फरवरी में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे पर कई व्यापारिक समझौते होने की उम्मीद है। भारत के किसानों को आशंका है कि अपने कृषि क्षेत्र को बचाने के लिए अमेरिका कृषि उत्पादों के निर्यात के लिए नए बाजार ढूंढ़ रहा है और व्यापारिक समझौते उसके शीर्ष एजेंडे में शामिल है।
इस आशंका की वजह भारत और अमेरिका के बीच चल रही बातचीत है जिसमें कृषि क्षेत्र में समझौते की बात चल रही है। 13 नवम्बर 2019 को भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि रोबर्ट लाइटहाइज़र के बीच मुलाकात हुई थी, जिसमें व्यापार समझौते पर शुरुआती चर्चा हुई थी।
पिछले साल नवंबर महीने के तीसरे हफ्ते में अमेरिका के व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल ने भारत दौरा किया था जिस दौरान भारत अमेरिका व्यापार समझौते पर विस्तृत चर्चा की गई थी। अगर इस व्यापारिक समझौते पर हस्ताक्षर होते हैं तो दूध उत्पादों, सेब, अखरोट, बादाम, सोयाबीन, गेहूं, मक्का, मुर्गी पालन उत्पादों का आयात बहुत कम आयात शुल्क पर भारत में किया जाएगा जिसके गंभीर दुष्परिणाम भारत के किसानों को झेलने पड़ेंगे।
इस समझौते से किसानों को होने वाले दुष्परिणामों के विषय में केंद्र सरकार को आगाह करने के लिए राष्ट्रीय किसान महासंघ 17 फरवरी को देशव्यापी प्रदर्शन का आयोजन कर रहा हैं। 17 फरवरी को 200 से अधिक जिला मुख्यालयों पर प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा जाएगा।
भारत में बाजार तलाश रहा अमेरिका
राष्ट्रीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक शिव कुमार कक्काजी कहते हैं कि अमेरिका व चीन के बीच व्यापार युद्ध व अमेरिका में बढ़ते कृषि उत्पादन और घटते कृषि निर्यात की वजह से अमेरिका के कृषि क्षेत्र पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। अमेरिका का कृषि क्षेत्र निर्यात पर आधारित है, 2011-13 तक कपास व बादाम उत्पादन का 70 प्रतिशत और गेहूं व चावल का 50 प्रतिशत उत्पादन अमेरिका ने निर्यात किया था।
2018 में अमेरिका का कृषि निर्यात 1% बढ़कर 140 बिलियन डॉलर हो गया, दूसरी तरफ अमेरिका का कृषि आयात 6% बढ़कर 129 बिलियन डॉलर हो गया। इस प्रकार कृषि क्षेत्र में अमेरिका का व्यापारिक मुनाफा मात्र 11 बिलियन डॉलर रह गया जो पिछले 14 साल का सबसे न्यूनतम है। अमेरिका का कृषि निर्यात कम होने की वजह से घरेलू बाजार में कृषि उत्पादों के दाम गिर गए हैं। अब अमेरिका नया बाजार तलाश रहा है।
किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल कहते हैं कि भारत में अधिकतर किसान अपने उत्पाद लागत मूल्य से भी कम पर बेचने को विवश हैं जिसका अर्थ है नकारात्मक सब्सिडी, इसके फलस्वरूप किसानों पर कर्ज बढ़ता जा रहा है और किसान आत्महत्या पर विवश हो रहे हैं। एक तरफ केंद्र की मोदी सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने की बात करती है, दूसरी तरफ अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर बातचीत कर रही है जिसके गंभीर दुष्परिणाम भारतीय किसानों को झेलने पड़ेंगे।