कृषि

वैज्ञानिकों ने धान और गेहूं की फसल में समय से पहले अंकुरण का खोजा समाधान

गेहूं में समय से पहले अंकुरण (पीएचएस) के कारण होने वाला प्रत्यक्ष आर्थिक नुकसान प्रति वर्ष 1 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाता है

Dayanidhi

बीज निष्क्रियता पौधों के जीवित रहने के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उन्हें मौसम के आधार पर जीवित रहने के लिए अनुकूल नहीं होने देता है। हद से अधिक निष्क्रियता खेती में लगने वाले समय को कम कर सकती है। बुवाई के बाद एक उच्च, अधिक दर प्राप्त करने के लिए किसान अक्सर चावल और गेहूं की कम निष्क्रिय किस्में लगाते हैं। 

क्या होती है बीज निष्क्रियता?

बीज निष्क्रियता एक विकासवादी अनुकूलन है जो बीजों को अनुपयुक्त पारिस्थितिक स्थितियों के दौरान अंकुरित होने से रोकता है जो आमतौर पर अंकुर के जीवित रहने को कम करता है।

इस तरीके ने दुनिया भर में अनचाही अंकुरण की समस्या जिसे समय से पहले अंकुरण या प्री-हार्वेस्ट स्प्राउटिंग (पीएचएस ) कहा जाता है। यह अनाज की उपज और गुणवत्ता दोनों को गंभीर रूप से कम कर देता है। चावल में, पीएचएस दुनिया भर में खासकर दक्षिण चीन में फसल के मौसम के दौरान लंबे समय तक बारिश के मौसम के कारण पारंपरिक चावल के लगभग 6 फीसदी और हाइब्रिड चावल के रकबे के 20 फीसदी तक को नुकसान पहुंचाता है। रोटी या ब्रेड वाले गेहूं में, पीएचएस के कारण होने वाला प्रत्यक्ष आर्थिक नुकसान प्रति वर्ष 1 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाता है।

दुनिया भर में जलवायु में हो रहे बदलाव के साथ, पीएचएस या समय से पहले अंकुरण अधिक बार हो रहा है। उदाहरण के लिए, प्रमुख गेहूं उत्पादन क्षेत्रों, विशेष रूप से मध्य और निचली यांग्त्ज़ी नदी घाटी के ठंडे इलाके के गेहूं क्षेत्रों और चीन में पीली और हुआई घाटियों को 2013, 2015 और 2016 में गंभीर पीएचएस समस्याओं का सामना करना पड़ा। 2016 से  2020 में भी भारी वर्षा चीन की मध्य और निचली यांग्त्ज़ी नदी घाटी के धान रोपाई वाले इलाकों में गंभीर पीएचएस समस्याए देखी गई।

इस समस्या को हल करने के प्रयास में लगे शोधकर्ताओं में चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज (सीएएस) के इंस्टीट्यूट ऑफ जेनेटिक्स एंड डेवलपमेंटल बायोलॉजी (आईजीडीबी) शामिल हैं जिन्होंने हाल ही में खुलासा किया कि एसडी6 /आईसीई2 आणविक मॉड्यूल धान के बीज की निष्क्रियता को नियंत्रित करता है और जिसके धान और गेहूं के पीएचएस सहनशीलता में सुधार करने की काफी संभावना है।

अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने सीड डॉर्मेंसी 6 (एसडी 6) नामक एक जीन की पहचान करने के लिए कम निष्क्रिय जैपोनिका चावल की किस्म निप्पोनबारे और अधिक निष्क्रिय वाले औस धान की खेती कसलथ के बीच एक क्रॉस से प्राप्त गुणसूत्र के एक सेट का उपयोग किया जो धान के बीज की निष्क्रियता में अहम भूमिका निभाता है।

शोधकर्ताओं ने पाया कि एसडी 6 और इसके इंटरेक्शन पार्टनर आईसीई 2 एब्सिसिक एसिड (एबीए) होमियोस्टेसिस को नियंत्रित करके धान के बीज की निष्क्रियता को नियंत्रित करते हैं। विशेष रूप से, एसडी 6 सीधे एबीए अपचय जीन एबीए8ओ एक्स3 को बढ़ावा देता है और अप्रत्यक्ष रूप से एबीए बायोसिंथेटिक जीन एनसीईदी 2 को आगे बढ़ने से रोकता है, जबकि आईसीई 2 विपरीत तरीके से कार्य करता है।

बीज निष्क्रियता की शक्ति पर तापमान का बड़ा प्रभाव पड़ता है। शोधकर्ताओं ने खुलासा किया कि एसडी6/आईसीई2 आणविक मॉड्यूल तापमान पर निर्भर तरीके से चावल के बीज की निष्क्रियता को नियंत्रित करता है। जब बीज कमरे के तापमान पर होते हैं तो बीज अंकुरण करने के लिए एसडी6 को ऊपर की ओर नियमित किया जाता है। हालांकि, कम तापमान पर, एसडी 6 को कम किया जाता है जबकि आईसीई 2 को बीज डॉर्मेंसी बनाए रखने के लिए अधिक नियमित  किया जाता है।

चावल की तीन किस्मों, टी 619, वू 27 और हुआई 5 में एसडी 6 में बदलाव करके, शोधकर्ताओं ने पाया कि एसडी 6 का जीन में बदलाव धान में पीएचएस सहनशीलता में सुधार के लिए एक तेज और उपयोगी रणनीति हो सकती है। दिलचस्प बात यह है कि गेहूं की किस्म केनोंग 199 में टीएइसडी 6 जीन में सुधार  करने से भी गेहूं में पीएचएस प्रतिरोध में काफी सुधार हुआ है, यह दर्शाता है कि धान और गेहूं दोनों में बीज निष्क्रियता को नियंत्रित करने के लिए एसडी 6 जीन कार्यात्मक रूप से संरक्षित है।

एसडी 6 और आईसीई 2 तापमान के आधार पर बीजों में एबीए सामग्री को ठीक करके बीज की निष्क्रियता को नियंत्रित करते हैं। इस तरह, वे बीजों को प्राकृतिक मौसमी परिवर्तन से उबरने और सफल उत्पादन सुनिश्चित करने में मदद करते हैं। इस कारण से, एसडी 6  क्षेत्र की परिस्थितियों में अनाज में पीएचएस प्रतिरोध में सुधार के लिए एक शक्तिशाली लक्ष्य हो सकता है।