कृषि

देश में 5 लाख से ज्यादा पशु चिकित्सकों की कमी के बीच लगातार बढ़ रहा एएमआर और जूनोटिक डिजीज का खतरा

Vivek Mishra

देश में पशु चिकित्सकों और डिस्पेंसरी की बड़ी कमी के बीच जानवरों से इंसान में होने वाले रोग (जूनोसिस) और उनके उत्पादों में एंटीबायोटिक की मौजूदगी इंसानों की सेहत के लिए खतरे का सबब बन रही है। ऐसे में पशुपालन और डेयरी से संबंधित स्थायी संसदीय समिति ने सरकार को गंभीरता से एक समग्र दृष्टि वाले समाधान को अपनाने का सुझाव दिया है। 

स्थायी समिति ने 05 अगस्त, 2021 को "स्टेटस ऑफ वेटरिनरी सर्विसेज एंड अवेलिबिलिटी ऑफ एनिमल वैक्सीन इन द कंट्री" नामक रिपोर्ट पेश की। स्थायी समिति ने देश में पशु चिकत्सकों की बड़ी कमी पर भी चिंता जाहिर की है। 

देश में इस वक्त गाय और भैसों  की कुल आबादी करीब 30 करोड़ की है। वहीं, 25 करोड़ के आसपास भेड़, बकरियां और सुअर भी हैं और इसके अलावा पोल्ट्री आबादी भी है। नियम के मुताबिक देश में प्रत्येक पांच हजार की आबादी पर एक पशु चिकित्सक और डिस्पेंसरी की जरूरत है। इस हिसाब से अभी देश में 5 लाख, 45 हजार पशु चिकत्सक या डिस्पेंसरी की कमी बनी हुई है। 

वहीं, समिति ने रिपोर्ट में कहा है कि जूनोसिस को रोकने और जानवरों से मिलने वाले खाद्य उत्पादों की सुरक्षा को बढ़ाने के साथ एंटी माइक्रोबियल रजिस्टेंस (एएमआर) पर भी सरकार को ध्यान देना होगा। साथ ही विभिन्न मंत्रालयों और विभागों को इस दिशा में मिलकर काम करना चाहिए। खासतौर से पोल्ट्री फॉर्म में होने वाले एनमिल ड्रग के दुरुपयोग और कुप्रभाव को लेकर अध्ययन भी किया जाना चाहिए।   

स्थायी समिति ने कहा कि वन हेल्थ कान्सेप्ट के तहत और नेटवर्क प्रोग्राम ऑन एंटीमाइक्रोबियल रजिस्टेंस (एएमआर) इन फूड, एनिमल्स एंड एक्वाकल्चर के तहत जो भी दिशाा-निर्देश दिए गए हैं उनका गंभीरता से पालन किया जाना चाहिए। 

समिति ने गौर किया है कि जानवरों में होने वाले रोगों की रिपोर्टिंग और सूचना के लिए दो केंद्रीय कानून मौजूद हैं। पहला द प्रिवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ इंफेक्शियस एंड कंटेजियस डिजी इन एनिमल एक्ट 2009 और दूसरा लाइवस्टॉक इमपोर्टेशन एंक्ट 1898 है। ऐसे में तेजी से प्रसार करने वाले रोगों और सीमा पार से आने वाले रोगों के साथ खरीद-फरोख्त आदि को लेकर सरकार को वेटटरिनरी सर्विसेज के लिए कुछ और ठोस कानून बनाने चाहिए।

समिति ने सरकार को जानवरों के इलाज और बचाव में इस्तेमाल होने वाली दवाईयों और हॉर्मोन को सुपरविजन में देने का सुझाव दिया है। साथ ही आधुनिक रासायनिक दवाइयों की जगह बीमारियों में पारंपरिक दवाइयों (इथनो-वेटरिनरी मेडिसिन - ईवीएम) के इस्तेमाल को बढ़ाने पर जोर देने के लिए है। 

वहीं, सरकार ने अपने जवाब में समिति को बताया है कि इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं। कीटनाशक और एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल को कम करने और पारंपरिक दवाओं को प्रोत्साहित करने के लिए प्रयास शुरू किए गए हैं। 

आयुष मंत्रालय के साथ मिलकर आर्युवेदिक दवाओं के इस्तेमाल को लेकर भी प्रयास की बात कही गई है। हालांकि, स्थायी समिति ने कहा कि मौजूदा वक्त में किए जा रहे प्रयास नाकाफी हैं। ऐसे में गंभीरता से और ठोस प्रयास किए जाने की जरूरत है।