कृषि

कृषि में घट रही महिलाओं की भागीदारी, कमाई में भी पुरुषों से पीछे, मजदूरी में है 18.4 फीसदी का अंतर

एफएओ के मुताबिक इस खाई को भरने से न केवल वैश्विक अर्थव्यवस्था को 81.6 लाख करोड़ रूपए का फायदा होगा। साथ ही इसकी मदद से 4.5 करोड़ लोगों के भोजन की भी व्यवस्था की जा सकेगी

Lalit Maurya

लैंगिक असमानता की जो खाई है वो कृषि में भी महिलाओं का पीछा नहीं छोड़ रही। कहीं न कहीं, यह कृषि में महिलाओं की घटती भागीदारी के लिए भी जिम्मेवार है। आंकड़े दर्शाते है कि कृषि में जिस काम का पुरुषों को एक रुपया मिलता है, वहीं उसकी तुलना में महिलाओं को केवल 82 पैसे ही मिल रहे हैं। मतलब की दोनों की मजदूरी में करीब 18.4 फीसदी का अंतर है।

यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा जारी नई रिपोर्ट "द स्टेटस ऑफ वीमेन इन एग्रीफूड सिस्टम्स" में सामने आई है। रिपोर्ट के मुताबिक जहां 2005 में 33 फीसदी महिलाएं अपनी जीविका के लिए कृषि पर निर्भर थी वहीं 2019 में यह आंकड़ा नौ फीसदी की गिरावट के साथ 24 फीसदी पर पहुंच गया है।

हालांकि इस दौरान कृषि से पुरुषों का जुड़ाव भी आठ फीसदी घटा है। जहां 2005 में 35 फीसदी पुरुष जीविका के लिए कृषि पर निर्भर थे वहीं 2019 में यह आंकड़ा घटकर 27 फीसदी रह गया है।

लैंगिक असमानता की यह दूरी सिर्फ यहां तक ही सीमित नहीं है, कृषि उत्पादकता के मामले में भी इनके बीच की खाई काफी गहरी है। पता चला है कि पुरुष और महिला किसानों के बीच कृषि उत्पादकता में करीब 24 फीसदी का अंतर है। इसी तरह पुरुषों और महिलाओं के बीच खाद्य असुरक्षा की खाई 2019 में 1.7 फीसदी से 2021 में 4.3 फीसदी तक बढ़ गई है।

ऐसे में खाद्य एवं कृषि संगठन ने अपनी इस रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया है कि यदि असमानता की इस खाई को भरने पर ध्यान दिया जाए तो न केवल महिलाओं को इससे फायदा होगा साथ ही सारे समाज को इसका फायदा पहुंचेगा।

रिपोर्ट में जो आंकड़े साझा किए गए हैं उनके मुताबिक इस खाई को भरने से वैश्विक अर्थव्यवस्था को करीब 81.6 लाख करोड़ रूपए का फायदा होगा। साथ ही इसकी मदद से खाद्य सुरक्षा को भी मजबूत किया जा सकेगा। रिपोर्ट के अनुसार इस अंतर को दूर करने से खाद्य असुरक्षा में दो फीसदी की गिरावट आएगी। मतलब की इस तरह और 4.5 करोड़ लोगों के भोजन की व्यवस्था की जा सकेगी। 

इस बारे में खाद्य एवं कृषि संगठन के महानिदेशक क्यू डोंग्यू का कहना है कि, यदि हम कृषि-खाद्य प्रणालियों में व्याप्त विषमताओं को दूर करके, महिलाओं को सशक्त बनाएं, तो इससे निर्धनता को खत्म करने के साथ-साथ भुखमरी को दूर करने में मदद मिलेगी।

देखा जाए तो इस अंतर के लिए कहीं न कहीं हमारी सामाजिक व्यवस्था और भेदभावपूर्ण मानदंड ही जिम्मेवार है, जहां महिलाओं को पुरुषों से कमतर समझा जाता है। आज भी दुनिया के कई हिस्सों में महिलाओं को घर से बाहर काम करना हीन समझा जाता है।

इसी तरह उनके खिलाफ हिंसा/ प्रताड़ना जैसी घटनाएं भी कृषि में महिलाओं की जीविका को प्रभावित कर रही हैं। नीतियां और रणनीतियां तेजी से उन बाधाओं और असमानताओं की पहचान कर सकती हैं जिनका सामना महिलाएं करती हैं, लेकिन कुछ देशों में इससे जुड़ी राष्ट्रीय नीतियां हैं।

कृषि ही नहीं अन्य क्षेत्रों में भी गहरी है महिला-पुरुष के बीच की खाई

एक अन्य रिपोर्ट के हवाले से पता चला है कि दुनिया की 240 करोड़ महिलाएं, पुरुषों के समान अधिकारों से वंचित हैं और इस खाई को भरने में अभी 50 साल और लगेंगें। कोविड-19 के दौरान भी पुरुषों की तुलना में महिलाओं की खाद्य असुरक्षा में तेजी से इजाफा हुआ था। वहीं पुरुषों की तुलना में कृषि में लगी महिलाएं इससे कहीं ज्यादा प्रभावित हुई थी।

