सर्वोच्च न्यायालय ने 12 दिसंबर, 2024 को संबंधित राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वे सुनिश्चित करें कि वायु प्रदूषण की वजह से निर्माण कार्यों पर लगी रोक से जिन मजदूरों की जीविका प्रभावित हुई है, उन्हें आर्थिक सहायता मिले।
गौरतलब है कि यह आदेश उन मजदूरों के हक में है, जो 18 नवंबर से पांच दिसंबर, 2024 के बीच प्रदूषण पर रोकथाम के लिए निर्माण कार्यों कर लगी रोक की वजह से देहाड़ी नहीं कर पाए थे। नतीजन इस दौरान उनकी जीविका पर असर पड़ा था।
गौरतलब है कि दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) के 400 पार करते ही एक बार फिर ‘ग्रेप-4’ यानी ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान का चौथा चरण लागू कर दिया गया है। इसके साथ ही दिल्ली-एनसीआर में निर्माण से जुड़ी गतिविधियों पर पाबंदी लगा दी गई है। इससे निर्माण क्षेत्र से जुड़े मजदूरों के लिए फिर से मुसीबतें पैदा हो गई हैं।
इसके साथ ही अदालत ने दिल्ली भवन एवं अन्य निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड के डैशबोर्ड पर पंजीकृत श्रमिकों की संख्या के मुद्दे पर भी विचार किया। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि दिल्ली समेत आसपास के शहरों की सभी सरकारों को न केवल पंजीकरण पर ध्यान देना चाहिए, बल्कि इस अवधि के दौरान आय खोने वाले श्रमिकों की वास्तविक संख्या की पहचान करने पर भी ध्यान देना चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्य सरकारों से तीन जनवरी, 2025 तक इस मामले पर विस्तृत हलफनामा प्रस्तुत करने को कहा है। न्यायालय ने कहा कि, वह इस प्रक्रिया की निगरानी तब तक करेगा जब तक अदालत संतुष्ट नहीं हो जाती कि "प्रत्येक पात्र श्रमिक को निर्वाह भत्ता मिल गया है।"
पटाखों पर साल भर रोक के मामले में भी सरकारों से मांगा जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान दिल्ली एनसीआर में पटाखों पर प्रतिबंध के मुद्दे पर भी विचार किया। अदालत ने सम्बन्धित राज्य सरकारों से पटाखों पर साल भर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने के बारे में उनके निर्णय के बारे में पूछा है और उन्हें अपने फैसले को आधिकारिक रूप से रिकॉर्ड पर रखने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि पटाखों पर प्रतिबंध से वायु और ध्वनि प्रदूषण दोनों को कम करने में मदद मिलेगी।
अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि पटाखों पर प्रतिबंध के दायरे में उनका निर्माण, भंडारण, बिक्री और वितरण भी शामिल होगा।
गौरतलब है कि दो दिसंबर 2024 को दिए अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने इन राज्यों के मुख्य सचिवों से पांच दिसंबर 2024 को वीडियो कॉन्फ्रेंस में शामिल होने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने साफ कर दिया था कि अगर मजदूरों को भुगतान करने में कोई खास प्रगति नहीं होती तो दोषी अधिकारियों के खिलाफ न्यायालय अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत कार्रवाई की जा सकती है।
राजधानी दिल्ली सहित देश के अन्य शहरों में वायु प्रदूषण के बारे में ताजा जानकारी आप डाउन टू अर्थ के एयर क्वालिटी ट्रैकर से प्राप्त कर सकते हैं।
क्या पर्यावरण नियमों का उल्लंघन करके किया जा रहा है सड़क का निर्माण, एनजीटी ने मांगा जवाब
17 दिसंबर, 2024 को, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने अधिकारियों को उन आरोपों का जवाब देने का निर्देश दिया है, जिनमें कहा गया है कि बसई मेव गांव में सड़क का निर्माण पर्यावरण नियमों का उल्लंघन करके किया जा रहा है। मामला राजस्थान में नूंह जिले के फिरोजपुर झिरका तहसील का है।
आरोप है कि गांव की चकबंदी प्रक्रिया की आड़ में सड़क का निर्माण किया जा रहा है।
आवेदक की और से पेश वकील यासीन ने कहा कि सड़क का निर्माण वन क्षेत्र से होकर किया जा रहा है, जिससे जंगल को नुकसान हो सकता है।
आवेदक ने वन (संरक्षण) अधिनियम की धारा दो और भारतीय वन अधिनियम, 1927 की धारा 6, 32, 33 और 63 के उल्लंघन का भी दावा किया। उन्होंने सड़क निर्माण के कारण होने वाले स्वास्थ्य संबंधी खतरों को लेकर भी चिंता जताई है।
इसके अतिरिक्त, यह भी आरोप है कि अवैध निर्माण ने गांव की प्राकृतिक जल निकासी प्रणाली को बाधित कर दिया है, जिससे कुछ क्षेत्रों में जलभराव हो गया है।