बिहार के समस्तीपुर स्थित डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना देश की आजादी से करीब चार दशक पहले यानी 1905 में लॉर्ड कर्जन ने की थी। उस वक्त यह देश का इकलौता कृषि शोध केंद्र था। बाद में इसे बिहार सरकार ने राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय बना दिया और वर्ष 2016 में इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया। इस विश्वविद्यालय के अंतर्गत आधा दर्जन कृषि कॉलेज हैं, जहां से हर साल सैकड़ों छात्र डिग्री हासिल करते हैं। डाउन टू अर्थ ने यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉ आरसी श्रीवास्तव से कृषि के सूरत-ए-हाल और कृषि शिक्षा की भूमिका को लेकर विस्तार से बातचीत की। यहां पेश है बातचीत का अंश-
वर्तमान कृषि शिक्षा और शोध पर आपकी राय क्या है?
कृषि शिक्षा और शोध में उतरोत्तर प्रगति हो रही है। वर्तमान में देशभर में 73 कृषि विश्वविद्यालयों में कृषि शिक्षा की पढ़ाई हो रही है, जिनमें से तीन केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय औरर चार डीम्ड विश्वविद्यालय हैं। इसके अतिरिक्त निजी विश्वविद्यालयों में भी कृषि संकाय के अंतर्गत पढ़ाई हो रही है। कृषि शिक्षा में पांचवीं डीन कमिटी की रिपोर्ट लागू होने के बाद से काफी बदलाव आया है। कृषि शोध में भी लगातार प्रगति हो रही है, लेकिन विश्वस्तरीय शोध के मामले में हम अभी भी पीछे हैं। कृषि शोध को लेकर माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की सरकार में काफी गंभीर प्रयास किये जा रहे रहे हैं। भारत का इजरायल के साथ कृषि शोध को लेकर एक करार भी हो चुका है। मुझे लगता है कि कृषि शोध में एक समन्वित प्रयास की जरूरत है। अंतरिक्ष विज्ञान, नैनो टेक्नोलॉजी, जेनेटिक्स, आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस, इनफॅार्मेशन टेक्नोलॉजी और अन्य क्षेत्रों से जुड़े वैज्ञानिकों को एक प्लेटफॉर्म पर आकर कृषि क्षेत्र के लिये शोध करने की आवश्यकता है।
किस-किस क्षेत्र में काम करने की जरूरत है?
कृषि अवशेषों को लेकर भी गंभीर प्रयास की आवश्यकता है। कृषि अवशेष पहले जलावन के काम आता था, लेकिन अब कुकिंग गैस की गांव-गांव तक उपलब्धता के कारण इसकी आवश्यकता कम हो गयी। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय में मक्के के कृषि अवशेष से गत्ता और अन्य समान तैयार कराने में प्रारम्भिक सफलता पायी गयी है और इसके व्यवसायीकरण के प्रयास किये जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त जल प्रबंधन को लेकर भी गंभीर प्रयास करने की जरूरत है। क्योंकि खेतों में उपलब्ध जल का 84 प्रतिशत प्रयोग होता है। इसे घटाने की आवश्यकता है, ताकि अन्य क्षेत्रों की जल की आवश्यकता पूरी की जा सके। भूजल के रिचार्ज पर भी कार्य हो रहा है जिसे और तेज करने की जरूरत है।
कृषि शिक्षा में कितनी दिलचस्पी ले रहे हैं युवा?
वर्तमान में कृषि शिक्षा मे युवाओं की दिलचस्पी बढ़ी है। पिछले कुछ वर्षों से मेडिकल, इंजीनियरिंग और प्रबंधन जैसे विषयों में रोजगार के अवसरों में कमी आई, लेकिन कृषि में रोजगार की स्थिति काफी बेहतर है। इसलिए युवा प्रतिभा कृषि क्षेत्र की ओर आकर्षित हो रही है।
युवाओं के लिए कृषि शिक्षा के क्या मायने हैं?
आज के समय में यह कहना कि कृषि शिक्षा में युवा इसलिये आ रहे हैं कि वे समाज की सेवा कर सकें, पूर्णतः सच नहीं होगा। वास्तविकता तो यह है कि कृषि शिक्षा में रोजगार के अधिक साधन उपलबध हैं इसीलिये युवा कृषि शिक्षा की ओर आकर्षित हो रहे हैं। पर यह भी सच है कि उनके मन में कुछ नया करने के सपने हैं। आवश्यक है कि हम उनके सपने को साकार करने में मदद करें।
क्या छात्रों को पढ़ाया जानेवाला कृषि पाठ खेती-किसानी को मदद पहुँचा रहा है, यदि हाँ तो कैसे और कितना?
