फाइल फोटो: विकास चौधरी 
वायु

सांसों का आपातकाल: जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ा वायु प्रदूषण का संकट

सीएसई की किताब "सांसों का आपातकाल" में गंगा के तटीय क्षेत्रों में बढ़ रहे वायु प्रदूषण के कारण बच्चों में बढ़ रही बीमारियों का विस्तार से विश्लेषण किया गया है। पढ़ें एक और कड़ी-

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डब्ल्यूएचओ के जलवायु, पर्यावरण और स्वास्थ्य विभाग की प्रमुख मारिया नेइरा ने कहा कि सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए वायु प्रदूषण सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है। नवंबर-दिसंबर 2023 में दुबई में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के 28वें सम्मेलन (सीओपी28) में 123 देशों ने जलवायु और स्वास्थ्य से संबंधित एक नई घोषणा पर हस्ताक्षर किए।

यह घोषणा जलवायु और स्वास्थ्य के बीच संबंध को स्वीकार करती है। सीओपी 28 प्रेसीडेंसी और डब्ल्यूएचओ ने मिलकर “जलवायु और स्वास्थ्य पर सीओपी 28 यूएई घोषणापत्र” जारी किया। इस घोषणापत्र का प्रमुख उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य और समुदायों को बढ़ते जलवायु प्रभावों से बचाने के लिए कार्रवाई में तेजी लाना और अत्यधिक गर्मी, वायु प्रदूषण, संक्रामक व जूनोटिक बीमारियों और पर्यावरणीय जोखिम कारकों के प्रभावों से निपटने के लिए स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों को मजबूत करना है।

इस घोषणापत्र में कहा गया है कि वायु प्रदूषण से हर साल लगभग 90 लाख मौतें होती हैं। इसके अलावा लगभग 18.9 करोड़ लोग हर साल चरम मौसम से जुड़ी घटनाओं के संपर्क में आते हैं। इसलिए स्वास्थ्य की सुरक्षा जलवायु कार्रवाई के केंद्र में होनी चाहिए। घोषणापत्र में ऐसी सरकारी नीतियां बनाने की मांग की गई है, जो जलवायु परिवर्तन के असर से लड़ने के लिए हमारे स्वास्थ्य सिस्टम को मजबूत बनाएं, उत्सर्जन कम करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़े, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए जो कदम उठाए जाएं, उनसे स्वास्थ्य को मिलने वाले लाभों को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाया जा सके और जलवायु व स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए फंड बढ़ाया जाए।

जिन देशों या संगठनों ने इस घोषणा पर हस्ताक्षर किए हैं, उन्होंने यह भी वादा किया कि वे अपने देशों की जलवायु योजनाओं में स्वास्थ्य से जुड़े लक्ष्य भी शामिल करेंगे। साथ ही, जलवायु परिवर्तन के स्वास्थ्य संबंधी खतरों से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहतर सहयोग करेंगे। भविष्य में होने वाली जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक बैठकों (जैसे सीओपी सम्मेलन) और स्वास्थ्य मंत्रियों की बैठकों में भी इस प्रगति पर नजर रखी जाएगी। इस पहल का सबसे खास पहलू यह है कि इसमें फंड के लिए प्रतिबद्धताएं हासिल करने की कोशिश की गई है। कई सारे साझेदारों और संगठनों ने मिलकर यह वादा किया है कि वे जलवायु-स्वास्थ्य संकट की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए एक अरब डॉलर समर्पित करेंगे।

जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए उठाए जाने वाले कदमों और स्वास्थ्य संरक्षण को एकीकृत करने के प्रयास 2016 में ही शुरू हो गए थे। उस समय सीओपी की अध्यक्षता कर रही फ्रांस सरकार ने डब्ल्यूएचओ के साथ मिलकर दूसरा वैश्विक सम्मेलन आयोजित किया। इस सम्मेलन का मकसद था पेरिस समझौते के क्रियान्वयन के माध्यम से अधिक स्वस्थ समाज बनाना। यहां पेरिस जलवायु संधि को सार्वजनिक स्वास्थ्य संधि के रूप में भी देखने की अपील की गई। डब्ल्यूएचओ ने चेतावनी दी कि “ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज” अध्ययन के अनुसार, 23 प्रतिशत वैश्विक मौतें पर्यावरणीय कारणों से होती हैं, जिनमें वायु प्रदूषण सबसे महत्वपूर्ण है, जो जलवायु परिवर्तन के कारण और भी बदतर हो गया है।

