कृषि

रबी सीजन 2022-23 के लिए एमएसपी की दरें बढ़ाई गईं, विशेषज्ञ बोले खेती की लागत दर भी नहीं निकलेगी

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने रबी विपणन सीजन 2022-23 के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को बढ़ाने को मंजूरी दी है लेकिन विशेषज्ञों ने विश्लेषण में कहा यह असल में बीते वर्षों से घटी है।

Vivek Mishra

एक तरफ किसानों का फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी की मांग को लेकर आंदोलन जारी है। वहीं, दूसरी तरफ सरकार ने 8 सितंबर, 2021 को रबी विपणन सीजन (आरएमएस) 2022-23 के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को बढ़ाने की मंजूरी दी है। लेकिन सवाल यही है कि रबी की जिन फसलों पर एमएसपी बढ़ाई गई है क्या वह मौजूदा लागत के साथ किसानों के लिए लाभकारी होगा? कृषि विशेषज्ञों की नजर में एमएसपी का यह बढ़ावा लाभकारी नहीं है, बल्कि यह किसानों की लागत नहीं निकाल पाएगा।

08 सितंबर, 2021 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने रबी विपणन सीजन (आरएमएस) 2022-23 के लिये सभी रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में बढ़ोतरी करने को मंजूरी दी। जिसमें सबसे कम बढोत्तरी गेहूं में 40 रुपए और जौ में 35 रुपए की गई है।

सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि पिछले वर्ष के एमएसपी में मसूर की दाल और कैनोला (रेपसीड) तथा सरसों में उच्चतम संपूर्ण बढ़ोतरी (प्रत्येक के लिए 400 रुपये प्रति क्विंटल) करने की सिफारिश की गई है। इसके बाद चने (130 रुपये प्रति क्विंटल) को रखा गया है। पिछले वर्ष की तुलना में कुसुम के फूल का मूल्य 114 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ा दिया गया है। कीमतों में यह अंतर इसलिए रखा गया है, ताकि भिन्न-भिन्न फसलें बोने के लिये प्रोत्साहन मिले।

इस मुद्दे पर कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा ने डाउन टू अर्थ को बताया कि किसान जिस एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग कर रहे है, उसका स्पष्ट मतलब है कि वह चाहते हैं कि तय एमएसपी के नीचे ट्रेडिंग न हो। लेकिन इस वक्त महंगाई की दर 5.9 फीसदी है। पेट्रोल और डीजल के दाम दोगुने बढ़ गए हैं। मौजूदा कृषि लागत काफी बढ़ चुकी है। मिसाल के तौर पर गेहूं और जौ पर महज 2 फीसदी एमएसपी बढ़ा है। यह मौजूदा महंगाई दर को बिल्कुल कवर नहीं करता। वहीं, सरसो की मौजूदा कीमत 7000 रुपए से 8000 रुपए के बीच है। जबकि सरकार ने 400 रुपए की एमएसपी बढ़ाकर उसे सिर्फ 5050 रुपए तक पहुंचा पाई है। ऐसे में सरसो पैदा करने वाला किसान कहां बाजार भाव के पास पहुंच पाएगा। 

विपणन मौसम 2022-23 के लिए सभी रबी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (रुपये/क्विंटल में)

फसल

आरएमएस 2021-22 के लिए एमएसपी

 

आरएमएस 2022-23 के लिए एमएसपी

 

उत्पादन लागत* 2022-23

एमएसपी में बढ़ोतरी (संपूर्ण)

लागत पर लाभ (प्रतिशत में)

गेहूं

1975

2015

1008

40

100

जौ

1600

1635

1019

35

60

चना

5100

5230

3004

130

74

दाल (मसूर)

