कृषि

निजी या सरकारी: कृषि पर कौन कर रहा है कितना निवेश

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी कृषि में अधिक निजी निवेश चाहते हैं, लेकिन यह पहले से ही निजी निवेश पर कायम है

Richard Mahapatra

राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव में प्रधानमंत्री नरेंद मोदी ने एक बार फिर स्पष्ट किया है कि कृषि उनकी सरकार की उच्च प्राथमिकता है। उन्होंने कहा कि कृषि हमारे देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। उन्होंने सही समय पर बीमारी की सही पहचान की है। हालांकि यह ऐसा समय है, जब लोग खेती-किसानी छोड़ कर रहे हैं।

अपने भाषण में उन्होंने सवाल किया कि कृषि क्षेत्र में कॉरपोरेट क्यों नहीं निवेश करते? हमें (सरकार को) कॉरपोरेट को प्रोत्साहित करना चाहिए। उनके (कॉरपोरेट) लिए नई नीतियां बनानी चाहिए। ट्रेक्टर बनाना ही काफी नहीं है। खाद्य प्रसंस्करण, गोदाम, कोल्ड स्टोरेज में भी कॉरपोरेट के निवेश की जरूरत है।  

यहाँ भी, इस पर वाद विवाद नहीं किया जा सकता है कि किसानों को सही मूल्य मिले, इसके लिए कहां और किसे लक्षित किया जाए। जैसे कि- सरकारी अनुमान के अनुसार, देश में 40 लाख हेक्टेयर तक बागवानी फसलों के विस्तार करने की गुंजाइश है। इससे बागवानी में 80 लाख अतिरिक्त रोजगार के अवसर पैदा होंगे। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, बागवानी  की फसलों से प्रति हेक्टेयर 110,000 रुपये तक की आमदनी में वृद्धि होती है।

लेकिन बागवानी किसानों के समक्ष फसल की बिक्री व उसके बाद होने वाला नुकसान एक बड़ी चुनौती है। इस वजह से किसान पहले ही इस फसल के प्रति आकर्षण खो चुके हैं। बावजूद इसके, सरकार यह कहने में गर्व महसूस करती है कि भारत दुनिया में सब्जियों और फलों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, जबकि ये जल्दी खराब होने वाली उपज है और फल व सब्जियों की प्रति व्यक्ति उपलब्धता भी काफी कम है। इतना ही नहीं, फसल कटने के बाद किसानों को लगभग 25 से 30 फीसदी नुकसान झेलना पड़ता है।  यह नुकसान कोल्ड चेन की संख्या कम होने की वजह से होता है।

1982-83 से 2011-12 के दौरान, हर दशक में बागवानी उत्पादन में वृद्धि हुई, लेकिन 2004-05 के बाद से उपज के थोक मूल्य में गिरावट आई। हर साल, अपनी उपज बेचने में सक्षम नहीं होने के कारण किसानों को लगभग 63,000 करोड़ रुपये का नुकसान झेलना पड़ता है। जबकि इसके लिए वे पहले ही निवेश कर चुके हैं। बस इस चौंका देने वाले आंकड़े की समझ बनाने के लिए: फसल-नुकसान के नुकसान से बचने के लिए आवश्यक कोल्ड-चेन इन्फ्रास्ट्रक्चर को उपलब्ध कराने के लिए आवश्यक निवेश का यह 70 प्रतिशत है।

लेकिन, प्रधानमंत्री का यह कहना कि कॉरपोरेट सेक्टर कृषि क्षेत्र में निवेश नहीं कर रहा है, इसमें थोड़ा संशय है। क्या वह केवल कॉरपोरेट घरानों / निजी औद्योगिक संस्थानों को ही निजी क्षेत्र मानते हैं। ये कॉरपोरेट घराने व औद्योगिक संस्थान भारत के कृषि यांत्रिक क्षेत्र को चलाते हैं। उन्होंने बीज से लेकर बागवानी और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में काफी निवेश किया है। हालांकि इन व्यवसायों में शोषण की भी बहुत संभावना है।

लेकिन कृषि एक निजी व्यवसाय है। क्योंकि इस क्षेत्र में लगभग 26 लाख करोड़ रुपए सालाना कारोबार किया जाता है। इस क्षेत्र में किसानों द्वारा बड़ी मात्रा में निजी निवेश किया जाता है, हालांकि इनमें से ज्यादातर किसान कर्ज में डूबे हैं।

2011-12 से 2014-15 के दौरान कृषि में 2, 74,432 करोड़ के मुकाबले 2, 54, 495 करोड़ का पूंजी लगाई गई। इसमें से निजी हिस्सेदारी 2011-12 में 2, 38,717 करोड़ और 2014-15 में 2, 20,434 करोड़ की रही। यानी कि इन सालों में सरकारी पूंजी की भागीदारी 2011 में सिर्फ 35715 करोड़ और 2014 में 36061 करोड़ रुपए की रही। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकारों ने इस क्षेत्र में काफी कम निवेश किया है।

ऐसे में, 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के मोदी के वादे को पूरा करने के लिए किसानों को सबसे अधिक निवेश करना होगा। किसानों की आमदनी दोगुनी कैसे हो, इसकेे लिए सरकार की ओर से बनाई गई अशोक दलवई कमेटी ने कहा था कि किसानों की कुल आमदनी में खेती से होने वाली आमदनी का हिस्सा 60 फीसदी है, किसान को शेष 40 फीसदी आमदनी गैर कृषि कार्य होती है। ऐसे में खेती से होने वाली आमदनी को 2022 तक दोगुना करना आसान है। बस इसके लिए खेती से होने वाली आमदनी की हिस्सेदारी 70 फीसदी करनी होगी। लेकिन कमेटी का कहना है कि इसमें सरकार के साथ-साथ निजी क्षेत्र को निवेश बढ़ाना होगा। कमेटी का मानना है कि यदि 2015-16 से 2022 तक किसान की आमदनी में हर साल लगभग 9.23 फीसदी की वृद्धि हो तो 2022 तक किसान की आमदनी दोगुनी हो जाएगी।

लेकिन इसके लिए किसानों को अगले पांच सल 46299 करोड़ रुपए का निवेश करने की जरूरत हे। 2015-16 में किसानों ने 29559 करोड़ रुपए का निवेश किया, लेकिन सरकार को 2015-16 में 64,022 करोड़ रुपये के मुकाबले 1,02,269 करोड़ रुपये का निवेश करना चाहिए था।

अब, सरकार खाद्य प्रसंस्करण या कृषि में बड़े पैमाने में निवेश को बढ़ावा देने की बता कर रही तो सवाल उठता हे कि किसे प्रोत्साहन देगी? मोदी ने सिर्फ इतना कहा है कि सरकार प्रोत्साहन देगी।

लेकिन अगर निजी निवेश का बड़ा हिस्सा किसानों का है, तो उन्हें खेती जारी रखने के लिए क्या प्रोत्साहन दिया जाएगा? यहां यह उल्लेखनीय है कि कॉरपोरेट क्षेत्र की भूमिका फसल कटाई के बाद की है, जबकि किसान की भूमिका फसल बोने से लेकर कटाई और बिक्री तक की है।  

इससे यह बहस शुरू हो जाती है कि इसमें सरकार की क्या भूमिका होगी?