कृषि

संसद में आज: अगले 50 साल तक 47 प्रतिशत कम हो सकती है चावल की पैदावार

जलवायु परिवर्तन की वजह से किसानों को हो रहे नुकसान के बारे में संसद में कई सवाल-जवाब हुए

Dayanidhi

जलवायु परिवर्तन के कारण खेती को हो रहे नुकसान का मामला 21 मार्च 2023 को सदन में उठाया। कई सांसदों ने इस मामले में सरकार की तैयारियों को लेकर सवाल जवाब किया। सरकार ने माना कि जिन इलाकों में वर्षा आधारित खेती की जा रही है, वहां अगले 50 साल में धान की खेती में 47 प्रतिशत की कमी आ सकती है। 

केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एक सवाल के जवाब में लोकसभा में बताया कि भारत सरकार कृषि और किसानों के जीवन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के बारे में जागरूक है और देश के विभिन्न हिस्सो में अलग-अलग नेटवर्क के माध्यम से अध्ययन किए जा रहे हैं। 

तोमर के मुताबिक 2050 एवं 2080 की अनुमानित जलवायु को ध्यान में  रखते हुए फसल सिम्यूलेशन मॉडल का प्रयोग कर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का आकलन किया गया। जो बताता है कि यदि जलवायु अनुकूलन उपाय नही किए गए तो भारत में वर्षा आधारित क्षेत्रों में चावल की पैदावार 2050 में 20 फीसदी और 2080 में 47 फीसदी कम हो सकती है। जबकि जिन  इलाकों में सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं, वहां 2050 में 3.5 फीसदी और 2080 में 5 फीसदी चावल की पैदावार कम होने का अनुमान है।

उन्होंने बताया कि सदी के अंत तक जलवायु परिवर्तन की वजह से 2050 में गेहूं की उपज में 19.3 फीसदी और 2080 में 40 फीसदी की कमी आने का अनुमान है, जबकि मक्के की पैदावार में क्रमशः 18 और 23 फीसदी तक कम होने का अनुमान है।

जवाब में माना गया है कि जलवायु परिवर्तन से फसल की पैदावार कम होती है और उपज की पोषण गुणवत्ता भी कम हो जाती है। सूखे जैसी अत्यधिक घटनाएं भोजन और पोषक तत्वों की खपत को प्रभावित करती हैं और किसानों पर इसका प्रभाव पड़ता है।

सरकार के प्रयास  

एक अन्य सवाल के जवाब में तोमर ने जलवायु परिवर्तन की वजह से पैदावार में कमी को रोकने के लिए सरकार की तैयारियां बताई। उन्होंने कहा कि पिछले तीन वर्षों के दौरान, 2020, 2021 और 2022 में, धान  की 17 किस्मों सहित कुल 69 कम पानी वाली, सूखा सहिष्णु क्षेत्र फसल किस्मों का विकास किया गया है। ताकि उत्पादन प्रभावित न हो।

उन्होंने यह भी बताया कि भारत में अधिक उपज देने वाली जलवायु अनुकूल किस्मों का उपयोग करके विभिन्न फसलों की प्रति यूनिट उपज में सुधार करने में प्रगति की है, जिसके परिणामस्वरूप 1950-51 की तुलना में 2022-23 के दौरान धान की फसल के समग्र उत्पादकता स्तर में 4.16 गुना की वृद्धि हुई है। धान  की उत्पादकता 2015-16 के 2400 किग्रा प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 2022-23 के दौरान 2781 किग्रा प्रति हेक्टेयर हो गई है, जो कि 16 फीसदी की वृद्धि है।   

नुकसान की भरपाई

तोमर ने एक अन्य सवाल के जवाब में किसानों को नुकसान की भरपाई के लिए चलाई जा रही प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि खरीफ 2016 सीजन से देश में शुरू की गई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) राज्यों और किसानों के लिए स्वैच्छिक है। इस योजना के तहत किसानों के लिए बहुत कम प्रीमियम पर फसलों की बुवाई से पूर्व से लेकर कटाई के बाद के चरणों तक सभी बिना-निवारक प्राकृतिक खतरों के खिलाफ किसानों की फसलों के लिए व्यापक जोखिम कवरेज प्रदान किया जाता है।

पीएमएफबीवाई योजना उद्देश्यों को पूरा करने में सफल रही है, विशेष रूप से प्राकृतिक आपदा प्रभावित मौसमों, वाले सालों तथा इलाकों में किसानों की रक्षा करने में सफल रही है। यह योजना मांग आधारित है। 2016-17 में योजना की शुरुआत से 2021-22 तक किसानों ने 25,183 करोड़ रुपये के प्रीमियम का भुगतान किया, जबकि उन्हें 1,30,403 करोड़ रुपये के दावों का भुगतान किया गया है। इस बात की जानकारी आज कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने लोकसभा में दी।