जलवायु परिवर्तन के कारण 2030 तक प्रति वर्ष 2,50,000 से अधिक अतिरिक्त मौतें होने की संभावना है। इन मौतों के प्रमुख कारण जलवायु तनाव, खाद्य असुरक्षा और कीट जनित रोग होंगे। चरम मौसमीय घटनाओं के कारण विकासशील देशों पर स्वास्थ्य का बोझ और आर्थिक नुकसान कई गुना बढ़ जाएंगे। वायु प्रदूषण की वजह से दुनिया भर में हर साल लगभग 90 लाख लोगों की मौत होती है। जलवायु परिवर्तन से निपटने में वायु प्रदूषण भी बड़ी बाधा है।

अगर स्वास्थ्य को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए उठाए जाने वाले कदमों के साथ एकीकृत किया जाता है, तो यह विभिन्न क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और उनके अनुकूल ढलने के अवसरों को लक्षित करने में मदद कर सकता है। यानी हम उन जगहों और तरीकों की पहचान कर पाएंगे, जहां प्रदूषण कम करके और मौसम के हिसाब से ढलकर स्वास्थ्य को बेहतर बना सकते हैं।

स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर प्रदूषण कम करने की एक साथ रणनीति बन पाएगी। प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियां और भी मजबूत होंगी, ताकि वे जलवायु परिवर्तन से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं से निपट सकें। प्रदूषण फैलाने वाली गतिविधियों से कार्बन कम करने के प्रयास और बेहतर तरीके से हो पाएंगे। जब हम स्वास्थ्य के जोखिमों और लाभों पर ठोस सबूतों के आधार पर काम करेंगे, तो सही फैसले लेना आसान होगा।

वैश्विक स्तर पर भी सभी देश मिलकर आम जनता के भले के लिए ज्यादा असरदार तरीके से काम कर पाएंगे। यह केवल दुनिया भर से आने वाले पैसों को ही नहीं बढ़ाएगा, बल्कि देशों के अपने बजट और कार्यों को भी प्रभावित करेगा, ताकि जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले भारी स्वास्थ्य खर्चों से निपटा जा सके। साफ है कि स्वास्थ्य को एक “शक्तिशाली हथियार” के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में के लिए किए जा रहे समाधानों में “समानता” को सुनिश्चित किया जा सके।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने पहले ही “क्लाइमेट एंड क्लीन एयर कोएलिशन” का गठन कर लिया है। इसे कई वैश्विक एजेंसियों और बहुपक्षीय संस्थाओं का समर्थन हासिल है, जिनमें बड़ी संख्या में देश शामिल हैं। यह गठबंधन एसएलसीपी (शॉर्ट-लिव्ड क्लाइमेट पॉल्यूटेंट्स यानी अल्पकालिक जलवायु प्रदूषकों) पर संयुक्त कार्रवाई के लिए बना है। यूएनईपी ने इस संबंध और कार्रवाई के महत्व को और अधिक जोर देकर रेखांकित किया है।

इस प्रयास को यूएनएफसीसीसी (यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज) की प्रक्रिया से और बेहतर तरीके से जोड़ना जरूरी है, ताकि उत्सर्जन में और अधिक व्यापक कटौती की जा सके। इससे वायु गुणवत्ता, सार्वजनिक स्वास्थ्य और कल्याण में ज्यादा से ज्यादा फायदा मिल सकता है, साथ ही सीओ 2 को कम करने की प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ाया जा सकता है और जलवायु संकट से लड़ने की क्षमता भी बढ़ाई जा सकती है। सीओपी 28 और आगे आने वाले समय में इस मुद्दे पर प्राथमिकता के साथ ध्यान देना जरूरी है।

कई देश पहले ही अपने-अपने स्वच्छ वायु और जलवायु कार्यक्रम, नीतियां और क्रियान्वयन रणनीतियां बना चुके हैं, ताकि स्वच्छ वायु के लक्ष्यों को हासिल किया जा सके। स्थानीय और वैश्विक स्तर पर इन कार्यक्रमों से मिलने वाले अनुभवों को आपस में जोड़ने और रणनीतिक सहयोग देने से असर कई गुना बढ़ सकता है।

