि सभी वर्गों, सभी जातियों, सभी धर्मों और सभी तरीके की पहचान रखने वाले लोगों को इसमें एक बराबर उपलब्धता मिल पाए तभी पब्लिक ट्रांसपोर्ट का अपना जो एक इंटेंट है उसे हासिल किया जा सकेगा।

रवि शेखर बनारस शहर का मिज़ाज बताते हैं, “बनारस काफी लंबे समय तक एक रुका हुआ शहर रहा है। यहां सुबह 10 बजे किसी काम धंधे के लिए निकलना और शाम को छह बजे वापस घर पहुंचने वाले स्वभाव वाला शहर नहीं है। लेकिन पिछले दस-पंद्रह सालों में जो परिवर्तन हुए हैं उन बदलावों ने इस शहर को बहुत अलग बना दिया है। आज से 15 साल पहले आपके पास कोई साधन नहीं होता था तो भी आपको कोई मलाल नहीं रहता था क्योंकि हर रास्ते पर कई तरीके के साधन थे। ये वो शहर है जो काफी ज़्यादा तीन पहिया गाड़ियों पर निर्भर था चाहे वो पैडल रिक्शे हों या फिर ऑटो रिक्शे। इन दोनों साधनों पर बहुत लंबे समय तक यह शहर निर्भर रहा और लोगों की आवाजाही की जितनी ज़रूरतें थी वो उससे पूरी होती थी।”

उन्होंने आगे कहा, “आप यहां के बाज़ारों को देखिए इनकी जो बनावट है वो पैदल या साईकिल से चलने के लिहाज से बनाया गया है। आप देखिये जो नई सड़क का बाज़ार है उससे लगी हुई जो दालमंडी की बाज़ार है, चौक का बाजार, विश्वनाथ के आसपास का बाजार देख लीजिये ये सारे इलाके पैदल चलने वाले और साइकिल से चलने वाले लोगों से भरे पड़े रहते थे। एक समय यहां रिक्शे से आना-जाना अपने आप में एक लग्जरी हुआ करता था।”
अपनी जरूरतों के अनुसार छोटे-मोटे साधन वाला बनारस शहर यहां के पर्यावरण को नियंत्रित रखने में लंबे समय तक बहुत बड़ा योगदान रहा है। क्योंकि तब लोग साइकिल, पैडल रिक्शे और पैदल चल रहे थे। लेकिन पिछले दस पंद्रह सालों में शहर में तीर्थ का जो नेचर बदला और वो पर्यटन की तरफ शिफ्ट हुआ है।

रवि ने बताया, “पिछले कई दशकों में शहर में पब्लिक ट्रांसपोर्ट डेवलप हुआ ही नहीं। शहर के अंदर जो सिटी बसें चला करती थीं एक समय में वो धीरे-धीरे बंद हो चुकी हैं। धीरे-धीरे दुपहिये वाहन बढ़ने शुरू हो गये। पिछले दस वर्षों की तुलना में अगर हम सोचे कि अब तीन चार किलोमीटर चलना है तो शहर में पहले जो पंद्रह बीस मिनट लगा करते थे अब शायद दो घंटे भी लग सकते हैं। इतने समय में भी पहुंच जाएं तो बड़ी बात है।”

रवि के अनुसार पूरे इंतजाम के साथ शहर को पिछले दस सालों में तीर्थ से पर्यटन में बदला गया है। उस इंतजाम में सरकार यह भूल गई कि उन्हें लोगों को एक जगह से दूसरे जगह तक पहुंचाने के लिए साधन भी देने पड़ेंगे। पिछले कुछ वर्षों से क्लाईमेंट एजेंडा एक बड़े कैम्पेन का पार्ट रहा है। जिसमें हम इलेक्ट्रिक व्हीकल पॉलिसी की मांग कर रहे थे। राज्य सरकार की तरफ से साल 2019 में वो पॉलिसी आई और इसके बाद शहर में इलेक्ट्रिक बसें चल रही हैं। लेकिन जो इलेक्ट्रिक बसें चल रही हैं वो भी अपने आप में एक जगह से दूसरे जगह पहुंचने में संघर्ष कर रही हैं। जो बसें एक जगह से दूसरे गंतव्य तक पहुंचने में अगर उसका औसत समय एक घंटे डेढ़ घंटे का होता होगा तो अब वो कई गुना ज़्यादा समय लग रहा है वो इसलिए क्योंकि शहर में बसों के लिए जगह ही नहीं है।”

यह स्टोरी भारत में आवाजाही सीरीज का हिस्सा है। जो भारत में आवाजाही और वायु प्रदूषण के बीच संबंध स्थापित करती हैं। सीरीज की अन्य स्टोरीज पढ़ने के लिए क्लिक करें