कृषि

किसान आंदोलन के बाद बनी एमएसपी समिति का क्या हुआ, यहां जानें

Suchak Patel

सितंबर 2020 में तीन विवादास्पद कृषि कानून पेश किए गए, जिन्हें वापस लेने की मांग को लेकर किसानों ने साल भर विरोध प्रदर्शन किया और नवंबर 2021 में कानूनों को निरस्त कर दिया गया। साथ ही, न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर एक समिति का गठन किया गया, लेकिन दो साल बाद भी अब तक इसकी कोई अंतरिम रिपोर्ट नहीं आई है।

19 नवंबर, 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों विवादास्पद कृषि कानूनों को रद्द करने की ऐतिहासिक घोषणा की। उसी संबोधन में उन्होंने एक नई समिति की स्थापना की घोषणा की। जिसे एमएसपी से संबंधित मामलों पर विचार-विमर्श करने, शून्य-बजट प्राकृतिक खेती (जेडबीएनएफ) को बढ़ावा देने और फसल पैटर्न निर्धारित करने का काम सौंपा गया।

केंद्र ने पीएम की घोषणा के लगभग आठ महीने बाद 12 जुलाई, 2022 को समिति की स्थापना की। सरकार और कृषि मंत्री ने इसमें देरी के दो प्राथमिक कारण बताए। पहला: राज्य विधानसभा चुनावों के कारण चुनाव आयोग से अनुमति की प्रतीक्षा करना और दूसरा, समिति में उनके प्रतिनिधित्व के संबंध में किसान संगठनों के गठबंधन संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) से प्रतिक्रिया मांगना।

हालांकि, सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (आरटीआई) के माध्यम जब इस बारे में जानकारी मांगी गई तो सरकार के पास किसी भी मामले पर कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी।

आइए देरी की पहली वजह, चुनाव आयोग की सहमति पर बात करते हैं। राज्यसभा में पूर्व सांसद सुखराम यादव के सवाल के जवाब में कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने 4 फरवरी, 2022 को कहा कि हमने एमएसपी समिति के संबंध में चुनाव आयोग को लिखा है। हमें (ईसी से) जो भी प्रस्ताव मिलेगा, हम आगे की कार्रवाई करेंगे। चूंकि कई राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, इसलिए चुनाव आयोग से अनुमति मिलने के बाद समिति का गठन किया जाएगा।

हालांकि, मेरी आरटीआई के जवाब में केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने कहा कि उनके पास मंत्रालय और चुनाव आयोग के बीच हुए पत्राचार का कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है।

मैंने दूसरी आरटीआई दायर की, जिसमें समिति के गठन के संबंध में कृषि और किसान कल्याण विभाग और भारत के चुनाव आयोग के बीच हुए सभी संचार या पत्राचार की प्रति की मांग की। मंत्रालय ने जवाब दिया, "उपलब्ध नहीं है।"

दो महीने बाद अप्रैल 2022 में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने राज्यसभा में कहा कि सरकार संयुक्त किसान मोर्चा से प्रतिनिधियों के नाम मिलते ही नवंबर 2021 में प्रधानमंत्री के वादे के अनुसार एमएसपी पर एक समिति बनाएगी।

हालांकि आरटीआई में पूछे गए सवाल  के जवाब में मंत्रालय ने उल्लेख किया कि मंत्रालय और किसान गठबंधन के बीच संचार या पत्राचार के संबंध में कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है।

आरटीआई आवेदन में कहा गया है, "इस समिति की स्थापना और सदस्यता से संबंधित सरकार और विभिन्न किसान संगठनों के बीच हुए सभी पत्राचार की प्रति प्रदान करें।" 4 दिसंबर, 2023 को एक उत्तर में, मंत्रालय ने कहा कि मांगी गई जानकारी उपलब्ध नहीं है।

समिति के सदस्यों की प्रोफाइल

सरकार ने अंततः जुलाई 2022 में समिति के गठन की राजपत्रित अधिसूचना की घोषणा की। समिति में अध्यक्ष सहित 29 सदस्य शामिल थे। इन 29 सदस्यों में से 18 सरकारी अधिकारी या सरकारी एजेंसियों और कॉलेजों से जुड़े विशेषज्ञ थे। 

11 गैर-आधिकारिक सदस्यों में से सरकार ने एसकेएम से तीन सदस्यों को नामित करने का प्रस्ताव दिया। हालांकि, एसकेएम ने इस समिति में भाग लेने के लिए किसी भी सदस्य को नहीं भेजने का निर्णय लिया।

इसलिए अब मैं अध्यक्ष और शेष आठ गैर-आधिकारिक सदस्यों की पृष्ठभूमि और भूमिकाओं पर चर्चा करूंगा।

समिति के अध्यक्ष संजय अग्रवाल हैं, जो तीन कृषि कानूनों की शुरूआत के दौरान केंद्रीय कृषि मंत्रालय के सचिव थे। बाद में उन्होंने एसकेएम के साथ चर्चा में भारत सरकार के दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व किया और समाचार चैनल सीएनबीसी के साथ एक साक्षात्कार में कृषि बाजार सुधार अध्यादेशों के लाभों को स्पष्ट किया।

दूसरे हैं, बहुराज्यीय सहकारी समिति इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव के चेयरमैन दिलीप संघानी। संघानी को किसान सहकारी समिति के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया गया था। वह गुजरात से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पूर्व सांसद हैं।

किसानों के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किये गये प्रमोद चौधरी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य के रूप में कार्य करते हैं। भारतीय किसान संघ ने अब निरस्त किए गए तीन कृषि कानूनों पर विशिष्ट विचार रखे। 

