कृषि

आखिर क्यों लगातार खुदकुशी कर रहे हैं बुंदेलखंड के किसान?

पिछले कुछ दिनों में झांसी और आसपास के क्षेत्रों में किसानों द्वारा आत्महत्या की खबरें लगातार आ रही हैं

DTE Staff

लक्ष्मी नारायण शर्मा

"उसने कीटनाशक दवा खा ली थी। छोटा भाई था मेरा। हम तीन भाई थे। वह दो-तीन साल से अलग रह रहा था। खाना-पीना सब कुछ अलग था। हमारे तीनों लोगों के हिस्से में सात-सात बीघे जमीन आई थी। पिताजी का किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) भी था। उसे हम लोगों ने बांट लिया था। तीनों लोग हिस्सा बांट लेते थे और जमा कर देते थे। उसने कुछ कर्जा ले लिया था। साहूकारों का भी कर्ज था। केसीसी भी थी। सात बीघा में मटर बोई थी। खेत में पानी भरा हुआ था। मटर केवल दस कुंतल ही निकली तो वह सदमे में आ गया। परेशान रहने लगा। वह एक दिन मऊरानीपुर गया। वहां से वह दवा लेकर आया और खेत पर गया। वहीं पर उसने कीटनाशक खा लिया। आसपास के लोगों ने देखा तो घर आकर सूचना दी। वहां से अस्पताल ले गए लेकिन उसकी मौत हो गयी। उस पर सब मिलाकर लगभग चार लाख रूपये का कर्ज था। उसकी शादी हो गयी थी और एक लड़का व एक लड़की है।"

उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के मड़वा गांव के रहने वाले सत्यभान एक सांस में यह सब कह जाते हैं और रुआंसे हो जाते हैं। उनके छोटे भाई अम्बिका पटेल ने 22 मार्च 2022 को अपने खेत पर ही कीटनाशक पी लिया था और इलाज के दौरान मेडिकल कॉलेज में अगले दिन 23 मार्च को उसकी मौत हो गई थी। 

अम्बिका के पिता के नाम पर दो लाख रुपये का केसीसी और मां के नाम अस्सी हजार रुपये का केसीसी था। खेत के बंटवारे के बाद इस कर्ज को भरने में भी अम्बिका को हिस्सेदारी निभानी थी। इसके अलावा उसने साहूकारों से लगभग तीन लाख रुपये कर्ज ले रखा था। सब मिलाकर उस पर लगभग चार लाख रुपये का कर्ज था। बेमौसम बारिश से मटर की फसल कमजोर हो गई थी और सात बीघे में लगभग दस क्विंटल की उपज हुई थी। अम्बिका की शादी हो चुकी थी और दो छोटे बच्चे भी हैं, जिनको पालने की उस पर जिम्मेदारी थी। 

झांसी और आसपास के इलाकों में किसानों की ख़ुदकुशी की घटनाएं बढ़ रही हैं। इस घटना से कुछ दिन पहले 13 मार्च को झांसी जिले के ही रहने वाले रौरा गांव के 38 साल के अरविन्द अहिरवार ने फांसी लगाकर ख़ुदकुशी कर ली थी। वह एक ओर कर्ज के बोझ में दबा था तो दूसरी ओर पारिवारिक जिम्मेदारियों को उठाने में भी काफी दिक्कत महसूस कर रहा था। ग्रामीणों के मुताबिक अरविन्द की पत्नी का कुछ महीने पहले सांप के काटने से निधन हो गया था और अब उसके चार मासूम बच्चे अनाथ हो गए, जिनमें से एक बच्चा बेहद गंभीर बीमारी का सामना कर रहा है।

9 मार्च को झांसी जिले के टहरौली तहसील के राजापुर गांव के 45 साल के संतोष बरार ने फांसी लगाकर ख़ुदकुशी कर ली थी। संतोष पर बुजुर्ग मां, पत्नी और छह बच्चों की जिम्मेदारी थी। उसके पास लगभग पांच बीघा जमीन था, जिसमें से आधा उसने बंटाई पर दे रखा था। संतोष खेती, मजदूरी और चौकीदारी कर अपना परिवार चला रहा था। वह दो बच्चियों की शादी की भी तैयारी कर रहा था। इसी महीने 19 मार्च को पूंछ थानाक्षेत्र के चितगुवां के गौरी शंकर राजपूत ने ट्रेन से कटकर और 27 मार्च को गुरसराय थानाक्षेत्र के ग्राम अस्ता में 52 वर्षीय अवधेश कुमार ने फांसी लगाकर ख़ुदकुशी कर ली। 

