कृषि

उत्तराखंड में गेहूं खरीद, 1051 किसान ही करा पाएं ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन

उत्तराखंड में गेहूं की खरीद शुरू हो चुकी है, लेकिन किसान अभी गेहूं कटाई में लगे हैं

Varsha Singh

उत्तराखंड में गेहूं उगाने वाले किसानों के लिए मार्च की बारिश आपदा के रूप में आई। फिर कोरोना के चलते लॉकडाउन ने मुश्किलें बढ़ा दी। राज्य में सबसे अधिक गेहूं उत्पादन उधमसिंह नगर में होता है। यहां गेहूं की कटाई के लिए मजदूर और मशीनें दोनों ही समय पर उपलब्ध नहीं हो सके। इसलिए कई जगह अब भी फसल की कटाई का काम जारी है। खरीद प्रक्रिया भी बेहद धीमी है। एक अप्रैल से गेहूं क्रय केंद्र खुल जाने चाहिए थे, लेकिन लॉकडाउन को देखते हुए 15 अप्रैल तक केंद्र खोलने के निर्देश दिए गए। अब भी कई जगह क्रय केंद्र नहीं खुल सके हैं।

राज्य में ऑनलाइन प्रक्रिया के चलते भी गेहूं खरीद की रफ्तार धीमी है। ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराने पर किसान को एसएमएस के जरिये टोकन मिलता है। जिसके बाद वो क्रय केंद्र पर अपनी उपज लेकर पहुंचते हैं। कोरोना को देखते हुए ये कदम उठाया गया। राज्यभर में 230 क्रय केंद्र खोलने का आदेश जारी हुआ है। 24 अप्रैल तक राज्य के 1051 किसान अपना रजिस्ट्रेशन करा सके और 45,837.5 क्विंटल गेहूं खरीद हुई।

हरिद्वार में 21 अप्रैल तक मात्र 350 क्विंटल की ही खरीद हुई। सबसे ज्यादा खरीद ऊधमसिंहनगर से हुई है। राज्य में 3.27 लाख हेक्टेयर में गेहूं की बुआई होती है। इसमें करीब डेढ़ लाख हेक्टेयर क्षेत्र ऊधमसिंहनगर और हरिद्वार का है।

सरकार ने इस वर्ष गेहूं का समर्थन मूल्य 1925 रुपए तय किया गया है। पिछले वर्ष ये 1860 रुपए प्रति क्विंटल था। किसानों को पैसे उनके खाते में ट्रांसफर किए जा रहे हैं। सीधा नगद भुगतान न होने से भी किसान सरकारी क्रय केंद्रों पर जाने से बच रहे हैं।

राज्य में दो लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीद का लक्ष्य रखा है। डिप्टी आरएमओ सीएम घिल्डियाल के मुताबिक इस लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल ही है। राज्य में आज तक गेहूं खरीद का लक्ष्य हासिल नहीं हो सका है। गेहूं खरीद में बोरों की कमी भी आड़े आ रही है। सीएम घिल्डियाल कहते हैं कि बोरों की खरीद पश्चिम बंगाल से होती है। लॉकडाउन की वजह से बोरे समय पर नहीं आ पाए। 25 अप्रैल को बोरों की खरीद के लिए टेंडर खुल रहे हैं। इस मुश्किल से निपटने के लिए फिलहाल एक बार इस्तेमाल किए जा चुके बोरों में गेहू खरीद की अनुमति ली गई है।

हरिद्वार के अकबरपुर डाड्डेकी गांव के प्रधान ओमवीर बताते हैं कि भी महिलाएं-पुरुष मिलकर एक दूसरे के खेतों में गेहूं की कटाई कर रहे हैं। उनके गांव में करीब एक हज़ार बीघा में गेहूं की फसल तैयार है। हाथों से हो रही कटाई में एक हफ्ते का समय और लगेगा।

वह बताते हैं कि क्रय केंद्र उनके गांव से करीब चार किलोमीटर दूर है, जो अभी लगा नहीं है। किसान ओमवीर कहते हैं कि उनके गांव के ज्यादातर किसान क्रय केंद्रों पर अपनी उपज नहीं बेचते बल्कि घरों में भी भंडारण करते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सरकार से ज्यादा किसानों को गेहूं की कीमत आटा कंपनियों से मिल जाती है। एक क्विंटल पर 500 रुपये तक का फर्क आ जाता है।

ओमवीर कहते हैं कि क्रय केंद्रों पर गेहूं की झड़ाई होती है जिसमें अच्छे मोटे दाने ले लिए जाते हैं, बारीक दाने छोड़ देते हैं। इसलिए भी उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है। हरिद्वार के मंगलौर में शक्तिभोग और शीतल जैसी आटा कंपनियां सीधे किसानों से गेहूं लेती हैं।

मैदानों की तुलना में पर्वतीय हिस्सों में करीब 15-20 दिन बाद गेहूं की फसल पककर तैयार होती है। चमोली में इस समय गेहूं की फसल की क्रॉप कटिंग की जा रही है। राजस्व टीमें अलग-अलग जगहों पर क्रॉप कटिंग के आधार पर जिले में औसत उपज और उत्पादन के आंकड़े तैयार कर रही है। तय लक्ष्य के मुताबिक गेहूं की खरीद सरकार के लिए चुनौती बनी हुई है।