जहां एक तरफ फसलों एवं कृषि उपज के लिए अंधाधुंध यूरिया व विभिन्न रसायनों का उपयोग बढ़ता जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ कृषि में जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) बीजों का प्रयोग भी बढ़ रहा है। इससे न सिर्फ उत्पन्न होने वाले अनाज रासायनिक रूप से प्रभावित होते हैं अपितु जिस खेत में इनका प्रयोग होता है, उसकी मृदा की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। साथ ही पारिस्थितिक तंत्र को भी एक बहुत बड़ी क्षति पहुंचती है। बढ़ती जनसंख्या और इसके कारण भविष्य में भूख और भुखमरी जैसे संकट से बचाव के लिए विश्व पटल पर अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा खाद्य सुरक्षा जैसे कानून बनाए जा रहे हैं और लोगों को जागरूक भी किया जा रहा है। यही कारण है कि प्रति वर्ष 5 दिसंबर को खाद्य व कृषि संगठन द्वारा मनाए जाने वाले “विश्व मृदा दिवस 2022” की विषयवस्तु “सॉइल वेयर फूड बिगन्स” यानी “मिट्टी जहां भोजन की शुरुआत होती है” है।
मिट्टी की घटती गुणवत्ता चिंता का विषय
औसतन एक पौधे को 18 में से 15 पोषक तत्व मृदा से प्राप्त होते हैं। शेष प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से प्राप्त होते हैं। यही कारण है कि किसी पौधे के विकास एवं कृषि फसल गुणवत्ता के लिए मृदा की गुणवत्ता अच्छी होनी आवश्यक है।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, विश्व की कुल एक तिहाई मृदा का क्षरण हो चुका है। मृदा के गुणवत्ता को प्रभावित करने वाला एक प्रमुख कारक मृदा प्रदूषण भी है। मृदा प्रदूषण का खाद्यान्न, जल तथा वायु पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है, जो प्रत्यक्ष रूप से स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। मृदा प्रदूषण का प्रमुख कारण औद्योगिक प्रदूषण तथा खराब मृदा प्रबंधन है।
संयुक्त राष्ट्र ने भी माना है कि विगत 70 वर्षों में हमारे भोजन में विटामिन और पोषक तत्व की कमी पाई गई है। विश्व के लगभग 2 बिलियन लोग माइक्रो न्यूट्रिएंट्स की कमी के शिकार हैं क्योंकि इसे आसानी से चिन्हित कर पाना कठिन है। इसी कारण इसे अदृश्य भूख के नाम से भी जाना जाता है।
2014 से विश्व मृदा दिवस
मृदा के महत्व को समझते हुए अंतर्राष्ट्रीय मृदा विज्ञान संघ ने 5 दिसंबर को विश्व मृदा दिवस मनाने की सिफारिश की थी। थाईलैंड के नेतृत्व में एफएओ ने विश्व मृदा दिवस की औपचारिक स्थापना का समर्थन किया था। यह दिवस मनाने का निर्णय ग्लोबल सॉइल पार्टनरशिप के तहत एफएओ की 37 वी बैठक में किया गया था। पहला विश्व मृदा दिवस 2014 में मनाया गया था। यह दिन थाईलैंड के दिवंगत राजा भूमिबोल अदुल्यादेज के जन्मदिन से मेल खाता है। वह इस पहल के मुख्य प्रस्तावक थे।
भारत में मृदा संरक्षण
भारत एक कृषि प्रधान देश है। आज भी भारत की 65 प्रतिशत से अधिक की जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। समय के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक विशेषतः मल्टीलेयर प्लास्टिक घरों में उत्पन्न होने वाले जैविक कूड़े के साथ मिलते हुए सीधे खेतों में पहुंच रहे हैं जिसके कारण मृदा की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है। इस कारण भारत क्षेत्रीय मृदा संरक्षण कार्यक्रमों पर फोकस कर रहा है। उदाहरण के लिए, सोहरा पठार में मिट्टी की नमी बढ़ाने के लिए चेरापूंजी ईकॉलॉजिकल प्रोजेक्ट शुरू किया गया है। राष्ट्रीय कृषि विज्ञान योजना भारत में मिट्टी की गुणवत्ता पर केंद्रित है। साथ ही, देश में मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना शुरू की गई है।
क्या क्या कर सकते हैं?
एक प्रकार से देखा जाए तो जीवन का प्रारंभ और अंत मृदा से शुरू होकर मृदा पर ही खत्म होता है। भोजन (कृषि फसल), वनस्पतियां, शोधित भूमिगत जल का यह परोक्ष रूप से मुख्य स्रोत है। स्वस्थ पारिस्थितिकी और मानव कल्याण के लिए मृदा का प्रबंधन किया जाना अति आवश्यक है। इसी कारण अधिक से अधिक लोगों और सामाजिक संस्थाओं को मृदा के प्रबंधन एवं मृदा के स्वास्थ्य के प्रति विश्व मृदा दिवस के माध्यम से जागरूक करने का प्रयास किया जा रहा है। विगत विश्व मृदा दिवस 2021 लगभग 125 देशों के द्वारा मनाया गया और हर वर्ष विश्व मृदा दिवस मनाने वाले देशों की संख्या भी बढ़ेगी।
हम स्वस्थ मृदा एवं इसके प्रबंधन के लिए ये कर सकते हैं: