कृषि

क्या भारतीय किसानों के लिए बेहद डरावना साल साबित होगा 2023

सूखी सर्दी, अल नीनो का आगमन और बिना कमाई के पिछले दो साल के कारण इस साल भारतीय किसानों के लिए भयावह हो सकते हैं

Richard Mahapatra

भारतीय किसान जितना ज्यादा बेहतरी की उम्मीद करते हैं, उससे ज्यादा गहरे संकट में फंस जाते हैं।

पिछले दो साल से एक भी मौसम ऐसा नहीं था, जो "सामान्य" रहा हो और जिसने खेती व किसानों पर असर न डाला हो। साल 2021 का दक्षिण-पश्चिम मानसून आंकड़ों की दृष्टि से सामान्य था, क्योंकि सितंबर में बहुत ज्यादा बारिश के कारण पिछले महीनों की कमी पूरी हो गई और कुल बारिश का आंकड़ा सामान्य स्तर पर पहुंच गया।

1901 के बाद अगस्त 2021 छठा सबसे सूखा महीना था। कुछ किसानों की फसल सामान्य थी, जबकि अन्य की फसल खराब हो गई थी। लेकिन वे आशान्वित थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि मानसून की देर से वापसी और सितंबर और अक्टूबर में भारी बारिश के कारण रबी के सीजन में लाभ मिलेगा, क्योंकि जलाशय का स्तर अच्छा रहेगा और खेतों में भी नमी रहेगी।

लेकिन 2022 की शुरुआत में भारी बारिश और शीतलहर ने खड़ी फसलों को नुकसान पहुंचाकर उस उम्मीद को धराशायी कर दिया। दूसरी ओर, रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हो गया तो दुनियाभर में एक गंभीर खाद्य संकट खड़ा होने लगा। ऐसे में, भारतीय किसानों को अपनी लड़ाई खुद लड़नी थी।

मानसून की देर से वापसी और अधिक बारिश की घटनाओं ने रबी के रकबे को बढ़ा तो दिया। लेकिन अप्रैल-मई 2022 में कटाई के समय भीषण गर्मी की वजह से बड़े पैमाने पर फसल खासकर गेहूं का नुकसान हुआ। इससे कुल अनाज उत्पादन में गिरावट आई।

2022 में मानसून का इंतजार शुरू हुआ और 2021 की विकट स्थिति फिर दोहराई। इस साल भी कहीं भारी तो कहीं बेहद कम बारिश हुई, लेकिन अंत में सितंबर माह में भारी बारिश के कारण मानसून को सामान्य तक घोषित कर दिया गया, लेकिन इस साल भी फसलों का भारी नुकसान हुआ।

कम से कम पिछले तीन साल से सितंबर में अत्यधिक बारिश निरंतर हो रही है। साल 2022 में मानसून अक्टूबर माह तक जारी रहा और देश के 36 मौसम उपखंडों में से 52 फीसदी उपखंडों में सामान्य से अधिक वर्षा हुई।

इससे धान की फसल कम हो गई और रबी की फसल में लगभग दो महीने की देरी हुई। तापमान में अचानक वृद्धि के कारण गेहूं की फसल का विकास रुक गया और सरकार ने कमी की आशंका को देखते हुए मई में गेहूं का निर्यात बंद कर दिया।

इसके चलते लगातार तीन फसली मौसमों के दौरान ऐसा कोई भी मौका नहीं आया, जब किसी भी किसान ने लागत भी वसूल कर ली हो, बल्कि बदले में उसे घाटा ही हुआ।

एक बार फिर साल 2023 की रबी फसल पर उम्मीदें टिक गई हैं। किसानों ने पिछले साल के मुकाबले इस साल 15 फीसदी अधिक बुआई की है। लेकिन इस साल भी किसानों को झटका लग रहा है। जनवरी के अंत तक सर्दी प्रभावी रूप से गायब हो गई और देश मार्च के मध्य तापमान का अनुभव कर रहा था।

और यह असामान्य उच्च तापमान न केवल भारत के गेहूं उगाने वाले उत्तरी भागों में बल्कि देश के पूर्वी भाग में भी महसूस किया जा रहा है। यह गर्मी पिछले साल की तरह बल्कि उससे ज्यादा गेहूं की फसल को नुकसान पहुंचाएगी। इसका मतलब है कि बीते दो साल से किसानों की फसलों के लिए मौसम सामान्य नहीं रहा है। किसानों को कुछ भी आमदनी नहीं हुई। जो आगे भी जारी रह सकता है।

क्या अगला खरीफ का मौसम सामान्य रहेगा? मौसम के पूर्वानुमान ने खतरे की घंटी बजा दी है - तीन साल का ला नीना खत्म हो रहा है और खतरनाक अल नीनो जुलाई तक 2023 में प्रवेश करेगा। अल नीनो की वजह से आमतौर पर भारत में एक कमजोर मानसून और अत्यधिक गर्मी होती है।

यानी रबी की फसल गंवाने के बाद किसान अब खरीफ से भी उम्मीद नहीं कर सकता है। जैसा कि कहा जाता है कि उम्मीद की कोई रणनीति या योजना नहीं होती। लेकिन किसान के पास तो केवल यही एक वस्तु है, अगर उम्मीद ने भी साथ नहीं दिया तो क्या होगा?

देश की खाद्यान्न भंडार की स्थिति पर भी असर पड़ने वाला है, जिससे खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ रही है और साथ ही गरीबों की खाद्य सुरक्षा भी प्रभावित होने वाली है। रबी की फसल पिछले साल के स्तर तक पहुंचने की उम्मीद क्षीण होती जा रही है।

दूसरी ओर, सरकार का खाद्य भंडार कम होता जा रहा है, पहला खाद्य सुरक्षा योजना की प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए और दूसरा मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने के लिए लगभग 30 लाख टन अनाज बाजार में जारी करने के कारण।

अगले दो महीनों में बंपर फसल नहीं होने का मतलब है कि हम कमी की स्थिति से जूझ रहे हैं। इससे खाद्य महंगाई बढ़ेगी। खाद्य सुरक्षा योजना के तहत मुफ्त अनाज देने के बावजूद लोगों को खाने के लिए ज्यादा खर्च करना पड़ेगा। इससे आमदनी के स्तर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। खासकर उन किसानों पर ज्यादा असर पड़ेगा, जिन्होंने पिछले चार लगातार मौसमों से लाभ अर्जित नहीं किया है।