कृषि

विश्व व्यापार संगठन की वार्ता से क्या हासिल हुआ, मछली पालन पर सब्सिडी पर उठे सवाल

विशेषज्ञों के समूह का दावा है कि मछली पालन पर सब्सिडी का नया मसौदा विकसित देशों के पक्ष में है और छोटे मछुआरों के हितों को जोखिम में डालता है

Himanshu Nitnaware

जेनेवा में आयोजित विश्व व्यापार संगठन के 12वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (मिनिस्ट्रीयल कांफ्रेंस 12)  को 16 जून, 2022 तक एक दिन के लिए बढ़ा दिया गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि मछली पालन (फिशरीज) सब्सिडी सहित कई मुद्दों पर असहमति उभर कर सामने आई।  

विशेषज्ञों के एक वर्ग ने दावा किया है कि 10 जून का प्रस्तावित संशोधित मसौदा ठीक नहीं था और इसका भारत समेत अन्य विकासशील देशों के मछुआरों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

एक गैर-लाभकारी संस्था, थर्ड वर्ल्ड नेटवर्क की रांजा सेनगुप्ता ने डाउन टू अर्थ को बताया, "विकासशील देश स्पेशल एंड डिफरेंशियल ट्रीटमेंट (एस & डीटी) के प्रावधानों का उपयोग करके मछुआरों की रक्षा और फिशरीज सब्सिडी में अनुशासन चाहते हैं। लेकिन जिस तरह से संशोधित मसौदा पेश किया गया है, वह असंतुलित है और मछुआरों के हितों के पक्ष में नहीं है।"

2017 के सतत विकास लक्ष्य 14.6 मैंडेट के अनुसार, अवैध, गैर-रिपोर्टेड और अनियमित (आईयूयू), ओवरफिश्ड स्टॉक और ओवर कैपेसिटी और ओवर फिशिंग जैसे तीन महत्वपूर्ण मुद्दों के तहत बातचीत आगे बढ़ रही है। लेकिन वार्ता विकासशील और विकसित देशों के बीच गहरी खाई से बाधित हो रही है।

सेनगुप्ता ने एक उदाहरण का हवाला दिया: संशोधित मसौदे में एस एंड डीटी के प्रावधानों के तहत विकासशील और कम विकासशील देशों (एलडीसी) में कम आय, कम संसाधन और मछली पकड़ने से जुड़ी आजीविका संबंधित गतिविधियों को दो साल के लिए 12 समुद्री मील दूर तक किया जा सकता है।

विकासशील देशों ने मांग की है कि अंतरराष्ट्रीय समझौतों के अनुसार विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) में यह छूट लागू की जानी चाहिए, जो 200 समुद्री मील है। विकासशील देशों ने यह भी मांग की कि समय सीमा को 5-7 साल तक बढ़ाया जाए।

उन्होंने कहा, "इस छूट को मछुआरों के लिए सीमित किया जा रहा है और यह आवश्यक है कि भारत के हमारे छोटे मछुआरों की रक्षा की जाए।"

फोकस ऑन द ग्लोबल साउथ के इंडिया प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर बेनी कुरुविला ने कहा, "छोटे पैमाने पर मछली पालन श्रमिक भारतीय अर्थव्यवस्था में सबसे अधिक हाशिए पर रहने वाले वर्ग हैं। वे पहले से ही विभिन्न जलवायु और पर्यावरणीय कारकों, बुनियादी ढांचा परियोजनाओं, निजी बंदरगाहों और थर्मल संयंत्रों के कारण नुकसान झेल चुके हैं। इनसे उनकी रोजी-रोटी छिन गई।”

उन्होंने कहा कि ऐसे श्रमिकों को राज्य से कम से कम वित्तीय सहायता प्राप्त थी और उन्हें कोविड-19 महामारी के कारण भी नुकसान उठाना पड़ा था।

उन्होंने कहा,“जैसे ही हमने महामारी के तीसरे वर्ष में प्रवेश कर लिया है, वे अभी भी महंगाई, परिवहन लागत और ईंधन की उच्च कीमत से जूझ रहे हैं। अभी जिस चीज की जरूरत है, वह है इन संकटों से निपटने में मदद करने के लिए तत्काल सरकारी ध्यान और समर्थन। उनके परिवारों का समर्थन करने के लिए अच्छी आय के साथ उनकी मदद करना आवश्यक है।”

कुरुविला ने कहा कि छोटे मछुआरों को बेहतर बुनियादी ढांचे, बाजार, ईंधन सब्सिडी की जरूरत है। यह फिशरीज एग्रीमेंट उन्हें घरेलू नीतियों में विश्व व्यापार संगठन की घुसपैठ के साथ खतरे में डालता है। यह 10 मिलियन मछुआरों के हितों की रक्षा के लिए जरूरी भारत की संप्रभु नीतियों का रास्ता बंद कर देता है।

