कृषि

वक्त से चार महीने पहले सरकार ने बढ़ाए गन्ने की खरीद के दाम, क्या है नया एफआरपी?

Raju Sajwan

देश के लगभग पांच करोड़ गन्ना किसानों को लुभाने के लिए केंद्र सरकार ने 21 फरवरी 2024 की देर शाम एक दांव फेंका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति की बैठक में गन्ने के उचित एवं लाभकारी मूल्य यानी एफआरपी में आठ फीसदी की वृद्धि का निर्णय लिया गया।

यह निर्णय अप्रत्याशित है, क्योंकि अमूमन जून माह में एफआरपी की घोषणा की जाती है, क्योंकि चीनी सीजन की शुरुआत अक्टूबर से होती है। पिछले साल 28 जून 2023 को गन्ने की एफआरपी में वृद्धि को मंजूरी दी गई थी।

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देर शाम प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) द्वारा जारी विज्ञप्ति में बताया गया कि कैबिनेट समिति ने चीनी सीजन 2024-25 के लिए 10.25 प्रतिशत की चीनी रिकवरी दर पर गन्ने के एफआरपी 340 रुपए प्रति क्विंटल को मंजूरी दे दी। यह गन्ने की ऐतिहासिक मूल्य वृद्धि है, जो चालू सीजन 2023-24 के लिए गन्ने की एफआरपी से लगभग 8 प्रतिशत अधिक है। विज्ञप्ति के मुताबिक संशोधित एफआरपी 01 अक्टूबर 2024 से लागू होगी।

विज्ञप्ति में दावा किया गया कि गन्ने की लागत से 107 प्रतिशत अधिक एफआरपी के कारण गन्ना किसानों की समृद्धि सुनिश्चित होगी। यह भी दावा किया गया कि भारत पहले से ही दुनिया में गन्ने की सबसे ज्यादा कीमत चुका रहा है और इसके बावजूद सरकार भारत के घरेलू उपभोक्ताओं को दुनिया की सबसे सस्ती चीनी सुनिश्चित कर रही है।

प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि केंद्र सरकार के इस फैसले से 5 करोड़ से अधिक गन्ना किसानों (परिवार के सदस्यों सहित) और चीनी क्षेत्र से जुड़े लाखों लोगों को फायदा होने वाला है। इससे किसानों की आय दोगुनी करने की मोदी की गारंटी को पूरा करने की पुष्टि होती है।

कैबिनेट समिति द्वारा दी गई मंजूरी के चलते चीनी मिलें गन्ने की एफआरपी 10.25 प्रतिशत की रिकवरी पर 340 रुपए प्रति क्विंटल की दर से भुगतान करेंगी। वहीं, रिकवरी में प्रत्येक 0.1% की वृद्धि के साथ, किसानों को ₹ 3.32 की अतिरिक्त कीमत मिलेगी, जबकि वसूली में 0.1% की कमी पर समान राशि की कटौती की जाएगी।

हालांकि, गन्ने का न्यूनतम मूल्य 315.10 रुपए प्रति क्विंटल है, जो 9.5 प्रतिशत की रिकवरी पर है। भले ही चीनी की रिकवरी कम हो, किसानों को ₹315.10 प्रति क्विंटल की दर से एफआरपी का आश्वासन दिया जाता है।

यहां यह उल्लेखनीय है कि पंजाब-हरियाणा में किसान फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी की मांग को लेकर पिछले 10 दिन से प्रदर्शन कर रहे हैं और किसानों व सरकार के बीच चार दौर की बातचीत हो चुकी है।

आखिरी दौर की बातचीत में सरकार ने अगले पांच साल के लिए केवल पांच फसलों की कानूनी गारंटी देने का प्रस्ताव किसानों को सामने रखा, जिसे किसानों ने ठुकरा दिया। इसके बाद से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि सरकार व किसानों के बीच टकराव बढ़ सकता है। माना जा रहा है कि इसी दबाव में सरकार ने वक्त से पहले ही एफआरपी की घोषणा कर दी है।

प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि पिछले 10 वर्षों में मोदी सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि किसानों को उनकी फसल का सही मूल्य सही समय पर मिले। पिछले चीनी सीजन 2022-23 का 99.5 प्रतिशत गन्ना बकाया और अन्य सभी चीनी सीजन का 99.9 प्रतिशत किसानों को पहले ही भुगतान किया जा चुका है, जिससे चीनी क्षेत्र के इतिहास में सबसे कम गन्ना बकाया लंबित है।

विज्ञप्ति में दावा किया गया कि सरकार द्वारा समय पर नीतिगत हस्तक्षेप के चलते चीनी मिलें आत्मनिर्भर हो गई हैं और 2021-22 के बाद से सरकार द्वारा उन्हें कोई वित्तीय सहायता नहीं दी जा रही है। फिर भी, केंद्र सरकार ने किसानों के लिए गन्ने की 'सुनिश्चित एफआरपी और सुनिश्चित खरीद' सुनिश्चित की है।