इस विश्वविद्यालय से निकले छात्र मुख्यतः बैंक, बीज एवं कीटनाशक, दवाओं के निर्माता एवं राज्य सरकार के कृषि विभाग में नौकरी कर रहे हैं। ये तीनों संस्थाएं किसान को वित्तीय सुविधाए, इनपुट सप्लाई एवं सरकार के कृषि कार्यक्रमों में मदद कर रही है। चूंकि ये तीनों विभाग कृषि उत्पादन बढ़ाने में मदद कर रहे हैं इसलिए इन छात्रों का और इन्हें पढ़ाये जानेवाले कृषि पाठ का महत्वपूर्ण योगदान है। हालांकि, इस योगदान का कोई संख्यात्मक आंकड़ा विश्वविद्यालय के पास उपलब्ध नहीं है।
इस वक्त किसानों की क्या स्थिति है?
भारत में इस वक्त किसानों की स्थिति में पहले से काफी सुधार हुआ है। अनाज के न्यूनतम समर्थन मूल्य में लगभग डेढ़, गुणा बढ़ोतरी की गई है। इसके अतिरिक्त प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना के अंतर्गत किसानों को मौद्रिक सहायता भी दी जा रही है। किसानो की आय में सरकार के इन प्रयासों से अच्छी बढ़ोतरी हुई है। फसल बीमा योजना से किसी तरह की अनहोनी होने पर क्षतिपूर्ति का भी प्रावधान किया गया है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना शेष है। सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है और इसे लेकर गंभीर प्रयास किये जा रहे हैं।
छोटे किसानों की स्थिति क्या है?
देश में लगभग दो तिहाई संख्या छोटे किसानों की है जिनकी जोत 2 हेक्टेयर से कम है। छोटी जोत के कारण कृषि उत्पादन में लागत व्यय ज्यादा लगता है और आय कम होती है। छोटे किसानों को लेकर मेरी राय है कि उन्हें सहकारिता कृषि की ओर अग्रसर होना चाहिये। सहकारिता कृषि में कई लोग मिलकर खेती करते हैं, इससे लागत में कमी आती है और उत्पादन अधिक होता हैं। यदि उत्पादन अधिक होगा, तो उसे दूर की मंडी में अधिक भाव लेकर बेचा जा सकता है। इसके साथ ही किसानों की जमीन उन्हीं की बनी रहती है। हमें संचार विशेषज्ञों के सहयोग से किसानों को इस ओर अग्रसर करना होगा।
क्या भारत अब कृषि संकट की चपेट में है? यदि हां, तो क्यूं?
देखिये, मुझे नहीं लगता कि भारत कृषि संकट की चपेट में है, लेकिन यह सच है कि कृषि क्षेत्र में कई सारी चुनौतियाँ हैं। देश की लगभग 50 प्रतिशत से अधिक आबादी के जीविकोपार्जन का सहारा अब भी खेती है, जबकि देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान मात्र 15 से 16 प्रतिशत है। यह चिंता का विषय है। इसके अतिरिक्त जमीन और पानी की कमी तथा कृषि उत्पादन के लागत मूल्यो में बढ़ोतरी भी एक बड़ी चुनौती है, जिससे आनेवाले समय मे भारत को निपटना होगा। लेकिन, मुझे लगता है कि भारत के किसानों और कृषि वैज्ञानिकों में इतनी क्षमता है कि वे इन चुनौतियों से आसानी से निपट लेंगें।
क्या भारत अभी भी कृषि प्रधान देश है?
इसका जवाब हां या ना, दोनों में हो सकता है। चूंकि अभी भी 50 प्रतिशत आबादी कृषि से ही अपना जीविकोपार्जन करती है। अतः उस हिसाब से सामाजिक तौर पर भारत को कृषि प्रधान देश कहा जा सकता है। लेकिन, यदि आर्थिक दृष्टि से कृषि के सकल घरेलू उत्पाद में योगदान को देखें, तो ये सिफ 16 प्रतिशत है। इस दृष्टिकोण से भारत अब कृषि प्रधान देश नहीं रहा।