उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के सेमरी गांव के लोगों ने 2 अप्रैल 2018 को आवारा पशुओं की समस्या से निजात पाने के लिए एक नई योजना बनाई। उन्होंने किसानों और कृषि श्रमिकों के साथ बैठक की।
पिछले तीन चार साल में राज्य सरकार द्वारा अवैध बूचड़खानों पर प्रतिबंध और व्यापारियों पर गोरक्षकों की रेड के बाद बडे़ पैमाने पर ऐसी खबरें आ रही हैं कि आवारा पशुओं की समस्या बेतहाशा बढ़ गई है। शहरों के अलावा यह उन किसानों के बड़ी समस्या बन गए हैं जिनकी फसलें खेतों में खड़ी हैं।
इसी को देखते हुए सेमरी गांव में हुई बैठक ने हजार से ज्यादा लोगों का ध्यान खींचा। स्थानीय लोगों का कहना है कि इससे पता चलता है कि पशुओं का आतंक किस हद तक है। बैठक में गर्मागर्म बहस के बाद सब इस मत पर पहुंचे कि समस्या से निजात पाने के लिए बडेे़ कदम उठाने होंगे। वह बड़ा कदम था आवारा पशुओं को पड़ोसी देश नेपाल में छोड़ना।
स्थानीय लोगों ने घरों से 37,000 हजार रुपए इकट्ठे किए और 22 ट्रैक्टर किराए पर लेकर 255 आवारा पशुओं को लाद लिया। इन्हें लेकर सीमा की ओर चल दिए। इस घटनाक्रम के आयोजक किसान जयशंकर मिश्रा बताते हैं, "40 मोटरसाइकल में करीब 100 लोग नेपाल से लगने वाले जंगल में उनके साथ गए। ये सभी लोग हथियारों से लैस थे ताकि किसी भी टकराव की स्थिति से निपटा जा सके।"
जब लोगों का समूह आगे बढ़ रहा था तो स्थानीय निवासी यह सुनिश्चित कर रहे थे कि पशुओं को उनके गांव में न छोड़ा जाए। अंततः पशुओं को कतर्नियाघाट वन्यजीव अभ्यारण में छोड़ दिया गया। यह दुधवा नेशनल पार्क को नेपाल के बर्दिया नेशनल पार्क से जोड़ता है। जब पशुओं को साल और टीक के घनों जंगलों में छोड़ा जा रहा था तभी नजदीकी गांव गजियापुर के ग्रामीण आ गए और विरोध करने लगे। ग्रामीणों ने पशुओं को पकड़कर रेलवे ट्रैक से बांध दिया। इससे अव्यवस्था फैल गई।
अभ्यारण्य क्षेत्र में तीखी बहस के बाद हिंसक संघर्ष शुरू हो गया। इसी दौरान एक ट्रेन आ गई और 30 से ज्यादा पशु उसकी चपेट में आ गए। इसके अलावा दोनों पक्षों के दर्जन से अधिक लोग संघर्ष में जख्मी हो गए। बाद में सभी मौके से फरार हो गए। इस मामले की सूचना पुलिस को नहीं दी गई लेकिन एक स्थानीय अखबार ने इस संबंध में छोटी सी खबर जरूर प्रकाशित की।
ग्रामीणों का फैसला अनोखा नहीं है। बहुत से गांव आवारा पशुओं को नेपाल के गांवों में पहुंचा रहे हैं। नेपाल सीमा के पास खीरी में रहने वाले भारतीय जनता पार्टी से जुडे़ आलोक मिश्रा कहते हैं, " इस तरीके से दो फायदे होते हैं। पहला गांवों में तनाव की स्थिति नहीं बनती और दूसरा हिंदू देश नेपाल में पशु भी सुरक्षित रहते हैं।" उनका दावा है कि सीमावर्ती जिलों खीरी, बहराइच और श्रावस्ती में यह बडे़ पैमाने पर हो रहा है।
