दिल्ली अब भी देश का दूसरा सबसे प्रदूषित शहर है। जबकि असम-मेघालय सीमा पर स्थित बर्नीहाट सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में अव्वल रहा है। सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) की ओर से जारी रिपोर्ट का यह निष्कर्ष है।
सीआरईए ने शुक्रवार, 11 जुलाई को यह रिपोर्ट जारी की, जो साल 2025 की पहली छमाही के दौरान देशभर में हवा की गुणवत्ता के विश्लेषण के आधार पर तैयार की है। इसे तैयार करने के लिए संस्था ने देश के 293 शहरों में स्थित ‘निरन्तर परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी केन्द्रों’ (सीएएक्यूएमएस) पर हवा को प्रदूषित करने वाले पीएम2.5 की लगातार विस्तृत निगरानी की। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मानकों की कसौटी पर इनकी समीक्षा की और विश्लेषण किया। इसके बाद अपने निष्कर्ष जारी किए हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, अनुपालन मूल्यांकन से पता चलता है कि निगरानी वाले कुल 293 में से 239 शहरों में 80% से ज़्यादा दिनों तक पीएम2.5 मटेरियल का डेटा उपलब्ध रहा। इन 239 में से 122 शहरों ने भारत के वार्षिक राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (एनएएक्यूएस) 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर को पार कर लिया। जबकि 117 शहर इस सीमा से नीचे रहे।
हालांकि, सभी 239 शहर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सख्त वार्षिक मानक 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर को पार कर गए। यानी वायु गुणवत्ता के भारतीय मानकों के मुताबिक, इस साल की पहली छमाही में 122 शहर प्रदूषित रहे।
जबकि डब्ल्यूएचओ के मानकों के हिसाब से देखें तो सभी 239 शहर वायु-प्रदूषित शहरों की सूची में शामिल रहे। इससे पता चलता है कि वायु प्रदूषण उन शहरों में भी सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए बड़ा जोखिम है, जो तकनीकी रूप से भारतीय मानकों का 'अनुपालन' करते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, बर्नीहाट में औसत पीएम2.5 सांद्रता 133 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है। वहां साल की पहली छमाही के अधिकांश दिनों में वायु गुणवत्ता 'बहुत खराब' श्रेणी में रही। इस दौरान 'अच्छी' वायु गुणवत्ता वाला एक भी दिन दर्ज नहीं किया गया। वहीं, दिल्ली में पीएम2.5 का स्तर 87 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा।
यह स्तर एनएएक्यूएस से दोगुना है। शहर ने 10 जनवरी, 2025 की शुरुआत में डब्ल्यूएचओ के वार्षिक पीएम2.5 मानक को पार किया जबकि पाँच जून, 2025 तक एनएएक्यूएस का स्तर पर लाँघ लिया। इसका मतलब है कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय, दोनों ही मानकों के उल्लंघन के बाद दिल्ली अब साल के बाकी बचे महीनों में भी वायु प्रदूषण के मामले में अपनी स्थिति को सुधार नहीं सकेगी।
भले ही वह शेष महीनों में वायु गुणवत्ता के अपने स्तर को कितना भी बेहतर कर ले। बर्नीहाट और दिल्ली के अलावा देश के शीर्ष 10 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों की सूची में हाजीपुर, गाजियाबाद, गुड़गाँव, सासाराम, पटना, तालचेर, राउरकेला और राजगीर शामिल हैं। इनमें चार शहर बिहार के, दो ओडिशा के और शेष दिल्ली, असम, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के हैं।