यूएन रिपोर्ट ने भी इस बात को माना है कि महिलाओं की ज्ञान, संसाधन और तकनीकों तक पहुंच अपेक्षाकृत सीमित है। साथ ही उन्हें बिना मजदूरी के परिवार की देखभाल का बोझ भी उठाना पड़ता है।

रिपोर्ट के अनुसार, भूमि, सेवा, उधार और डिजिटल टैक्नॉलॉजी की सुलभता के मामले में भी महिलाएं, पुरुषों से पीछे हैं। उन पर अवैतनिक देखभाल का भी बोझ है, जो शिक्षा, प्रशिक्षण व रोजगार में उनके लिए अवसरों को सीमित कर रहा है।

68 देशों के कृषि और ग्रामीण विकास से जुड़े 75 फीसदी नीति सम्बन्धी दस्तावेज महिलाओं की भूमिका और चुनौतियों को पहचानते हैं। वहीं केवल 19 फीसदी ने पुरुष और महिलाओं दोनों से जुड़े नीतिगत लक्ष्यों को शामिल किया है।

इसी तरह स्वास्थ्य सुविधाओं, इंटरनेट, तकनीकों के मामले में भी महिलाएं पुरुषों से पीछे हैं। जो उनकी कृषि उत्पादकता को भी प्रभावित कर रहा है। एजेंसी का कहना है कि कृषि-खाद्य प्रणालियों में महिलाओं के लिए पूर्ण एवं समान रोजगार की राह में अनेक बाधाएं है जो उनकी उत्पादकता में बाधक बन रही हैं। नतीजन उनकी आय में भी असमानता मौजूद है।

जलवायु आपदाओं के दौरान, महिलाएं के पास मौजूद सीमित संसाधन और संपत्ति भी उनकी अनुकूलन क्षमता और आपदा का सामना करने की उनकी क्षमता को प्रभावित करते हैं।

कार्रवाई की है दरकार

एफएओ का कहना है कि खाद्य एवं कृषि क्षेत्र में महिलाओं के लिए समान अवसर व बेहतर परिस्थितियों की मदद से आर्थिक प्रगति लाना सम्भव है। साथ ही इससे करोड़ों लोगों के लिए पेट भर भोजन का प्रबन्ध किया जा सकेगा। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में करीब एक-तिहाई से अधिक महिलाएं (36 फीसदी) जीविका के लिए कृषि-खाद्य प्रणालियों पर निर्भर हैं। इसमें खाद्य और गैर-खाद्य कृषि उत्पादों का उत्पादन शामिल है।

साथ ही महिलाओं की खाद्य भंडारण, परिवहन, प्रसंस्करण से लेकर वितरण में भी अहम भूमिका है। यदि उप-सहारा अफ्रीका को देखें तो 66 फीसदी जीविका के लिए कृषि-खाद्य प्रणालियों पर निर्भर हैं। इसी तरह दक्षिण एशिया में 71 फीसदी महिलाएं कृषि खाद्य प्रणाली में काम कर रही हैं।

इसी तरह वैश्विक स्तर पर मछली पालन और जलीय कृषि से जुड़े प्राथमिक क्षेत्र में करीब 21 फीसदी मजदूर महिलाएं हैं। वहीं यदि इससे जुड़ी पूरी श्रंखला को देखें तो महिलाओं की हिस्सेदारी करीब आधी है।

रिपोर्ट के मुताबिक यह अनुमान इसलिए भी मायने रखते हैं क्योंकिं दुनिया में 34 करोड़ से अधिक लोग इस साल खाद्य असुरक्षा का सामना करने को मजबूर होंगें। जो 2020 के शुरूआत की तुलना में 20 करोड़ की वृद्धि को दर्शाता है। इनमें से करीब 4.3 करोड़ लोग अकाल के कगार पर हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि कृषि परियोजनाओं की मदद से महिलाओं को सशक्त किया जा सकता है। ऐसे में विशेषज्ञों ने नीतिगत स्तर पर सम्पत्ति, टैक्नॉलॉजी व संसाधनों की सुलभता में व्याप्त खाई को भरने के लिए तत्काल कदम उठाने की सिफारिश की है। उनका कहना है कि कृषि-खाद्य क्षेत्र में महिलाओं का सशक्तीकरण महत्वपूर्ण है। इसके लिए शिक्षा, प्रशिक्षण, मजदूरी, भूमि जैसे मुद्दों पर ध्यान देना होगा।

इसके लिए संयुक्त राष्ट्र एजेंसी ने सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों की भी पैरवी की है, जिनकी मदद से महिलाओं के रोजगार और सहन-क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। इसकी को ध्यान में रखते हुए खाद्य एवं कृषि संगठन के महानिदेशक ने रिपोर्ट में जिक्र किया है, “महिलाओं ने हमेशा कृषि-खाद्य प्रणालियों में काम किया है। अब समय आ गया है कि कृषि-खाद्य प्रणालियां भी महिलाओं के लिए काम करें।”