भारत ने रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) में समझौता करने से इंकार कर दिया है, लेकिन क्या इसके साथ ही यह चर्चा भी समाप्त हो गई है और भारत आगे कभी आरसीईपी में शामिल नहीं होगा? यह सवाल अभी भी खड़ा हुआ है। केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि भारत ने दरवाजे बंद नहीं किए हैं। अगर भारत द्वारा उठाए मसलों पर दूसरे देश तैयार हो जाते हैं तो बातचीत आगे जारी रह सकती है।
4 नवंबर को बैंकाक में हुई आरसीईपी की बैठक में भारत ने समझौते से बाहर होने का निर्णय लिया था। इसके बाद आरसीईपी देशों द्वारा जारी संयुक्त बयान में कहा गया था कि भारत को शामिल करने का प्रयास जारी रहेगा।
5 नवंबर को केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि हमने वर्तमान में समझौते को मानने से इंकार कर दिया है। हमारी कई मांगें थी, जिन पर दूसरे देश तैयार नहीं हुए। हमने कृषि और डेयरी क्षेत्र को आरसीईपी समझौते से बाहर रखने की मांग की थी। भारत ऐसे किसी भी समझौते में शामिल होने के लिए तैयार नहीं है, जिससे भारत के किसान या पशुपालकों को नुकसान हो। इसके अलावा आरसीईपी समझौते में कहा गया था कि यदि किन्हीं दो देशों के बीच मोस्ट फेवर्ड नेशन (एमएफएन) का समझौता है तो उसका फायदा आरसीईपी में शामिल सभी देश उठा सकेंगे। गोयल ने कहा कि भारत ने इस पर आपत्ति जताई थी।
गोयल ने बताया कि आरसीईपी समझौते की शर्त थी कि निवेश को लेकर देश में केंद्र सरकार, राज्य सरकार, स्थानीय निकाय या पंचायत स्तर पर कोई भी निर्णय लिया जाता है तो उस पर आरसीईपी में चर्चा होगी, जिसे भारत ने मानने से इंकार कर दिया। भारत ने कहा कि केवल केंद्र व राज्य सरकार के स्तर पर होने वाले निर्णयों पर चर्चा हो सकती है, लेकिन नगर निकाय या पंचायत स्तर पर होने वाले निर्णयों को आरसीईपी की चर्चा में शामिल नहीं किया जाना चाहिए।
गोयल ने बताया कि भारत ऐसे भी समझौते का पक्ष लेने को तैयार नहीं था, जिसके तहत कोई देश, दूसरे देशों के रास्ते व्यापार कर सके। पूरे रीजन में एक ही टैरिफ लागू होना चाहिए। उल्लेखनीय है कि आशंका जताई जाती रही है कि चीन दूसरे देशों के रास्ते भारत में अपना सामान पहुंचा सकता है, इससे भारत को बड़ा नुकसान होगा।
गोयल ने बताया कि बैंकाक में हुई आरसीईपी देशों की वार्ता में लगभग 70 विषयों पर मतभेदों पर चर्चा हुई, इनमें से 50 विषय भारत से जुड़े थे। इनमें से कुछ विषयों पर दूसरे देश तैयार थे, लेकिन भारत अपनी सभी मांगों को मनाने के लिए अड़ा रहा। हम चाहते थे कि समझौते ऐसी स्थिति में है, जिससे भारत को व्यापार घाटा न हो और हम अपने उद्योग, कृषि, सेवा क्षेत्र का संरक्षण कर सकें। भारत ने इस पर भी चिंता जताई कि कई देश गलत तरीक से अपना माल पहुंचा रहे हैं, उन्हें इस पर पाबंदी लगानी चाहिए। कई मांगें मान ली गई, लेकिन अंत में भारत ने जब आकलन किया तो पाया कि अभी भी उनके कई विषयों पर सहमति नहीं बन पाई है, इसलिए हमने आरसीईपी से बाहर रहने का निर्णय लिया है।