कृषि

देश में मवेशी अस्पतालों की संख्या 66 हजार, जरूरत है 5 लाख की

देशभर में 2018-19 में 39,384 मवेशी अस्पताल थे जो कि अब घटकर वर्तमान में 37,726 ही रह गए हैं

Anil Ashwani Sharma

देशभर में मवेशियों की जनसंख्या लगभग 30 करोड़ है। कायदे से हर 5 हजार मवेशी के ऊपर एक अस्पताल चाहिए। इस हिसाब से आज की तारीख में 5 लाख 45 हजार के करीब अस्पताल चाहिए। और वर्तमान में देशभर में वेटनरी संस्थान 65,894 ही हैं। और इनमें मवेशी अस्पताल तो लगभग 37 हजार ही हैं।

आश्चर्यजनक किंतु सत्य कि एक तो पहले से ही इनकी संख्या कम है और यदि देश भर में उपलब्ध पशु चिकित्सालय की पिछले तीन सालों की संख्या को लेखा-जोखा देखें तो पता चलता है कि इनकी संख्या में भी लगातार कमी आ रही है।

देशभर में 2018-19 में  39,384 मवेशी अस्पताल थे जो कि अब घटकर वर्तमान में 37,726 ही रह गए हैं। यह बात मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय की स्थायी समिति कि रिपोर्ट में निकलकर आई है।

इसकी हकीकत जानने  लिए डाउन टू अर्थ ने रेंडमली मध्य प्रदेश के लगभग चार जिलों के ग्रामीण इलाकों का दौरा किया। मध्य प्रदेश के रीवा जिले के मेहवा गांव के 65 वर्षीय आदिवासी रामबहोर कहते हैं कि हमारे गांव में लगभग 2,200 मवेशी हैं और पशु चिकित्सालय यहां से लगभग सवा सौ किलोमीटर दूर मऊगंज तहसील में है।

वह कहते हैं कि हस्पताल नहीं होने के कारण उनके जानवरों में गलाघोटू बीमारी पिछले तीन सालों लगातार बढ़  रही है, गांव के आसपास मवेशी अस्पताल नहीं होने कारण अब तक इलाज नहीं हो पा रहा है।

वह बताते हैँ इस बीमारी में जानवर खाना नहीं खा पाते। इस बीमारी से गांव के लगभग 60 से अधिक जानवर पीड़ित हैं। लेकिन लॉकडाउन के कारण उनका कोई इलाज नहीं हो पाया। ऐसे में ये जानवर बहुत कमजोर हो गए हैं। गाय और भैंस का दूध कम हो गया है, वहीं बैल हल में जुतने लायक नहीं बचे। 

रामबहोर बताते हैं कि यह स्थिति अकेले इस गांव की ही नहीं है बल्कि उनके अनुसार कम से कम यह बीमारी हमारे गांव के आसपास के लगभग  10-12 गांवों में फैली हुई है और इन सभी जगहों पर मवेशियों के अस्पताल नहीं है। 

वह बेबसी से कहते हैं कि जानवर ही तो हम ग्रामीणों की पूंजी होती हैं और अब उसी में जंग लग गई है,ऊपर से बस हम तो अपने जानवरों के मरने का इंतजार करते रहते हैं। यह हम सब के लिए सचमुच में बहुत ही भयावह स्थिति है। इसका अहसास हम जैसे गांव वाले ही कर सकते हैं। 

वह कहते हैं कि इतनी दूर अस्पताल होने के कारण हम अपने जानवरों को वहां तक हांक कर भी नहीं ले सकते हैं क्योंकि इतनी दूर जाने के बाद भी कई बाद होता यह है कि वहां का अस्पताल भी किसी न किसी कारण बंद रहता है। ऐसे में हमारे लिए यह स्थिति तो और भी असहनीय हो जाती है।  

स्थायी समिति को सरकार ने बताया कि 1976 में एक कमेटी गठित कई गई थी।  इसमें कहा गया था कि 5,000 मवेशियों पर एक अस्पताल होना चहिए। लेकिन आज की तारीख लगभग 67 हजार के करीब ही मवेशी अस्पताल है।

सरकार का कहना है कि इसके लिए केंद्र व राज्य सरकार दोनों को मिलकर कोशिश करनी चाहिए। मवेशी अस्पताल के निर्माण में केंद्र व राज्य की भागीदारी का अनुपात 60:40 होता है। लेकिन यहां केंद्र तो अपनी ओर से धनराशि की व्यवस्था कर देता है लेकिन राज्य सरकार को मुश्किक होती है क्योंकि उनका बजट भी कम होता है।

समिति के सामने दिए गए सरकारी आंकड़ों को यदि एक नजर देखने पर पता चलता है कि देश के दस राज्यों में मवेशी अस्पतालों की कमी का औसत लगभग 80 प्रतिशत से ऊपर है। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश में वर्तमान में अस्पतालों की संख्या 2,475 है जबकि जरूरत है 10,498। यानी 76 प्रतिशत कमी।

इसी प्रकार से यदि देश के सबसे धनी राज्यों की स्थिति देखें तो वहां भी हालात दयनीय ही है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है गुजरात राज्य, जहां से देश की पहली श्वेत क्रांति का सूत्रपात हुआ था और इस क्रांति को सफल होने के लिए मवेशियों का स्वस्थ्य होना बहुत अधिक जरूरी है लेकिन यहां भी वर्तमान में मवेशी अस्प्तालों की संख्या 736 है जबकि जरूरत है 4,247 की।

मवेशी अस्पतालों नहीं होने कारण मध्य प्रदेश के सीधी जिले के आदिवासी इलाके कुसमी में पिछले तीन सालों से मवेशियों में खुर की बीमारी फैली हुई लेकिन अस्पताल नहीं होने के कारण बजुबान जानवरों के सामने बीमारियां झेलने के सिवाय कोई चारा नहीं है। 

हिनौती गांव के विनोद कुमार बताते हैं कि हमारे गांव में खुर की बीमारी फैली हुई है और इससे जानवरी चार से छह माह में मर जाता है। वह बताते हैं कि यह बीमारी इस गांव के आसपास के लगभग सौ किलोमीटर दायरे में फैली हुई है। लेकिन इस दायरे में कोई भी मवेशी अस्पताल नहीं है। 

जिले के कुसमी ब्लॉक के बरमानी गांव में भी कई बीमारी से जकड़े हुए हैं जानवर। वहीं इस ब्लॉक के लगभग सात से आठ गांवों में जानवरी विशेषकर खुर और चकते की बीमारी से ग्रस्त हैं। अस्पताल नहीं होने के कारण स्थानीय आदिवासी अपने जानवरों की बीमारी का इलाज अपनी परंपराओं से चली आ रही जंगलों से निकाली गई औषधि से करते हैं।

इस संबंध में बरमानी गांव के निवासी राकेश सिंह कहते हैं कि यह एक प्रकार से जुआं खेलने वाली बात हुई। इसमें कई बार तो जानवरी बच जाते हैं लेकिन अधिकांश बार वे मर ही जाते हैं। यह सब एक प्रकार से मन को संतावने देना जैसा है कि हमने अपने जानवरों को ऐसे ही बेसहारा नहीं छोड़ दिया कम से कम कुछ तो इलाज किया।

वह कहते हैं कि जमीनी सच्चाई यही है कि यहां वेटनरी अस्पताल कम से 165 किलोमीटर दूर है। ऐसे में इतनी दूर कौन ले जाएगा अपने जानवरों को?