कृषि

मौसम की मार, इस बार हिमाचल में सेब उत्पादन में 50 फीसदी से अधिक की गिरावट के आसार

विशेषज्ञों का कहना है कि इस साल मौसम में जितने बदलाव देखे गए हैं, उतने पहले नहीं देखे गए, जिसका असर सेब की फसल पर गहरा असर पड़ा है

Rohit Prashar

हिमाचल प्रदेश की आर्थिकी में अहम योगदान देने वाले सेब के उत्पादन में इस बार भारी गिरावट देखने को मिल सकती है। मौसम की बेरुखी की वजह से विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया है कि इस बार सेब का उत्पादन पिछले वर्ष के मुकाबले आधा रह सकता है।

पहले सर्दियों के मौसम में बर्फबारी न होना, फिर पौधों में फ्लावरिंग के दौरान बारिश, जिसके बाद फलों के अखरोट के बराबर होने पर ओलावृष्टि और फलों के तैयार होने के दौरान भारी बारिश व बाढ़ ने सेब बागवानों की कमर तोड़ दी है।

राज्य बागवानी विभाग के आंकड़ों के मुताबिक पिछले वर्ष लगभग 3.36 करोड़ सेब की पेटियों का कारोबार हुआ था। हर साल हिमाचल प्रदेश में सेब बागवानी को लेकर 4 से 5 हजार करोड़ रुपए के कारोबार होता है, जबकि इस बार सेब उत्पादन 1.5 से 2 करोड़ पेटियों तक सिमटने का अनुमान लगाया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश में सरकारी आंकडों के मुताबिक 1 लाख 13 हजार 154 हैक्टेयर क्षेत्र में सेब उगाया जाता है।

7 से 10 जुलाई के बीच में हुई भारी बारिश के कारण सेब बहुत क्षेत्र शिमला और कुल्लू में सेब के बागों को भारी क्षति पहुंची है। बागवानी विभाग के आंकड़ों के अनुसार इस मानसून सीजन के दौरान बागवानी क्षेत्र को कुल 144 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचा है।

भारी बारिश की वजह से सड़कों को भारी नुकसान पहुंचा है, जिससे तैयार सेब मंडियों तक पहुंचाने में बागवानों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। शिमला जिले में कई स्थानों में सड़क सुविधा न होने के कारण बागवानों को अपनी तैयार सेब की फसल नदी, नालों में फैंकते हुए देखा गया है।

हिमाचल प्रदेश में 5 लाख से अधिक लोग सेब बागवानी से सीधे तौर पर जुड़े हैं और इनकी आर्थिकी पूरी तरह सेब बागवानी पर निर्भर है।

सूंटा फ्रूट कंपनी के मालिक और बागवान संजीव सूंटा ने बताया कि इस बार शिमला समेत प्रदेश के अन्य जिलों में सेब की पैदावार कम है। मैं जिन बागवानों से सेब खरीदता हूं मैंने उनसे संपर्क किया है उनका कहना है कि इस बार पैदावार आधे से भी कम है।

संयुक्त किसान मंच के सह संयोजक व बागवान संजय चौहान ने बताया कि प्रदेश के बागवानों का लगभग 2500 से 3000 करोड़ का नुकसान हुआ है। कई ऐसे इलाके हैं, जहां बागवानों की 60 से 80 फीसदी तक की सेब की फसल खराब हो चुकी है। मौसम के कारण हुए नुकसान का मुआवजा बागवानों को मिलना चाहिए।

कुल्लू जिला में 7 बीघा में सेब बागवानी करने वाले हीरा लाल ने बताया कि जिन बागवानों ने ऐंटी हेल नेट नहीं लगाए थे, उन्हें इस बार बहुत अधिक नुकसान उठाना पड़ा है। दरअसल राज्य में ओलावृष्टि का क्षेत्र बढ़ रहा है। सेब बागवान रोहित शर्मा और देवेंद्र हेटा ने एक दशक पहले तक सेब बहुल क्षेत्र कुमारसेन, कोटगढ और ठियोग जैसे क्षेत्रओलावृष्टि से बचे रहते थे, लेकिन अब इन क्षेत्रों में भी ओला आ रहा है।

सेब बागवान और एप्पल फार्मर फेडरेशन ऑफ इंडिया केसंयोजनक सोहन ठाकुर ने बताया कि सरकार की ओर से हेल नेट पर दी जाने वाली सब्सिडी ऊंट के मुंह में जीरा के बराबर है। सरकार केवल 1 लाख 20 हजार रुपए अधिकतम सब्सिडी देती है। जिससे केवल 2 बीघा तक का बाग ही कवर हो पाता है। यह सब्सिडी मिलने में भी कई वर्षों का समय लग जाता है।

ठाकुर के मुताबिक ठियोग ब्लॉक में अभी 2017 के अप्लाई किए हुए बागवानों को सब्सिडी मिलना शुरू हुआ है। सोहन ठाकुर ने बताया कि यदि किसी बागवान को 10 बीघा के बाग में हेल नेट लगवाना है तो इसके लिए कम से कम 4 लाख रुपए का खर्च आता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि बदलता मौसम बेहद संवेदनशील हो गया है, जो सेब जैसी फसलों के लिए नुकसानदायक साबित हो रहा है। बागवानी विश्वविद्यालय, नौणी से रिटायर डायरेक्टर रिसर्च और बागवानी विशेषज्ञ एसपी भारद्वाज ने कहा कि इस साल पहली बार इतना खराब मौसम देखने को मिला है। अप्रैल और मई माह में सामान्य से अधिक बारिश हुई, जिससे मधुमक्खियां पोलिनेशन (परागण) तक नहीं कर पाई। सेब की पैदावार पर इसका भारी असर देखने को मिला।

हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान की असिस्टेंट प्रोफेसर निशा रानी का कहना है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से एप्पल बैल्ट में एल्टीट्यूडनल शिफ्ट हो रहा है। साथ ही, ओलावृष्टि के लिए भी जलवायु परिवर्तन एक महत्वपूर्ण कारण है। क्योंकि तापमान में बदलाव की वजह से नमी की मात्रा बढ़ रही है, जिसके चलते उन क्षेत्रों में भी ओलावृष्टि हो रही है, जहां पहले कम होती थी या नहीं होती थी। ओलों का आकार भी बढ़ रहा है।