कृषि

क्या बिहार में किसानों को धान से करनी होगी तौबा? बारिश का बदलता पैटर्न इसी ओर कर रहा इशारा

Mohd Imran Khan, Lalit Maurya

मॉनसून में बारिश के बदलते पैटर्न ने बिहार में किसानों की चिंताओं को और बढ़ा दिया है। जून-जुलाई में हुई सीमित बारिश ने राज्य में धान की फसलों को बुरी तरह प्रभावित किया है। हालांकि उसके बाद अगस्त में हुई मध्यम से भारी बारिश ने कुछ किसानों को राहत जरूर दी है, जिसके बाद यह किसान अपने धान की रोपाई करने में कामयाब रहे।

लेकिन दुर्भाग्य से, आधा दर्जन से अधिक जिलों में किसान उतने भाग्यशाली नहीं थे, क्योंकि बारिश में कमी का असर अगस्त में भी जारी रहा। नतीजन इन क्षेत्रों में धान की रोपाई में अड़चने आई। वहीं कमजोर मॉनसून प्रणाली के चलते अगस्त के बाकी दिनों में भी अच्छी बारिश को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है।

बारिश में कमी के चलते बिहार के नवादा, औरंगाबाद, शेखपुरा, जमुई और नालंदा में धान की रोपाई बुरी तरह प्रभावित हुई है। समस्या को देखते हुए राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 19 अगस्त को हवाई सर्वेक्षण भी किया था, जिसके बाद उन्होंने शीर्ष अधिकारियों को सिंचाई के लिए किसानों को 16 घंटे बिना किसी बाधा के बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने का निर्देश दिया। साथ ही उन्होंने डीजल सब्सिडी जैसी सभी आवश्यक सहायता देने की बात भी कही है।

मुख्यमंत्री कार्यालय से जारी एक आधिकारिक विज्ञप्ति ने जानकारी दी है कि नीतिश कुमार ने संबंधित जिला अधिकारियों को सतर्क रहने और स्थिति पर बारीकी से नजर रखने को कहा है।

बिहार कृषि विभाग द्वारा साझा की गई जानकारी के अनुसार, 20 अगस्त, 2023 तक राज्य में 93.5 फीसदी रोपाई पूरी हो चुकी है। इस साल विभाग ने 35.9 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान लगाने का लक्ष्य रखा था। लेकिन अगस्त के तीसरे सप्ताह तक केवल 33.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में ही धान की रोपाई हो सकी है।

वहीं जिन किसानों ने धान की रोपाई कर ली है, उन्हें भी अपनी फसलों को बचाने की चिंता सता रही है, क्योंकि अगर आने वाले दिनों में पर्याप्त बारिश नहीं होती तो वो किसानों पर भारी पड़ेगा।

पटना में पाली के एक किसान बलदेव प्रसाद शर्मा ने बताया कि, "जून के मध्य में शुरूआती मॉनसून में बिल्कुल बारिश नहीं हुई, उसके बाद जुलाई में कुछ बारिश हुई। इसके बाद लम्बे समय तक सूखा रहा। हालांकि अगस्त की शुरूआत में भारी बारिश ने राहत जरूर दी, जिसकी वजह से हम धान की रोपाई कर सके। लेकिन हमें अपनी फसलों के लिए बारिश की सख्त जरूरत है। नहीं तो धान को बचा पाना मुश्किल हो जाएगा।"

देखा जाए तो शर्मा का डर निराधार नहीं है, क्योंकि राज्य भर के किसान बारिश की आस में आसमान की ओर टकटकी लगाए हुए हैं। मुजफ्फरपुर जिले में गायघाट के बीरेंद्र यादव का कहना है कि, "आने वाले दिनों में भारी बारिश धान की फसलों को बचाने के लिए जरूरी है क्योंकि धान की फसल बारिश पर निर्भर करती है।"

जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हो रहा बिहार में बारिश का पैटर्न

बिहार कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के मुताबिक, धान की रोपाई का सबसे अच्छा समय 20 जून से 15 जुलाई के बीच होता है। इसके बाद किसान जुलाई के अंत तक या ज्यादा से ज्यादा अगस्त के पहले सप्ताह तक रोपाई कर सकते हैं। वहीं जिस धान की रोपाई 15 अगस्त के बाद की जाती है उसकी गुणवत्ता और उपज कम होती है।

वहीं भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी), पटना के वैज्ञानिकों का कहना है कि 20 अगस्त, 2023 तक, बिहार में सामान्य से करीब 30 फीसदी कम बारिश हुई है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक एक जून से 20 अगस्त तक होने वाली सामान्य बारिश 680 मिलीमीटर है, लेकिन अब तक पूर्वी हिस्से में अब तक केवल 470.8 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई है। वहीं इस साल जून और जुलाई के दौरान राज्य में सामान्य से 48 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई है।

कृषि सचिव संजय कुमार अग्रवाल ने कहा है कि विभाग ने किसानों को मक्का जैसी फसलों को चुनने की सलाह दी है, जिनके लिए कम सिंचाई की जरूरत होती है। अग्रवाल ने आगे कहा कि विभाग ने जिन जिलों में बारिश की कमी है, वहां किसानों को मक्का के बीज मुफ्त में वितरित दिए हैं।

गया में स्थिति चिंताजनक है, जहां सामान्य से 39.7 फीसदी कम बारिश हुई है। एक जिला अधिकारी ने बताया कि जहां राज्य में जून, जुलाई और अगस्त के दौरान सामान्यतः 582.03 मिलीमीटर बारिश होती है। वहीं गया में इस दौरान केवल 350.83 मिलीमीटर बारिश हुई है।

बहरहाल, आईएमडी ने 22 अगस्त 2023 से उत्तरी बिहार के कुछ जिलों में भारी बारिश की भविष्यवाणी की है, जो किसानों के लिए राहत की खबर है। इस बारे में राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर एडवांस्ड स्टडीज ऑन क्लाइमेट चेंज के वरिष्ठ वैज्ञानिक अब्दुस सत्तार का कहना है कि, "बदलती जलवायु के कारण राज्य में बारिश के पैटर्न में काफी बदलाव आया है।"

उनका आगे कहना है कि, "इस प्रवृत्ति के भविष्य में भी जारी रहने की आशंका है, जिसकी वजह से खरीफ फसलें बुरी तरह प्रभावित हो सकती हैं। ऐसे में किसानों को वैकल्पिक फसलें अपनानी होंगी।"