उधर, नेपाल के सीमावर्ती गांवों में आवारा पशुओं की समस्या विकराल होती जा रही है। भारतीय सीमा से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नेपाल के धानगढ़ी के जुगेरा गांव में रहने वाली 50 वर्षीय कीडी देवी भारतीय हालात से अनजान हैं। वह अपने 0.2 हेक्टेयर के गेहूं के खेत को आवारा पशुओं से बचाने के लिए पहरा दे रही हैं। कुछ महीने पहले ऐसे हालात नहीं थे। वह तब हैरान हो गईं जब पशुओं के झुंड खेतों में दाखिल होने लगे। 16 सदस्यों वाले उनके परिवार के लिए अनाज का एकमात्र स्रोत उनका खेत ही है। उनके परिवार के अधिकांश सदस्य काम की तलाश में भारत में पलायन कर गए हैं। उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी कि एक भारत के पशु उनकी खाद्य सुरक्षा को संकट में डाल देंगे।
उनका दावा है कि अधिकांश पशु भारत के जंगल से आ रहे हैं। उनके पति पराने कामे रात में पहरा देने के बाद चार घंटे की नींद लेकर उठे हैं। वह बताते हैं कि नेपाल में पहले से आवारा पशुओं की समस्या है लेकिन पिछले एक साल में यह बढ़ गई है। नेपाल के इस इलाके में आवारा पशुओं की भरमार है। बुजुर्ग महिला रानी गुस्से में कहती हैं कि भारत अपने पशुओं को यहां क्यों भेज रहा है। वह कहती हैं कि बाजार, सड़कों और खेतों में आवारा पशुओं की भारी मौजूदगी ने हमारा जीना मुश्किल कर दिया है।
भारत की सीमा से लगा एक दूसरा इलाका है कैलाली। यहां के ग्रामीण भी आवारा पशुओं की समस्या से जूझ रहे हैं। ग्रामीणों को नहीं पता कि ये पशु क्यों और कहां से आ रहे हैं। वे भी इन्हें दूसरे गांवों में हांक रहे हैं। किसानों का दावा है कि इन पशुओं से उनकी फसलों को नुकसान पहुंचा है।
भारत और खासकर उत्तर प्रदेश में बूचड़खानों को बंद करने का असर नेपाल के किसानों पर पड़ रहा है। धानगढ़ी में सरकारी अखबार में काम करने वाले शेर बहादुर कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में नई सरकार आने के बाद बहुत से बूचड़खानों को बंद कर दिया है। इस कारण इन बूचड़खानों में पशुओं की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। पहले नेपाल के किसान भी भारत के व्यापारियों को पशु बेचते थे। नेपाल में भी बूचड़खानों पर प्रतिबंध है। भारत में पशु व्यापार के चलते नेपाल के लोग अपने अनुत्पादक पशुओं को बेचकर कुछ धन अर्जित कर लेते थे। लेकिन भारत में बूचड़खानों के बंद होने और वहां के पशुओं को यहां भेजने के कारण लोगों को दोहरा नुकसान पहुंच रहा है।
आवारा पशुओं की चुनौती से निपटने के लिए नेपाल की सरकार धानगढ़ी, अटरिया, भूमदत्त, शुक्लाकांता, लमकी और टीकापुर आदि नगरपालिकाओं में गोशाला बनाने पर भारी धनराशि खर्च कर रही है। धानगढ़ी में वरिष्ठ पत्रकार लोकेंद्र बिष्ट बताते हैं कि गोशालाओं और उनके प्रबंधन के लिए 10 करोड़ नेपाली रुपए का बजट आवंटित किया गया है। उनका कहना है कि इस धनराशि से ग्रामीण इलाकों में 50 किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण किया जाएगा।
("भारत का गाय संकट" सीरीज का यह पहला लेख है। इस सीरीज में पशु व्यापार पर लगे प्रतिबंध और गोरक्षा से पड़ने वाले प्रभाव का आकलन किया जाएगा)