किसान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष शिव नारायण सिंह परिहार कहते हैं कि ' मार्च महीने में झांसी जिले में इन किसानों के अलावा कई अन्य किसानों ने भी अपनी जान दी है। हमने खुदकुशी के सभी मामलों में प्रशासन से पीड़ित परिवार की मदद और जांच की मांग की है। प्रशासन उन मामलों में तो किसानों के परिवारों की मदद कर देता है, जिसमें सड़क दुर्घटना, सांप काटने, बीमारी या किसी हादसे के कारण से से मौत हुई हो लेकिन खुदकुशी के मामलों में तमाम कोशिशों के बाद भी पीड़ित परिवारों की मदद नहीं हो पाती है।'

शिव नारायण आगे कहते हैं कि बुंदेलखंड में खेती में आने वाली लागत अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक है जबकि यहां उपज कम है। खेती की लागत में जिस औसत में बढ़ोत्तरी हुई है, उस औसत में उपज के दाम नहीं बढ़े हैं। खर्च की तुलना में आमदनी बेहद कम है। जो लोग कृषि पर निर्भर हैं, उनके ऊपर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। बच्चों की पढाई, लिखाई, दवाई और रोजमर्रा की जरूरतें जब पूरी नहीं होती हैं तो घर परिवार में कलह का माहौल पैदा होता है। यह माहौल भी किसानों की ख़ुदकुशी का एक बड़ा कारण साबित होता है।' 

बुंदेलखंड के उत्तर प्रदेश वाले हिस्से में सात जिले हैं - झांसी, जालौन, ललितपुर, महोबा, बांदा, हमीरपुर और चित्रकूट। कांग्रेस पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने पिछले वर्ष विधानसभा में बुंदेलखंड के किसानों की आत्महत्या का मसला उठाया था। तब उन्होंने यह दावा किया था कि बुंदेलखंड के उत्तर प्रदेश के हिस्से में सात जिलों में आर्थिक तंगी और फसल बर्बाद होने से दो वर्षों में 850 किसानों ने आत्महत्या की है।

झांसी जनपद के मऊरानीपुर तहसील के एसडीएम अंकुर श्रीवास्तव कहते हैं कि यदि किसी किसान की दुर्घटना से मौत हुई है तो उसे कृषक दुर्घटना बीमा में कवर कर लेते हैं और परिवार की मदद कर देते हैं। दैवीय आपदा से मृत्यु पर भी प्रभावित परिवार की मदद की जाती है। आत्महत्या के मामलों में पारिवारिक लाभ योजना से मदद देते हैं। जहां तक आत्महत्या की वजहों की बात है तो जो घटनाएं सामने आती हैं, हम लेखपाल के माध्यम से रिपोर्ट मंगाते हैं।

पिछले साल दो-तीन जगहों पर घटना हुई थी और हमने उनके कारणों की जांच कराई थी। एक मामले में किसान के सामने बेटी की शादी की समस्या थी और उसकी अपनी पत्नी से लड़ाई हुयी थी। उसके पास पक्का मकान था। एक किसान ट्रेन से कट गया था। जांच में मालूम चला कि उसने शराब पी रखी थी और वह ट्रेन की चपेट में आ गया था। जहां तक कर्ज या अन्य समस्याओं की बात है तो किसान लगातार अपनी समस्याएं लेकर हमारे पास आते हैं और शासन की योजनाओं के माध्यम से उनकी हर तरह से मदद की जाती है। 

झांसी जिले की गरौठा विधानसभा सीट से बीजेपी के विधायक और किसान नेता जवाहर लाल राजपूत कहते हैं कि हो सकता है कुछ जगहों पर आत्महत्या का कारण कर्ज रहा हो, लेकिन सभी मामलों में ऐसा नहीं है। कहीं परिवार में विवाद की वजह से किसान आत्महत्या करते हैं तो कहीं शराब पीकर विवाद होने के कारण। सरकार बुंदेलखंड के किसानों पर ख़ास ध्यान दे रही है। इस समय बुंदेलखंड में फसलें भी ठीक हो रही हैं। जिन जगहों पर ओलावृष्टि से फसलें बर्बाद हुईं, हमने उन जगहों का सर्वे कराया और किसानों को मुआवजा भी मिला।