सेनगुप्ता ने कहा कि पश्चिमी देशों ने दशकों से भारी सब्सिडी दी है और उनके बुनियादी ढांचे और मछली पकड़ने के बेड़े की क्षमता पहले ही विकसित हो चुकी है। इसलिए वे पहले ही सब्सिडी से लाभान्वित हो चुके हैं।

उन्होंने कहा, “एलडीसी और विकासशील देशों और विशेष रूप से छोटे द्वीप में स्थित विकासशील देशों में, बहुत बड़ी आबादी मत्स्य पालन पर निर्भर है। जबकि, विकसित देशों में मछली पकड़ना एक यह औद्योगिक व्यवसाय और गतिविधि है। ”

इसके अलावा, आईयूयू के साथ अन्य चुनौतियां भी हैं। जैसे, कई विकासशील देशों और एलडीसी के पास बहुत खराब सूचना प्रणाली है और सरकारों के पास छोटे मछुआरों को पंजीकृत करने के लिए कोई तंत्र नहीं है जो आजीविका के लिए मछली पकड़ने का काम करते हैं। विकासशील देशों को तंत्र को सुव्यवस्थित करने में वर्षों लग सकते हैं।

श्रीलंका, इंडोनेशिया और अन्य विकासशील देशों के समर्थन के साथ भारत ने इन तंत्रों को विकसित करने के लिए 25 साल की छूट मांगी है। पहले के मसौदे में 'X' वर्षों का उल्लेख किया गया था और इस पर ही बातचीत की जानी थी।

सेनगुप्ता ने कहा,"लेकिन 10 जून का मसौदा कहता है कि यह सात साल या 2030 तक होना चाहिए। इसका मतलब है कि आठ साल इन देशों के लिए अपने बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।"

उन्होंने कहा कि ये सब्सिडी एक देश को मछली पकड़ने के बुनियादी ढांचे को विकसित करने में मदद करेगी, मछुआरों को आवश्यक ढांचा प्रदान करके उनका समर्थन करेगी ताकि उन्हें मछली पकड़ने से अधिक आय अर्जित करने में मदद कर सके।

 सेनगुप्ता ने डीटीई को बताया, "बड़ी चुनौती यह है कि एसजीडी 14.6 ने अनिवार्य किया है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए इस पर अनुशासन होना चाहिए और यह माना गया कि यह छोटे मछुआरों की रक्षा करने वाला था। क्योंकि अगर आप मछली के स्टॉक की रक्षा करते हैं, तो वे अपनी आजीविका और खाद्य सुरक्षा भी बनाए रख सकते हैं।”

उन्होंने कहा कि जो लोग बड़े पैमाने पर और औद्योगिक स्तर पर लगातार मछली पकड़ते हैं और इसके लिए पानी के बहुत दूर तक जाते हैं, उनकी सब्सिडी को अनुशासित किया जाना चाहिए ताकि छोटे मछुआरों के मछली स्टॉक की रक्षा हो सके।

इसके अतिरिक्त, आर्टिकल 5.1.1 में रिवर्स एस एंड डीटी का उल्लेख है, जो अमीर देशों को रियायतें देता है। यह कहता है कि ऐसे देश को कोई अनुशासन रखने की आवश्यकता नहीं है, अगर वे यह साबित कर सकते हैं कि वे जैविक रूप से स्थायी स्तर पर स्टॉक बनाए हुए हैं।

बहुत कम विकासशील देशों के पास ऐसा साबित करने के लिए निगरानी प्रणाली या माप तंत्र है। इसलिए वे इसे साबित नहीं कर सकते। यूरोपीय संघ और नॉर्वे जैसे विकसित देशों ने सब्सिडी दी है और इन तंत्रों का निर्माण किया है।

उन्होंने कहा, “वे इसका लाभ उठा सकते हैं और आर्टिकल 5.1.1 के तहत किसी भी सब्सिडी को अनुशासित करने की आवश्यकता नहीं है। इसलिए उन्हें अधिक क्षमता और अधिक मछली पकड़ने पर किसी भी सब्सिडी में कटौती के दायित्व से पूरी तरह छूट दी जाएगी।”

सेनगुप्ता ने कहा कि उन्हें डर है कि वार्ता का परिणाम कृषि पर विश्व व्यापार संगठन के समझौते को दोहराने जा रहे हैं।

उन्होंने कहा,“सबसे पहले, अमीर देशों को भारी सब्सिडी दी जाती है। उन्हें अतिरिक्त अधिकारों, व्यापार को प्रभावित करने और विकासशील देशों के किसानों को चोट पहुंचाने की अनुमति है। दूसरी ओर, विकासशील देशों द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी, जैसे सार्वजनिक खाद्य कार्यक्रम, को अब चुनौती दी जा रही है।”