यूएनएफसीसीसी के लिए राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित प्रतिबद्धता (नेशनली डिटरमाइंड कॉन्ट्रिब्यूशन- एनडीसी) पर अपनी रिपोर्टिंग में वायु प्रदूषण को शामिल करने वाले देशों की संख्या बढ़ रही है और 2025 में इन एनडीसी को संशोधित किया जाएगा। इन एनडीसी में जनस्वास्थ्य लाभों और कार्बन उत्सर्जन में कमी से मिलने वाले फायदे भी शामिल किए जाने चाहिए। जो देश स्वच्छ वायु के लिए कदम उठा रहे हैं और इस प्रक्रिया से मिलने वाले अनुभवों को साझा कर रहे हैं, उन्हें साथ लाना और एकजुट करना आवश्यक है, ताकि आपसी सीख (क्रॉस-लर्निंग) को बढ़ावा मिल सके।

सीओपी प्रक्रिया के साथ-साथ कई वैश्विक मंच और प्लेटफॉर्म स्थापित किए गए हैं, ताकि विभिन्न क्षेत्रों में तेज और प्रभावी कार्रवाई की जा सके। इन क्षेत्रों में स्वच्छ ऊर्जा अपनाने, खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन इस्तेमाल करने और पारंपरिक वाहनों की जगह शून्य उत्सर्जन वाले वाहनों (जेडईवी) को लाने जैसे उपाय शामिल हैं। इन मंचों का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में लघुकालिक जलवायु प्रदूषकों (एसएलसीपी) पर कार्रवाई को तेज करने के लिए किया जा सकता है। ऐसे कुछ मंचों में “2030-2040 तक 100 प्रतिशत जीरो एमिशन में बदलाव की घोषणा”, “जेडईवी ट्रांजिशन काउंसिल” (जो वैश्विक कार बाजार का 50 प्रतिशत प्रतिनिधित्व करती है) और “सोलर अलायंस” शामिल हैं।

लघुकालिक जलवायु प्रदूषक यानी एसएलसीपी ऐसे प्रदूषक हैं, जो वातावरण में बहुत कम समय तक रहते हैं, लेकिन तेजी से गर्मी बढ़ाते हैं। एसएलसीपी के बारे में जागरूक करने के लिए वैश्विक और राष्ट्रीय नेटवर्क को एक साथ लाना चाहिए। स्वच्छ हवा और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए उठाए जा रहे कदमों के बीच के संबंध के प्रति भी उन्हें जागरूक करना चाहिए। इसके साथ ही एक-दूसरे से सीखने को बढ़ावा देना चाहिए। इससे वैज्ञानिक डेटा, बेहतरीन तरीके और व्यावहारिक मॉडल के जरिए ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) में स्थानीय स्तर पर कार्रवाई को मजबूती मिलेगी।

मोटरीकरण और औद्योगीकरण के शुरुआती चरणों में ही एहतियातन योजनाएं बनाकर प्रदूषण की रोकथाम करने और प्रदूषण फैलाने वाले तरीकों से भी बचने के काफी अवसर हैं। वैश्विक जलवायु वित्त व्यवस्था को प्रभावित करने के लिए भागीदारी बढ़ानी चाहिए। इसके साथ ही, नए वित्तीय स्रोतों जैसे द्विपक्षीय (दो देशों के बीच) व बहुपक्षीय (कई देशों के बीच) फंडिंग को खोला जाए और सही संकेतकों के साथ मुख्यधारा में शामिल किया जाए, ताकि इन निवेशों से होने वाले संयुक्त लाभों का मूल्यांकन किया जा सके।

इन गंभीर पर्यावरणीय मुद्दों के बारे में आम लोगों की जानकारी और जागरुकता बढ़ाने के लिए अभियान चलाने चाहिए। लोगों और नीति-निर्माताओं के बीच एसएलसीपी से संबंधित विज्ञान, नीतियों और उनके लिए की जा रही कार्रवाई की गहरी समझ होनी चाहिए, ताकि एक नई और प्रभावी सोच विकसित की जा सके। इसके लिए हमें अच्छे उदाहरणों और नए-नए तरीकों के बारे में रचनात्मक तरीके से बात करनी होगी, ताकि जनमत को प्रभावित किया जा सके।

साथ ही, जनमत तैयार करने वाले अलग-अलग क्षेत्रों के व्यक्तियों और स्थानीय लोगों को इस काम से जोड़ा जा सके। एक और महत्वपूर्ण काम यह है कि ग्रीनहाउस गैसों और एसएलसीपी के स्रोतों और उनके उत्सर्जन का एक वैश्विक डेटाबेस और इन्वेंट्री तैयार की जाए। इसके अलावा, स्थानीय स्तर पर उन संस्थाओं को मजबूत करना चाहिए, जो इन मुद्दों पर काम करती हैं, ताकि वे सही जानकारी के आधार पर प्रभावी कदम उठा सकें।

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