कोच्चि मेट्रो के अंदर। मेट्रो संचालन का आधा हिस्सा सौर ऊर्जा पर चलता है। फोटो : केए श्रेया 
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भारत में आवाजाही: कोच्चि में शुरुआत अच्छी, लेकिन कुछ व्यावहारिक चुनौतियां बाकी

मेट्रो लाइनें बढ़ाना, सस्ते किराए सुनिश्चित करना और लास्ट मील तक पहुंच में सुधार की मांग करते हैं लोग

KA Shreya

कोच्चि निवासी एलेक्स एक आईटी प्रोफेशनल हैं और काम के सिलसिले में अक्सर सफर करते हैं। उनके लिए शहर में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी ने कई मायनों में खासकर आर्थिक रूप से बड़ा अंतर पैदा किया है। उन्होंने कहा, “कोविड से पहले मैं एयरपोर्ट जाने के लिए टैक्सी (उबर) पर 400–500 रुपए खर्च करता था। कोविड के बाद वही किराया 1,500 तक पहुंच गया। लेकिन अब मैं इलेक्ट्रिक वाहन से मात्र 150 रुपए में एयरपोर्ट पहुंच जाता हूं।”

ऐसे यात्रियों के लिए इलेक्ट्रिक फीडर बसें यात्रा को कहीं अधिक आसान और सुविधाजनक बना रही हैं। ये बसें नियमित अंतराल पर एयरपोर्ट से सीधे मेट्रो स्टेशन तक चलती हैं, जहां से एलेक्स मेट्रो रेल पकड़ते हैं और फिर अपने घर तक पहुंचने के लिए प्राइवेट बस या ऑटो लेते हैं।

यह पहल कोच्चि के उस प्रयास का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य शहर के ई-मोबिलिटी तंत्र को मजबूत करना और एकीकृत शहरी परिवहन नेटवर्क की दिशा में आगे बढ़ना है।

केरल मेट्रो रेल लिमिटेड के अपर महाप्रबंधक (शहरी परिवहन) गोकुल टी. जी. ने डाउन टू अर्थ से बातचीत में कहा: “चूंकि शहर समुद्र के काफी करीब है, इसलिए आपको यह भी सोचना चाहिए कि समुद्र का स्तर बढ़ने का आप पर क्या प्रभाव पड़ रहा है, इसके लिए आपको किस प्रकार का बुनियादी ढांचा विकसित करना होगा और शहर के लिए क्या योजना बनानी चाहिए। यह कोई किताबों में पढ़ा हुआ या काल्पनिक विषय नहीं है — यह पूरी तरह से वास्तविक है।”

कोच्चि केरल का एक ऐतिहासिक बंदरगाह शहर है, जहां शहरी बाढ़ व समुद्र के स्तर में वृद्धि एक बड़ी परेशानी बन गया है। कई अध्ययनों का अनुमान है कि वर्ष 2100 तक समुद्र का स्तर काफी बढ़ सकता है।

इसलिए, यह बदलाव केवल कार्बन उत्सर्जन में कटौती तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य जलवायु-संवेदनशील ढांचा तैयार करना और सतत आवाजाही प्रणाली की ओर बढ़ना है। यानी, जहां सड़कों पर कम वाहन हों और पर्यावरण-अनुकूल परिवहन सेवाएं हों।

कोचीन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा दुनिया के पहले हवाई अड्डों में से एक है, जो पूरी तरह सौर ऊर्जा से संचालित होता है। यह 2015 से सौर ऊर्जा पर कार्यरत है और अब तक 350 मिलियन यूनिट सौर ऊर्जा का उत्पादन कर चुका है, जिससे लगभग 2,35,000 मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन में कटौती हुई है।

इसी तरह, कोच्चि मेट्रो रेल लिमिटेड की मेट्रो ट्रेनें लगभग 55 प्रतिशत सौर ऊर्जा से संचालित होती हैं। कंपनी अपने इलेक्ट्रिक बेड़े के कार्बन उत्सर्जन को और घटाने के लिए लगातार नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश कर रही है।

कोच्चि मेट्रो रेल लिमिटेड कई परिवहन माध्यमों को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जैसे मेट्रो, इलेक्ट्रिक ऑटो, इलेक्ट्रिक बसें और इलेक्ट्रिक वाटर मेट्रो। एक सिंगल फेयर मीडिया भी लागू किया गया है, जिसे कोच्चि 1 कार्ड कहा जाता है। यह कार्ड मेट्रो और वाटर मेट्रो दोनों के लिए टिकट की तरह काम करता है और इसे दोनों में आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है। इसी कार्ड का उपयोग बसों और ऑटो-रिक्शा में यात्रा के भुगतान के लिए भी किया जा सकता है।

गोकुल ने कहा, “हमने अपनी बसों को मेट्रो के रंगों के समान डिजाइन किया है। हमारे पास एसी बसें हैं जो इलेक्ट्रिक हैं, ताकि मेट्रो से बस की यात्रा करने वाले यात्रियों को यह अनुभव हो कि वे एक ही सेवा या सिस्टम में हैं, न कि ऐसा लगे कि वे अब एक पूरी तरह से अलग सिस्टम में जा रहे हैं।”

वाटर मेट्रो में भी मेट्रो की कई विशेषताएं शामिल हैं, जैसे कि ऑटोमेटिक फेयर कलेक्शन सिस्टम और स्वचालित यात्री गिनती, जो एकीकृत परिवहन का अनुभव और बेहतर बनाती हैं।

