वायु प्रदूषण की सबसे बड़ी सफाई चीन में की गई है, जहां परिवेशी वायु प्रदूषण हर साल लगभग 10 लाख मौतों के लिए जिम्मेवार रहा है। फोटो साभार: आईस्टॉक
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पूर्वी एशिया में वायु प्रदूषण में कमी से दुनिया भर में तापमान में बढ़ोतरी के आसार: शोध

वायु प्रदूषण ने जलवायु को ठंडा करने में भी मदद की है, जीवाश्म ईंधन के जलने से उत्पन्न सल्फेट एरोसोल, पृथ्वी की सतह को सूर्य के प्रकाश से बचा सकते हैं।

Dayanidhi

साल 2010 के आसपास से ग्लोबल वार्मिंग में तेजी आई है, जिसके कारण हाल ही में रिकॉर्ड गर्म सालों की एक श्रृंखला शुरू हुई है। ऐसा क्यों हो रहा है, यह अभी भी स्पष्ट नहीं है और आज जलवायु विज्ञान के सबसे बड़े सवालों में से एक है। नए अध्ययन से पता चलता है कि वायु प्रदूषण में कमी, विशेष रूप से चीन और पूर्वी एशिया में इस तेज गर्मी का एक प्रमुख कारण है।

पिछले 15 सालों से, ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण दुनिया भर में तापमान में तेजी से वृद्धि हो रही है, जिससे सतह का तापमान रिकॉर्ड तोड़ रहा है। इसी अवधि के दौरान, पूर्वी एशिया के देशों ने वायु प्रदूषण को दूर करने के लिए कड़े प्रयास किए हैं, जो लोगों के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। वायु प्रदूषण की सबसे बड़ी सफाई चीन में की गई है, जहां परिवेशी वायु प्रदूषण हर साल लगभग 10 लाख मौतों के लिए जिम्मेवार रहा है।

लेकिन वायु प्रदूषण ने जलवायु को ठंडा करने में भी मदद की है। जीवाश्म ईंधन के जलने से उत्पन्न सल्फेट एरोसोल, पृथ्वी की सतह को सूर्य के प्रकाश से बचा सकते हैं। इसलिए वायु प्रदूषण ने अनजाने में ही ग्रीनहाउस गैसों से होने वाली कुछ गर्मी को नियंत्रित कर लिया है।

जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) के आकलन के मुताबिक, 2021 में, एरोसोल ने दुनिया की सतह को 0.4 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा कर दिया। हालांकि इसमें इस बात को नजरअंदाज किया गया कि 2010 के दशक की शुरुआत से, चीन, जो उस समय वायु प्रदूषण का मुख्य उत्सर्जक था, इसने वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए सख्त नीतियां लागू की हैं।

घना धुआं ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव पर असर डालता है

कम्युनिकेशन्स अर्थ एंड एनवायरमेंट में प्रकाशित शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि वे पिछले 15 सालों में पूर्वी एशिया में वायु गुणवत्ता नीतियों के जलवायु प्रभावों को अलग-अलग करने में सफल रहे। शोध का मुख्य परिणाम यह है कि पूर्वी एशियाई एरोसोल सफाई ने हाल ही में दुनिया भर में तापमान में वृद्धि में काफी हद तक योगदान दिया है, और प्रशांत क्षेत्र में भी तापमान वृद्धि के रुझान को बढ़ावा दिया है।

शोध के मुताबिक, किसी एक क्षेत्र से उत्सर्जन के जलवायु प्रभावों का विश्लेषण करना चुनौतीपूर्ण है। इसके लिए जलवायु सिमुलेशन की जरूरत पड़ती है जो अभी तक आसानी से उपलब्ध नहीं हैं और उत्सर्जन के नवीनतम आंकड़े जो मुख्यभूमि चीन और उसके आसपास के क्षेत्रों में प्रदूषण में वास्तविक कमी को दर्शाते हैं।

आठ अलग-अलग जलवायु मॉडलों के सिमुलेशन के एक बड़े सेट का उपयोग करते हुए, यह शोध दर्शाता है कि कैसे पूर्वी एशियाई सल्फेट उत्सर्जन में 75 फीसदी की कमी ग्रीनहाउस गैसों के कारण होने वाले तापमान वृद्धि को आंशिक रूप से सामने लाती है और दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में तापमान वृद्धि के तरीके को बदल देती है।

लंबे समय के रुझानों के आधार पर, 2010 से लगभग 0.23 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि की उम्मीद थी। हालांकि यह वास्तव में लगभग 0.33 डिग्री सेल्सियस तापमान मापा गया। अतिरिक्त 0.1 डिग्री सेल्सियस की वजह पूर्वी एशियाई वायु प्रदूषण की सफाई है, लेकिन अन्य कारणों में शिपिंग उत्सर्जन में बदलाव और वायुमंडल में मीथेन की मात्रा में हाल ही में हुई तेजी शामिल है।

शोध में कहा गया है कि वायु प्रदूषण सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करके या बादलों के गुणों को बदलकर, जिससे वे सूर्य का अधिक प्रकाश परावर्तित कर ठंडक उत्पन्न करता है। पूर्वी एशियाई में वायु प्रदूषण में सफाई दुनिया के तापमान को प्रभावित करती है क्योंकि यह पूर्वी एशिया पर प्रदूषण के छाया प्रभाव को कम करती है। इसका अर्थ यह भी है कि उत्तरी प्रशांत महासागर में कम प्रदूषण फैलता है, जिससे पूर्वी प्रशांत महासागर के बादल सूर्य के कम प्रकाश को परावर्तित करते हैं।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि वायु प्रदूषण के जलवायु प्रभाव छोटे समय के लिए होते हैं, जबकि कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का प्रभाव सदियों तक महसूस किया जा सकता है। इसका मतलब है कि वायु प्रदूषण में कमी के कारण तापमान में वृद्धि भी छोटे समय के लिए होने की संभावना है।

जब तक प्रदूषण का पर्दाफाश होता रहेगा, तापमान में वृद्धि दिखाई देगी और फिर वायु प्रदूषण के स्थिर होने पर ग्रीनहाउस गैसों के कारण तापमान वृद्धि की दर में वापसी होगी।