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कृषि

त्रुटिपूर्ण कृषि लागत की गणना पर घोषित समर्थन मूल्य गैर-कानूनी और किसानों का खुला शोषण

90 प्रतिशत किसान समर्थन मूल्य से कम पर फसल बिचौलियों को बेचने को मजबूर हैं। यह समर्थन मूल्य की घोषणा करने वाली सरकार की विश्वसनीयता पर भी सवाल है।

Virender Singh Lather

केंद्र सरकार की ओर से 16 अक्टूबर 2024 को रबी विपणन सीजन 2025-26 के लिए सभी अनिवार्य रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा की गई। इसके अनुसार गेहूं 2425 रुपए, जौ 1980 रुपए, चना 5650 रुपए, मसूर 6700 रुपए, सरसों 5950 रुपए और कुसुम का 5940 रुपए प्रति क्विंटल समर्थन मूल्य निर्धारित किया गया है। पिछले वर्ष के मुकाबले गेहूं में 150 रुपए, सरसों में 300 रुपए, चना में 210 रुपए, जौ में 130 रुपए, मसूर में 275 रुपए व कुसुम में 140 रुपए के समर्थन मूल्य की बढ़ोतरी की गई है। 

क्या होता है एमएसपी

सरकारी नीति के अनुसार वर्ष 1967 से लगातार केंद्रीय कृषि लागत व मूल्य आयोग द्वारा की गई कृषि लागत की गणना के आधार पर केन्द्र सरकार प्रमुख फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करती है, जिसे आम भाषा मे एमएसपी मूल्य कहा जाता है। सरकार इन्हीं न्यूनतम समर्थन मूल्य की दर पर किसानों से फसलों की खरीद भी करती है।

हालांकि खुले बाजार में इन फसलों का मूल्य सरकार के एमएसपी से कम या ज्यादा हो सकता है। यानी निजी व्यापारियों और बिचौलियों पर सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है। एमएसपी को गारंटी कानून बनाए जाने की मांग के लिए किसान देशभर मे लगातार धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं और किसान की मांग सुनते के लिए माननीय सर्वोच न्यायालय ने एक कमेटी का गठन भी किया है।

पिछले 56 वर्षों से सरकार विभिन्न फसलों के समर्थन मूल्य की घोषणा कर रही है जिसका लाभ कुछ फसलों की सरकारी खरीद पर लगभग 10 प्रतिशत किसानों को मिल रहा है। बाकी 90 प्रतिशत किसान समर्थन मूल्य से कम पर फसल बिचौलियों को बेचने को मजबूर हैं। यह समर्थन मूल्य की घोषणा करने वाली सरकार की विश्वसनीयता पर भी सवाल है।

समर्थन मूल्य सी-2 कुल लागत पर घोषित नहीं होने से सरकार को उपज बेचने वाले लगभग एक करोड़ किसानों को एक लाख करोड़ रुपए वार्षिक से ज्यादा और समर्थन मूल्य गारंटी कानून नहीं बनने से समर्थन मूल्य से कम पर फसल उपज बेचने वाले देश के 12 करोड़ किसानों को लगभग 4 लाख करोड़ रुपए वार्षिक नुकसान होता है।

सरकार और बिचौलियों द्वारा किए जा रहे इस भारी आर्थिक शोषण के कारण ही देश का किसान कर्जमंद और ग्रामीण युवा खेती छोड़कर शहरों और विदेशों में पलायन को मजबूर हुए हैं।

त्रुटिपूर्ण कृषि लागत गणना

केंद्र सरकार द्वारा रबी विपणन सीजन 2025-26 के लिए एमएसपी की घोषणा केन्द्रीय कृषि लागत व मूल्य आयोग की रिपोर्ट “रबी फसलों की मूल्य नीति (विपणन मौसम 2025-26)” में की गई ए2+ एफएल कृषि लागत की गणना के आधार पर की गई है।

सारणी 5.4 के अनुसार गेहूं की लागत 1182, जौ की 1239, चने की 3527, मसूर की 3537,  तोरिया-सरसों की 3011 और कुसुम  की 3960 रुपए प्रति क्विंटल दर्शाई गई है। लेकिन इसी रिपोर्ट में दी गई विभिन्न सारणी केन्द्रीय कृषि लागत व मूल्य आयोग  द्वारा जानबूझकर की गई त्रुटिपूर्ण ए2+ एफएल कृषि लागत गणना की पोल खोल रही है।  

उल्लेखनीय है कि उपरोक्त रिपोर्ट की सारणी 5.1 के अनुसार, गेहूं की ए2+ एफएल कृषि लागत वर्ष 2022-23 मे 43760 रुपए प्रति हेक्टेयर थी और सारणी 5.3 के अनुसार अखिल भारतीय रबी फसलों के कृषि आदान मूल्य सूचकांक (आधार 2011-12) में वर्ष 2023-24 में और वर्ष 2024-25 में क्रमश 8.9 और  5.3 प्रतिशत वार्षिक बढ़ोतरी दर्ज हुई यानि वर्ष 2022-23 से वर्ष 2024-25 के दौरान कुल लागत 14.2 प्रतिशत बढ़ी।

इसके अनुसार गेहूं की ए2+ एफएल कृषि लागत वर्ष 2022-23 में 43760 प्रति हेक्टेयर से वर्ष 2024-25 में बढ़कर 49,974 रुपए प्रति हेक्टेयर हो जाएगी। फिर सारणी 3.7 के अनुसार गेहूं की अखिल भारतीय औसत पैदावार 35.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इसके अनुसार वर्ष 2024-25 के लिए गेहूं की ए2+ एफएल कृषि लागत 1416 प्रति किवंटल बनती है, जो कृषि लागत व मूल्य आयोग द्वारा गणना की गई गेहूं की ए2+ एफएल कृषि लागत 1182 रुपए से 234 रुपए प्रति क्विंटल ज्यादा बनती है।

ऐसी ही त्रुटिपूर्ण कृषि लागत गणना दूसरी फसलों की ए2+ एफएल कृषि लागत की गणना में भी की गई है जो केन्द्रीय कृषि लागत व मूल्य आयोग जैसी सरकारी संस्था की निष्पक्षता पर संदेह खड़ा करता है, जिसकी देश और किसान हित में उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए।

लेखक आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक हैं