कोच्चि मेट्रो के पास 15 इलेक्ट्रिक बसों का बेड़ा है, जो प्रमुख स्थानों और अन्य परिवहन माध्यमों से कनेक्टिविटी प्रदान करती हैं। फीडर बसों ने कोच्चि के एकीकृत परिवहन सिस्टम में फर्स्ट और लास्ट माइल कनेक्टिविटी को बेहतर बनाया है।

कोच्चि वॉटर मेट्रो के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर साजन ने कहा, “इन्फो पार्क में जब हमने शुरुआत की थी, तब तीन बसों में लगभग 200 यात्री ही होते थे। अब उस क्षेत्र से नियमित रूप से 1,100 से अधिक यात्री सफर कर रहे हैं। और जब स्पीडर बसें शुरू हुईं, तब हमारे वॉटर मेट्रो की सवारी में लगभग 10 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। ये बहुत ही वास्तविक समस्याएं हैं, जिन्हें सही समाधान प्रदान करके हल किया जा सकता है।”

शहर में पैदल चलने योग्य व्यवस्था (वॉकैबिलिटी) को बेहतर बनाना कोच्चि मेट्रो के व्यापक एकीकृत परिवहन सिस्टम और गैर-मोटरयुक्त परिवहन पहलों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

गोकुल ने कहा, “हमने स्टेशनों तक पहुंचने वाले पैदल मार्गों में काफी पैसा लगाया है ताकि लोग वास्तव में पैदल चल सकें। हमारे पास एक दिलचस्प आंकड़ा है कि लगभग 25 प्रतिशत आने वाले यात्री स्टेशनों तक पैदल आते हैं, और जो लोग स्टेशन से बाहर निकलते हैं, खासकर सेंट्रल बिजनेस डिस्ट्रिक्ट क्षेत्र में जहां भीड़ अधिक होती है, वहां लगभग 50 प्रतिशत लोग अपने गंतव्य तक पैदल जाते हैं।”

इन उपलब्धियों के बावजूद, यात्रियों का मानना है कि मेट्रो लाइनों में वृद्धि, किफायती किराए सुनिश्चित करना और आखिरी मील की पहुंच को बेहतर बनाना आवश्यक है।

शमील, जो एक एनजीओ में काम करते हैं, रोजाना मेट्रो का उपयोग करते हैं, कहते हैं : “सभी स्टेशनों पर फीडर बसें नहीं हैं। वो केवल रेल और वाटर मेट्रो के बीच ही उपलब्ध हैं। हमें इसकी और अधिक उपलब्धता की जरूरत है।” उन्होंने यह भी कहा कि निजी और सार्वजनिक बसों की तुलना में छोटी दूरी के किराए कभी-कभी अधिक महसूस होते हैं।

फोर्ट कोच्चि से त्रिपुनिथुरा जाने वाले यात्री सजीर ने इलेक्ट्रिक परिवहन की लचीलेपन को बताया कि यह समय बचाने में मदद करता है, लेकिन उन्होंने एक महत्वपूर्ण कमी की ओर इशारा किया:

“दूरदराज़ इलाकों तक लास्ट मील कनेक्टिविटी नहीं है। लोग आमतौर पर सरकारी जेट्टी का ज्यादा उपयोग करते हैं क्योंकि वह उनके रहने के स्थान के करीब है।”

उन्होंने कहा कि वाटर मेट्रो मुख्य रूप से पर्यटकों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है, “क्योंकि यह स्मूथ, एयर-कंडीशन्ड और अधिक आरामदायक है,” लेकिन यह हमेशा स्थानीय निवासियों के लिए व्यावहारिक नहीं होता।

गोकुल ने बताया कि यात्रियों, खासकर पहली बार आने वाले लोगों की मदद के लिए संचार प्रणालियों को स्वचालित (ऑटोमेटेड) करने की भी जरूरत है, ताकि वे बसों और वॉटर मेट्रो नौकाओं जैसे विभिन्न परिवहन माध्यमों के बीच कनेक्शन और समय सारिणी को आसानी से समझ सकें।

कोच्चि की ई-मोबिलिटी यात्रा अभी भी प्रगति पर है, हालांकि यह उत्सर्जन को कम कर रही है और परिवहन के स्वरूप को बदल रही है। आम जनता में ई-मोबिलिटी के प्रति सामान्य जागरूकता की कमी है और लोग इलेक्ट्रिक परिवहन विकल्पों की सक्रिय मांग नहीं कर रहे हैं। यात्री परिवहन माध्यम चुनते समय मुख्य रूप से सुविधा और विश्वसनीयता को प्राथमिकता देते हैं, न कि स्थिरता को।

जबकि महत्वपूर्ण प्रयास किए गए हैं, कुछ समस्याएं जैसे आखिरी मील कनेक्टिविटी, खर्च की धारणा और चार्जिंग अवसंरचना की उपलब्धता की कमी अभी भी बनी हुई हैं।

फिर भी, इन चुनौतियों को स्पष्ट रूप से पहचाना गया है और विभिन्न परिवहन माध्यमों के बीच एकीकरण को बेहतर बनाने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं।

यह स्टोरी भारत में आवाजाही सीरीज का हिस्सा है। जो भारत में आवाजाही और वायु प्रदूषण के बीच संबंध स्थापित करती हैं। सीरीज की अन्य स्टोरीज पढ़ने के लिए क्लिक करें