5100

5500

3079

400

79

कैनोला और सरसों

4650

5050

2523

400

100

कुसुम के फूल

5327

5441

3627

114

50

यहां कुल लागत का उल्लेख हैजिसमें चुकाई जाने वाली कीमत शामिल हैयानी मजदूरों की मजदूरीबैल या मशीन द्वारा जुताई और अन्य कामपट्टे पर ली जाने वाली जमीन का किरायाबीज, उर्वरक, खादसिंचाई शुल्क, उपकरणों और खेत निर्माण में लगने वाला खर्चगतिशील पूंजी पर ब्याजपम्प सेटों इत्यादि चलाने पर डीजल/बिजली का खर्च इसमें शामिल है। इसके अलावा अन्य खर्च तथा परिवार द्वारा किये जाने वाले श्रम के मूल्य को भी इसमें रखा गया है।

वहीं सरकार ने कहा कि आरएमएस 2022-23 के लिए रबी फसलों की एमएसपी में बढ़ोतरी केंद्रीय बजट 2018-19 में की गई घोषणा के अनुरूप है, जिसमें कहा गया कि देशभर के औसत उत्पादन को मद्देनजर रखते हुए एमएसपी में कम से कम डेढ़ गुना इजाफा किया जाना चाहिए, ताकि किसानों को तर्कसंगत और उचित कीमत मिल सके। किसान खेती में जितना खर्च करता है, उसके आधार पर होने वाले लाभ का अधिकतम अनुमान किया गया है। इस संदर्भ में गेहूं, कैनोला व सरसों (प्रत्येक में 100 प्रतिशत) लाभ होने का अनुमान है। इसके अलावा दाल (79 प्रतिशत), चना (74 प्रतिशत), जौ (60 प्रतिशत), कुसुम के फूल (50 प्रतिशत) के उत्पादन में लाभ होने का अनुमान है।

किसान संगठन आशा किसान स्वराज की ओर से किरण कुमार विस्सा ने सरकार के एमएसपी की बढ़ी हुई दरों की तुलना मौजूदा 6 फीसदी महंगाई दर और 2021-22 की एमएसपी दरों से करने के बाद अपने विश्लेषण में कहा कि यह पुरानी एमएसपी से भी कम है।

देविंदर शर्मा ने कहा कि एमएसपी की यह बढोत्तरी किसानों को एग्रीकल्चर से बाहर करने का एक पुराना इकोनॉमिक डिजाईन का हिस्सा है हाल ही में सरकारी कर्मचारियों का महंगाई भत्ता बढ़ाया गया है, जबकि किसानों के लिए एमएसपी में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। एमएसपी को एक बेंचमामर्क बनना चाहिए कि इससे नीचे ट्रेडिंग नहीं होगी, तभी बात बन पाएगी।  

ताजा एमएसपी दरों की वर्ष 2021-22 से तुलना 

वहीं, सरकार ने एमएसपी बढ़ाने के पीछे तर्क दिया है कि  पिछले कुछ वर्षों से तिलहन, दलहन, मोटे अनाज के न्यूनतम समर्थन मूल्य में एकरूपता लाने के लिये संयुक्त रूप से प्रयास किए जाते रहे हैं, ताकि किसान इन फसलों की खेती अधिक रकबे में करने के लिए प्रोत्साहित हों। इसके लिए वे बेहतर प्रौद्योगिकी और खेती के तौर-तरीकों को अपनायें, ताकि मांग और आपूर्ति में संतुलन पैदा हो।

लेकिन दलहन संकट का भी इससे हल नहीं निकल पाएगा। दलहन के कुल उत्पादन में रबी सीजन के चना की प्रमुख हिस्सेदारी है। इसके अलावा सबसे कम उत्पादन देश में मसूर का होता है। इसलिए कुल 30 लाख टन आयात होने वाली दाल में 10 लाख टन मसूर शामिल होता है जो कि अधिकांश बाजार के उत्पादों में इस्तेमाल किया जाता है। भारतीय भोजन में चना और अरहर के मुकाबले मसूर का इस्तेमाल बहुत कम है। ऐसे में घरेलू उत्पादन होने पर किसान और उपभोक्ता दोनों के लिए रोजमर्रा दाल के संकट का समाधान भी नहीं होगा। 

आशा किसान स्वराज ने कहा कि सरकार किसानों को गुमराह कर रही है। असल में हमारी तुलना बताती है कि एमएसपी बढ़ने के बजाए घट रही है।