स्वयं सहायता समूहों से 8.93 करोड़ महिलाएं जुड़ी 

ग्रामीण विकास मंत्रालय में राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने लोकसभा में बताया कि डीएवाई-एनआरएलएम का लक्ष्य वित्तीय वर्ष  2023-24 तक ग्रामीण गरीब परिवारों की लगभग 10 करोड़ महिलाओं को स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) नेटवर्क के अंतर्गत लाना है। मिशन ने पहले ही ग्रामीण परिवारों की लगभग 8.93 करोड़ महिलाओं में से 82.61लाख को 28 फरवरी 2023 तक एसएचजी में शामिल कर लिया है। 

पीएमजीएसवाई के तहत पर्यावरण मंजूरी

ग्रामीण विकास मंत्रालय में राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने लोकसभा में बताया कि मंत्रालय के पास उपलब्ध जानकारी के अनुसार प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) और अति वाम प्रभावित क्षेत्रों के लिए सड़क संपर्क परियोजना (आरसीपीएलडब्ल्यूईए) के विभिन्न कार्यक्षेत्रों के तहत 322 कार्य हैं जो पर्यावरण और वानिकी मंजूरी के कारण लंबित हैं। 

जल विद्युत क्षमता का उपयोग

बिजलीऔर नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने राज्यसभा में बताया कि 1978-1987 के दौरान केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) द्वारा किए गए पुनर्मूल्यांकन अध्ययन के अनुसार, देश में अनुमानित जल विद्युत क्षमता लगभग 145320 मेगावाट (25 मेगावाट से अधिक क्षमता वाली परियोजनाओं के लिए) है। वर्तमान में, 145320 मेगावाट में से 42104.6 मेगावाट (29 फीसदी) विकसित की गई हैं और 15023.5 मेगावाट (10.3 फीसदी) निर्माणाधीन है।  

हरित विकास योजना

दूसरे सवाल के जवाब में सिंह ने बताया कि कॉप 26 में प्रधान मंत्री की घोषणा के अनुरूप, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय 2030 तक बिना-जीवाश्म स्रोतों से 500 गीगावाट स्थापित बिजली क्षमता हासिल करने की दिशा में काम कर रहा है। देश में 28.02.2023 अब तक, कुल 168.96 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता स्थापित की जा चुकी है। इसमें से 64.38 गीगावाट सौर ऊर्जा, 51.79 गीगावाट  हाइड्रो पावर, 42.02 गीगावाट  पवन ऊर्जा और 10.77 गीगावाट बायो पावर शामिल हैं। इसके अलावा, 82.62 गीगावाट क्षमता कार्यान्वयन के अधीन है और 40.89 गीगावाट  क्षमता निविदा के अधीन है। चालू वर्ष अर्थात 2022-23 (जनवरी 2023 तक) के दौरान अक्षय ऊर्जा स्रोतों से कुल 316754.86 एमयू बिजली का उत्पादन किया गया है। 

देश में बढ़ते कैंसर के मामले

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री भारती प्रवीण पवार ने राज्यसभा में बताया कि भारत में राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम कवरेज 16.4 फीसदी है। 38 जनसंख्या आधारित कैंसर रजिस्ट्रियां (पीबीसीआर) हैं, जिनमें से 35 पीबीसीआर 20 राज्यों में स्थित हैं और तीन पीबीसीआर तीन केंद्र शासित प्रदेशों में हैं। नेटवर्क का विस्तार करने के लिए, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च - नेशनल सेंटर फॉर डिसीज इंफॉर्मेटिक्स एंड रिसर्च (आईसीएमआर-एनसीडीआईआर) ने राज्यों में कैंसर एटलस स्थापित करने के लिए राजस्थान और आंध्र प्रदेश सरकार के साथ तीन साल के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। देश भर में 215 अस्पताल आधारित कैंसर रजिस्ट्रियां (एचबीसीआर) हैं।

मातृ एवं शिशु मृत्यु दर

पवार के मुताबिक भारत के रजिस्ट्रार जनरल का कार्यालय नमूना पंजीकरण प्रणाली (एसआरएस) का उपयोग करके राज्यवार मातृ मृत्यु अनुपात (एमएमआर) पर अनुमान प्रदान करता है। आरजीआई द्वारा जारी मातृ मृत्यु दर पर विशेष बुलेटिन की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, भारत की मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) 2017-19 में प्रति 100,000 जीवित जन्मों पर 103 से घटकर 2018-20 में प्रति 100,000 जीवित जन्मों पर 97 हो गई।