किसानों के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त एक अन्य समिति सदस्य सैय्यद पाशा पटेल भाजपा महाराष्ट्र विधान परिषद के पूर्व सदस्य हैं। समिति के कई अन्य सदस्य भी भाजपा से जुड़े संगठनों से जुड़े हैं या उन्होंने निरस्त कृषि कानूनों के प्रति समर्थन व्यक्त किया है।

समिति के कार्य

संसद में दिए गए सरकार के जवाब के अनुसार इस समिति की स्थापना को 18 महीने हो चुके हैं और इस अवधि में इसकी 35 बार बैठकें हो चुकी हैं। दुर्भाग्य से सरकार ने समिति की रिपोर्ट प्रस्तुत करने की अनुमानित तारीख के संबंध में कोई जानकारी नहीं दी है।

सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने यह सवाल राज्यसभा में उठाया, लेकिन सरकार ने इस सवाल का जवाब नहीं दिया. आरटीआई के माध्यम से विवरण प्राप्त करने के मेरे प्रयास के परिणामस्वरूप एक प्रतिक्रिया मिली, जिसमें कहा गया कि जानकारी उपलब्ध नहीं है।

इसके अलावा समिति और विभिन्न उपसमितियों की बैठकें आयोजित होने के बावजूद समिति की बैठकों के मिनटों (कार्यवाही) के बारे में जब मैंने जानकारी मांगी तो मंत्रालय से एक प्रतिक्रिया मिली, जिसमें संकेत दिया गया कि जानकारी अनुपलब्ध है।

इसके अतिरिक्त जब मैंने किसान संगठनों के साथ इस समिति के संचार के बारे में जानकारी मांगी, तो सरकार ने सरल उत्तर दिया, "उपलब्ध नहीं है।" आरटीआई जवाब के अनुसार, सरकार ने इस समिति के कामकाज के लिए 35 लाख रुपये आवंटित किए हैं।

प्रतिबद्धता बनाम समिति

मेरा उद्देश्य जिस मूल प्रश्न का समाधान करना था, वह यह है कि क्या सरकार वास्तव में कृषि संबंधी मुद्दों को हल करने के लिए प्रतिबद्ध है या नहीं। किसान सरकार से विशेष रूप से एमएसपी के संबंध में स्पष्ट प्रतिबद्धता की मांग कर रहे हैं। हालांकि, ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार की रणनीति में किसानों को समितियों में उलझाए रखना शामिल है।

2004-2006 में स्वामीनाथन आयोग और 2016 में किसानों की आय दोगुनी करने पर समिति ने महत्वपूर्ण कृषि मुद्दों पर चर्चा की। स्वामीनाथन समिति ने सुझाव दिया था कि एमएसपी, उत्पादन लागत से कम से कम 50 प्रतिशत अधिक होना चाहिए। उन्होंने सार्वजनिक वितरण प्रणाली में बाजरा जैसे पौष्टिक अनाज को शामिल करने की भी सिफारिश की।

मोदी सरकार ने एमएसपी और खरीद के लिए विभिन्न दृष्टिकोण आजमाए हैं। उन्होंने मूल्य कमी भुगतान योजना शुरू की, जिसका उद्देश्य सभी तिलहनों को एमएसपी के साथ कवर करना है। इसके अतिरिक्त, सरकार ने विशिष्ट जिलों या कृषि उपज बाजार समितियों में परीक्षण के आधार पर निजी खरीद स्टॉकिस्ट योजना शुरू की।

इसी तरह, जीरो बजट नेचुरल खेती सरकार के लिए अज्ञात नहीं है। 2016 में सरकार ने सुभाष पालेकर को कृषि पद्धतियों के लिए पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया।

2019 जुलाई के बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा, “हम एक मामले में बुनियादी बातों पर वापस जाएंगे: शून्य बजट खेती। हमें इस नवोन्मेषी मॉडल को दोहराने की जरूरत है, जिसके माध्यम से, कुछ राज्यों में, किसानों को पहले से ही इस अभ्यास में प्रशिक्षित किया जा रहा है।”

दरअसल, प्राकृतिक खेती की अवधारणा पर 2019, 2020 और 2021 में सीतारमण के लगातार तीन बजट भाषणों में चर्चा की गई थी। किसानों की आय दोगुनी करने पर समिति ने टिकाऊ कृषि पर दो व्यापक रिपोर्ट तैयार की हैं।

रिपोर्ट पांच में कृषि में स्थिरता संबंधी चिंताओं को संबोधित किया गया, जबकि रिपोर्ट छह में स्थिरता के लिए विशिष्ट रणनीतियों की रूपरेखा तैयार की गई, और इसे 2017 में प्रस्तुत किया गया था। हालांकि, इन प्रयासों के बावजूद कार्यान्वयन  में कमजोरी स्पष्ट झलकती है। 

2021 में प्रधानमंत्री का भाषण किसानों के लिए नई आशा लेकर आया। हालांकि, दो साल बीत चुके हैं और समिति को अभी भी अंतरिम रिपोर्ट प्रस्तुत करनी है, और हमें कोई अंदाजा नहीं है कि वे कब देंगे। भारत में 200 से अधिक किसान यूनियनों ने फरवरी 2024 में दिल्ली की ओर मार्च करने की योजना बनाई है। सरकार के लिए किसानों को समितियों में शामिल रखने के प्रति अपनी मानसिकता को बदलना महत्वपूर्ण है। किसानों की भलाई सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।

(सूचक पटेल एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं और जरूरी नहीं कि वे डाउन टू अर्थ के विचारों को प्रतिबिंबित करते हों)