दिल्ली में सिर्फ गाड़ियों पर प्रतिबन्ध से काम नहीं चलेगा
रिपोर्ट के मुताबिक, किसी शहर में हवा गुणवत्ता सुधारने के लिए जीवन-अवधि पूरी कर चुके वाहनों पर प्रतिबन्ध लगाना एक महत्त्वपूर्ण कदम है। लेकिन दिल्ली की तरह सिर्फ इसी एक कदम पर ही ध्यान केन्द्रित करने से काम नहीं चलने वाला। सालभर में वायु की गुणवत्ता खराब करने वाले दूसरे तमाम घटकों पर भी ध्यान देना जरूरी है।
इस सिलसिले में पोर्टल फॉर रेगुलेशन ऑफ एयर-पॉल्यूशन इन नॉन-अटेनमेंट सिटीज (प्राण) और आईआईटी दिल्ली के स्रोत विभाजन अध्ययन पर ध्यान देना जरूरी है। इसके मुताबिक, वायु प्रदूषण में परिवहन यानी मोटरगाड़ियों का योगदान 17% से -28% तक ही है। जबकि इसमें धूल (17% से -38%), आवासीय गतिविधियों (8% से -10%), खेतों के अपशिष्ट, पराली, आदि को जलाने (4% से -7%), औद्योगिक गतिविधियों, तथा बिजली संयंत्रों (22% से -30%) का भी योगदान होता है।
इसी आधार पर दिल्ली के वायु प्रदूषण के लिए सिर्फ पराली जलने को भी दोषी नहीं माना जा सकता। अन्य कारण भी दोषी है। मसलन- सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के बावजूद, दिल्ली के निकट अधिकांश ताप विद्युत संयंत्रों में अब भी फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन (एफजीडी) प्रणालियों का अभाव है।
साल 2025 के मध्य तक, दिल्ली के 300 किलोमीटर के दायरे में स्थित 11 में से केवल दो संयंत्रों में ही एफजीडी चालू होंगे। यानी ऐसे ही तमाम कारणों से दिल्ली में वायु प्रदूषण की स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है।
वैश्विक वायु गुणवत्ता मानकों पर खरे नहीं देश के 88% से अधिक शहर
रिपोर्ट बताती है कि जून 2025 तक, 293 शहरों में से 259 (88% से अधिक) शहरों ने वायु गुणवत्ता के वैश्विक मानकों का पालन नहीं किया। इस कारण वे साल पूरा होने से पहले ही डब्ल्यूएचओ के वार्षिक पीएम2.5 मानक को पार कर चुके हैं। इसके विपरीत, भारतीय मानकों के हिसाब से देखें तो देश केवल तीन शहरों ने ही निर्धारित बिन्दु को पार किया है।
ऐसा इसलिए क्योंकि एनएएक्यूएस के मानक डब्ल्यूएचओ के मानकों की तुलना में लचीले और कम सख्त हैं। साथ ही 2009 में जब से वे निर्धारित किए गए, तब से उन्हें अपडेट भी नहीं किया गया है। इसलिए वे वर्तमान स्थितियों और अंतर्राष्ट्रीय मानकों से मेल नहीं खाते।
सीआरईए ने 'ओवरशूट डे' की अवधारणा के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है। यह अवधारण निर्धारित मानकों के गैर-अनुपालन की गहराई को समझने के लिए होती है। ‘ओवरशूट डे’ उस बिन्दु को चिह्नित करता है, जब किसी शहर के औसत पीएम2.5 का स्तर इतना अधिक हो जाए कि फिर भले शेष वर्ष के लिए प्रदूषण लगभग शून्य रहे, लेकिन तब शहर वार्षिक मानक हासिल नहीं कर सकता।
सीआरईए के विश्लेषक मनोज कुमार ने कहा, "किसी भी भारतीय शहर में वायु गुणवत्ता के संकट से निपटने के लिए सभी पहलुओं को देखने, समझने और उन पर कार्रवाई करने की जरूरत है। टुकड़ों-टुकड़ों में उठाए गए कदमों या अस्थायी मौसमी उपायों से काम नहीं चल सकता। राष्ट्रीय मानकों को अपडेट करने, एनसीएपी कवरेज को गैसीय प्रदूषकों तक विस्तारित करने और पूरे सालभर जनस्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए सभी प्रदूषणकारी स्रोतों पर लगाम लगाने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है।"