कृषि

मोटे अनाज की सरकारी खरीद का लक्ष्य क्यों बढ़ाना चाहती है सरकार?

क्या गेहूं-धान के उत्पादन में कमी की वजह से सरकार मोटे अनाज की सरकारी खरीद को बढ़ाना चाहती है

Raju Sajwan

जलवायु परिवर्तन के कारण गेहूं और चावल के उत्पादन में कमी आ रही है, इसलिए मोटे अनाज की खरीद पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। यह बात किसी जलवायु वैज्ञानिक ने नहीं कही है, बल्कि केंद्रीय खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग (डीएफपीडी) के सचिव सुधांशु पांडे ने कही है। 

इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार को आभास हो चुका है कि आने वाले दिनों में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) के तहत गरीबों को दिए जाने वाले सस्ते राशन के लिए केवल गेहूं और चावल पर निर्भर नहीं रहा जा सकता और इसका विकल्प तलाशना होगा। 

रबी सीजन में गेहूं के उत्पादन में कमी और निर्यात की छूट देने के कारण देश में गेहूं का संकट खड़ा हो गया है। हालांकि 21 अगस्त 2022 को डीएफपीडी की ओर से जारी बयान में कहा गया था कि घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए देश में गेहूं का पर्याप्त भंडार है।

उधर उधर खाद्य नीति विश्लेषक देविंदर शर्मा का कहना है कि सवाल केवल गेहूं-धान के कम उत्पादन का नहीं है, बल्कि सवाल सस्टनेबल एग्रीकल्चर प्रेक्टिस (सतत कृषि अभ्यास) से जुड़ा है। यह जरूरी हो गया है कि देश सतत कृषि प्रणाली को अपनाए। इसके लिए मोटे अनाज को बढ़ावा देना होगा।

खाद्य सचिव ने क्या कहा?

दरअसल, 30 अगस्त 2022 को डीएफपीडी की ओर से आगामी खरीफ विपणन सीजन (केएमएस) 2022-23 की खरीफ फसल के लिए खरीद प्रबंधों पर चर्चा करने के लिए बैठक बुलाई गई थी। इसमें राज्यों के खाद्य सचिव और भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के अधिकारी उपस्थित थे।

हालांकि बैठक में तय हुआ कि खरीफ मार्केटिंग सीजन 2022-23 के दौरान 518 लाख मीट्रिक टन चावल की खरीद की जाएगी। पिछले खरीफ मार्केटिंग सीजन 2021-22 के दौरान 509.82 लाख मीट्रिक चावल की खरीद की गई थी।

लेकिन यह मुद्दा उठा कि रबी मार्केटिंग सीजन 2022-23 में गेहूं की खरीद तय लक्ष्य से बहुत कम रही थी, इसलिए यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि आगामी खरीफ सीजन में चावल की खरीद पर भी असर पड़ सकता है। कुछ राज्यों ने प्रस्ताव रखा कि आगामी खरीफ मार्केटिंग सीजन में मोटे अनाज की खरीद की जाए।

इसके बाद तय हुआ कि आगामी खरीफ सीजन में 13.70 लाख मीट्रिक टन मोटा अनाज (सुपर फूड) खरीदा जाएगा। जबकि अब तक की कुल खरीद 6.30 लाख मीट्रिक टन है। यानी कि मोटा अनाज की खरीद के लक्ष्य में दोगुना से ज्यादा वृद्धि की गई है।

भारतीय खाद्य निगम के आंकड़ों के मुताबिक 31 जुलाई 2022 तक जिन राज्यों में मोटा अनाज खरीदा है, उनमें सबसे ज्यादा कर्नाटक में है। यहां 5.09 लाख टन मोटा अनाज खरीदा गया, इसके अलावा मध्यप्रदेश में 38 हजार, महाराष्ट्र में 41 हजार, ओडिशा में 32 हजार, गुजरात में आठ हजार और उत्तर प्रदेश में केवल तीन हजार टन मोटे अनाज की सरकारी खरीद हुई। हालांकि राज्यवार मोटे अनाज की खरीद का लक्ष्य क्या होगा, यह बाद में तय होगा।

