आम बजट 2022-23 में कृषि क्षेत्र के लिए कुल आवंटन में केवल 4.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि फसल बीमा और किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को सक्षम करने वाले आवंटन में भारी कमी की गई है।
इतना ही नहीं, बजट में किसानों की आय दोगुनी करने की सरकार की महत्वाकांक्षी योजना पर भी पूरी तरह चुप्पी साध दी गई है, जबकि इस योजना की समय सीमा इसी वर्ष (2022) है।
बजट में कृषि क्षेत्र के लिए वित्त वर्ष 2022-23 में 123960.75 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है, जबकि चालू वित्त वर्ष 2021-22 में संशोधित अनुमान 118257.69 करोड़ रुपए था। इस तरह आवंटन में केवल 5,700 करोड़ रुपये की मामूली वृद्धि हुई है।
देश में दलहन और तिलहन के लिए एमएसपी आधारित खरीद सुनिश्चित करने वाली पीएम-आशा (प्रधान मंत्री अन्नदाता आय संरक्षण योजना) और एमआईएस-पीएसएस (बाजार हस्तक्षेप योजना और मूल्य समर्थन योजना) के आवंटन में भारी कमी की गई है। पीएम-आशा को सिर्फ एक करोड़ रुपये का आवंटन किया गया, जबकि वित्त वर्ष 2021-22 में इस मद पर 400 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे।
इसी तरह एमआईएस-पीएसएस को 1500 करोड़ रुपये आवंटित किए गए, जो कि वर्ष 2021-22 में इसका संशोधित अनुमान 3959.61 करोड़ रुपये था। इस तरह इसके आवंटन में 62 प्रतिशत की कमी की गई है।
यह कटौती ऐसे समय में हुई है, जबकि किसान संगठनों की प्रमुख मांग है कि फसलों की खरीद के लिए एमएसपी की गारंटी दी जाए। जिस पर सरकार ने इन संगठनों को भरोसा दिलाया कि एमएसपी सुनिश्चित करने के लिए एक समिति का गठन किया जाएगा और इसी आश्वासन के बाद किसान संगठनों ने एक साल तक चला आंदोलन वापस लिया था।
आईसीआरआईईआर की सीनियर फेलो और भारतीय कृषि नीतियों पर शोध करने वाली श्वेता सैनी कहती है कि पीएम-आशा के आवंटन में कमी के दो कारण हो सकते हैं। या तो सरकार यह अनुमान लगा रही है कि दालों और तिलहनों की कीमतें 2022-23 में भी महंगी बनी रहेंगी और एमएसपी पर नहीं बेची जाएंगी या दूसरा कारण यह सकता है कि पीएम-आशा अच्छा काम नहीं कर रही है, इसलिए इसे बंद करने की तैयारी की जा रही है। लेकिन इस पर संदेह तब खड़ा होता है, जब सरकार यह कह रही है कि वह एमएसपी के तहत खरीद करेगी और दूसरा पोषण सुरक्षा के बारे में भी बात कर रही है, तो फिर आवंटन क्यों कम किया गया है।
बजट दस्तावेज में खाद्य और पोषण सुरक्षा को लेकर विरोधाभासी बात दिखती है। यह दस्तावेज कहता है कि मिशन का उद्देश्य पोषण सुरक्षा के साथ इन फसलों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए दलहन और पोषक अनाज पर विशेष जोर देना है। जबकि खाद्य और पोषण सुरक्षा के तहत आवंटन में 2021-22 में 1540 करोड़ रुपये (संशोधित) से घटकर 1395 करोड़ रुपये हो गया है। इसके तहत राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों को दालों का वितरण करने के लिए खरीदी गई दालों के स्टॉक का निपटान करना है।
इसके अलावा मिड डे मील , सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस), आईसीडीएस आदि जैसी विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के लिए केवल 9 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है, जबकि 2021-22 में संशोधित अनुमान 50 करोड़ रुपए था। हालांकि 2021-22 के बजट में अनुमानित आवंटन 300 करोड़ रुपये था।
सैनी कहती हैं, 'इसका मतलब साफ है कि सरकार दालों की खरीद और वितरण पर होने वाले खर्च का अनुमान नहीं लगा रही है"।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) या फसल बीमा योजना के लिए आवंटन भी 15,989 करोड़ रुपये से घटाकर 15,500 करोड़ रुपये कर दिया गया।
एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड (एआईएफ) के आवंटन में बढ़ोत्तरी की गई है। वित्त वर्ष 2022-23 में इसके लिए 500 करोड़ रुपये कर दिया गया है, लेकिन 2021-22 में संशोधित अनुमान 200 करोड़ रुपए था, हालांकि बजट अनुमान 900 करोड़ रुपये था।
मई 2020 में आत्मनिर्भर भारत के हिस्से के रूप में एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड एक लाख करोड़ रुपए की घोषणा की गई थी। यह फंड बाद के छह वर्षों में खर्च करने के लिए था। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि आज के बजट में किया गया आवंटन निराशाजनक है।
एलायंस फॉर सस्टेनेबल एंड होलिस्टिक एग्रीकल्चर (आशा) ने एक बयान में कहा है कि एआईएफ के तहत दो साल बाद अब तक केवल 6,627 करोड़ रुपये की परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है और केवल 2,654 करोड़ रुपये से भी कम आवंटित किए गए हैं। जो कि लक्ष्य (एक लाख करोड़) से केवल 2.6% है।
वर्तमान कृषि बजट का उज्जवल पक्ष राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) है। यह योजना पिछले कुछ वर्षों से अपनी चमक खो रही थी। इस योजना के तहत प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना-प्रति बूंद अधिक फसल, परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई), राष्ट्रीय मृदा और स्वास्थ्य उर्वरता परियोजना, वर्षा सिंचित क्षेत्र विकास और जलवायु परिवर्तन, और कृषि मशीनीकरण पर उप-मिशन जैसी योजनाओं को शामिल करके पुनर्गठन किया गया था।
आरकेवीवाई के लिए 10,433 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है, जबकि 2021-22 में हरित क्रांति का संशोधित अनुमान 8852.65 करोड़ रुपये था। सैनी कहती हैं कि यह योजना 2007-08 से चल रही है और पिछले कुछ वर्षों में आवंटन कम हो गया था। लेकिन सरकार ने इसे इस बजट में पुनर्जीवित किया है जो एक स्वागत योग्य कदम है।
उन्होंने यह भी कहा कि यह योजना राज्यों को अधिक स्वायत्तता देगी और वे इसके तहत अपने खर्च को प्राथमिकता दे सकते हैं।
किसानों को हर साल 12 हजार रुपए नगद देने वाली योजना पीएम-किसान के आवंटन में वृद्धि की गई है। इस मद के तहत 2021-22 का संशोधित अनुमान 67,500 करोड़ रुपये था, जिसे बढ़ा कर 68,000 करोड़ रुपए कर दिया गया है।