कृषि

नाइट्रोजन उपयोग के मामले में भारतीय धान की किस्मों में क्यों है इतनी विविधता: एनजीटी

Susan Chacko, Lalit Maurya

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 23 अगस्त 2024 को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय से यह बताने को कहा है कि भारत में धान की विभिन्न लोकप्रिय किस्मों में नाइट्रोजन उपयोग की क्षमता में इतनी विविधता क्यों है। इस बारे में ट्रिब्यूनल ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, पर्यावरण मंत्रालय और सीपीसीबी से भी अपनी प्रतिक्रिया देने निर्देश दिया है।

बता दें कि 11 अगस्त, 2024 को अंग्रेजी अखबार द हिंदू में प्रकाशित एक खबर के आधार पर एनजीटी ने इस मामले पर स्वतः संज्ञान लिया था।

इस खबर में सुझाव दिया गया है कि धान की ऐसी नई किस्में विकसित की जानी चाहिए जो कम नाइट्रोजन का उपयोग करती हैं और जिनकी पैदावार अच्छी होती है। इससे न केवल उर्वरकों पर खर्च होने वाला पैसा बचेगा। साथ ही नाइट्रोजन से होने वाले प्रदूषण में भी कमी आएगी।

खबर के मुताबिक 2020 में, वैश्विक उत्सर्जन के करीब 11 फीसदी के लिए भारत जिम्मेवार था। वहीं इस मामले में चीन पहले स्थान पर था, जो दुनिया के करीब 16 फीसदी उत्सर्जन कर रहा है। नाइट्रोजन उत्सर्जन को लेकर किए गए एक वैश्विक आकलन के मुताबिक, इस उत्सर्जन का प्रमुख स्रोत उर्वरकों का उपयोग है। 

नमक, चीनी में माइक्रोप्लास्टिक: एनजीटी ने सीपीसीबी से मांगा जवाब

भारत में माइक्रोप्लास्टिक युक्त नमक और चीनी ब्रांडों के मामले पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अपनी प्रतिक्रिया देने को कहा है।

23 अगस्त, 2024 को दिए अपने इस आदेश में ट्रिब्यूनल ने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद और भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण को भी अगली सुनवाई से कम से कम एक एक सप्ताह पहले अपने जवाब देने को कहा है। इस मामले में अगली सुनवाई तीन दिसंबर, 2024 को होनी है।

गौरतलब है कि इस मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 13 अगस्त, 2024 को बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी एक खबर पर स्वतः संज्ञान लिया है। इस खबरे में एक अध्ययन पर प्रकाश डाला गया है, जिसके मुताबिक भारत में नमक और चीनी के अधिकांश ब्रांडों में माइक्रोप्लास्टिक्स मौजूद हैं। इनमें फाइबर, पैलेट्स, फिल्म्स और प्लास्टिक के टुकड़े शामिल थे।

खबर के मुताबिक अध्ययन में दस प्रकार के नमक की जांच की गई है, जिसमें आम घरों में उपयोग होने वाला नमक, सेंधा नमक और समुद्री नमक शामिल था। इसके साथ ही ऑनलाइन और स्थानीय बाजार से खरीदी गई पांच प्रकार की चीनी शामिल थी। रिपोर्ट से पता चला है कि आयोडीन युक्त नमक में माइक्रोप्लास्टिक्स की बहुत ज्यादा मात्रा मौजूद थी। इसमें यह माइक्रोप्लास्टिक्स पतले बहुरंगी रेशे और फिल्म के रूप में पाए गए थे।

एनजीटी ने रायसीना में अंसल अरावली रिट्रीट में तोड़फोड़ के कुछ हफ्ते बाद ही हुए पुनर्निर्माण पर मांगी रिपोर्ट

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पर्यावरण मंत्रालय (चंडीगढ़ क्षेत्रीय कार्यालय) और हरियाणा के मुख्य सचिव सहित अन्य लोगों को एक शिकायत पर अपना जवाब देने को कहा है।

23 अगस्त, 2024 को दिया यह आदेश गुड़गांव के रायसीना में अंसल अरावली रिट्रीट में चल रही पुनर्निर्माण गतिविधियों से जुड़ा है। गौरतलब है कि एनजीटी का यह निर्देश जिला प्रशासन द्वारा क्षेत्र में अवैध फार्महाउसों को ध्वस्त करने के आदेश के दो सप्ताह बाद आया है।

इसके साथ ही अदालत ने हरियाणा के प्रधान मुख्य वन संरक्षक, हरियाणा अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र और गुड़गांव के जिला मजिस्ट्रेट को भी हलफनामे के रूप में अपना जवाब प्रस्तुत करने के लिए कहा है। इस मामले में अगली सुनवाई तीन दिसंबर, 2024 को होगी।

गौरतलब है कि एनजीटी ने 28 अगस्त, 2024 को टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक खबर के आधार पर स्वतः संज्ञान लेते हुए इस मामले को उठाया था।

खबर में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि पुनर्निर्माण गतिविधियों में न केवल ध्वस्त संरचनाओं का दोबारा निर्माण शामिल है। साथ ही वहां कहीं ज्यादा संरक्षित भूमि को साफ किया गया है। इसके साथ ही वहां नई सड़कें बनाई गई हैं और बिजली के खंभे भी लगाए जा रहे हैं।

खबर में बताया गया है कि ध्वस्त किए गए कई फार्महाउसों का पहले ही पुनर्निर्माण किया जा चुका है। वहीं 15 दिन पहले गिराए गए फार्महाउसों का पुनर्निर्माण किया जा रहा है। हालांकि सरकार द्वारा निर्माण पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद और पहले भी फार्महाउसों और चारदीवारी सहित कई अवैध संरचनाओं को ध्वस्त किए जाने के बावजूद, लोग अभी भी इस क्षेत्र में जमीन खरीद रहे हैं।

खबर में कहा गया है कि रायसीना हिल्स और अरावली रिट्रीट सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान और असोला भट्टी वन्यजीव अभयारण्य के बीच वन्यजीव गलियारे के रूप में काम करते हैं। इसलिए उनके संरक्षण और अवैध संरचनाओं एवं गतिविधियों को हटाने की आवश्यकता है।

एनजीटी का कहना है कि इस खबर में पर्यावरण नियमों, विशेषकर वन संरक्षण अधिनियम, 1980 और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के पालन से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाया गया है।