खरीफ की बुआई, धान-दलहन कम, मोटा अनाज ज्यादा

दरअसल, चालू मानसून सीजन 2022 के दौरान बारिश की घोर अनियमितता ने भी खरीफ सीजन को लेकर सरकार की चिंता बढ़ा दी है। क्योंकि चालू खरीफ सीजन में धान और दालों की बुआई बेहद प्रभावित हुई है।

कृषि मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि 26 अगस्त 2022 को समाप्त सप्ताह तक देश में 367.55 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई है तो पिछले साल 2021 के मुकाबले 23.45 लाख हेक्टेयर कम है। वहीं इस साल 127.71 लाख हेक्टेयर में दलहन की बुआई हुई है, जबकि पिछले साल 134.37 लाख हेक्टेयर (6.66 लाख हेक्टेयर कम) में दलहन की बुआई हो चुकी थी।

इस साल अब तक तिलहन की बुआई भी थोड़ी कम हुई है, लेकिन मोटे अनाज की बुआई में वृद्धि हुई है। इस साल 176.33 लाख हेक्टेयर में मोटे अनाज की बुआई हुई है, जो पिछले साल 169.39 लाख हेक्टेयर थी। यानी कि मोटे अनाज की 6.94 लाख हेक्टेयर अधिक बुआई हुई है। सबसे अधिक बाजरे का रकबा बढ़ा है।

पिछले साल 63.19 लाख हेक्टेयर में बाजरा लगाया गया था, लेकिन इस बार 70.12 लाख हेक्टेयर में बाजरा लगाया जा चुका है, जबकि बाजरे का सामान्य रकबा 73.43 लाख हेक्टेयर है। मक्के के रकबे में भी थोड़ी बहुत वृद्धि हुई है। पिछले साल 79.06 लाख हेक्टेयर में मक्का लगाया गया था, जबकि इस साल 80.85 लाख हेक्टेयर में मक्का लगाया जा चुका है।

ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में राज्य सरकारें गेहूं-चावल की बजाय सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत मोटे अनाज का वितरण बढ़ाया जा सकता है। जुलाई 2022 में ऐसा एक प्रयास हो भी चुका है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत कर्नाटक को चावल की जगह 1.13 लाख टन मोटे अनाज का आवंटन किया गया है।

इससे पहले कर्नाटक में 67,019 टन और मध्य प्रदेश में 14,500 टन मोटा एनएफएसए के तहत मोटे अनाज का आवंटन किया गया था।

क्या किसानों को होगा फायदा

लेकिन सरकार के इस फैसले से क्या मोटा अनाज उगाने वाले किसानेां को फायदा होगा? देविंदर शर्मा कहते हैं कि यह एक बड़ा सवाल है। शर्मा कहते हैं कि सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी राज्यों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर मोटे अनाज की खरीद हो, ताकि मोटा अनाज उगाने वाले किसान को उचित दाम मिल सके। 

शर्मा सुझाव देते हैं कि सरकार को फार्मर्स प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन (एफपीओ) के लिए यह अनिवार्य कर देना चाहिए कि वे एमएसपी पर ही खरीददारी करें। 

कितना होता है उत्पादन

अभी देश में लगभग 50 मिलियन (500 लाख टन ) मोटे अनाज का उत्पादन होता है। सबसे अधिक मक्का और फिर बाजरे का उत्पादन होता है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय का 2012-22 का चौथा अग्रिम अनुमान बताता है कि इस साल 9.62 मिलियन टन बाजरे का उत्पादन हो सकता है, जबकि पिछले साल 10.50 मिलियन टन बाजरे का उत्पादन हुआ था। चालू खरीफ सीजन की बुआई के उत्पादन का अनुमान बाद में आएगा। मक्के के उत्पादन में वृद्धि का अनुमान जताया गया है। पिछले साल 30.90 मिलियन टन मक्के का उत्पादन हुआ था, जबकि चौथे अग्रिम अनुमान में 33.62 मिलियन टन उत्पादन का अनुमान है।