कृषि

जैविक खेती का सच-2: केंद्र व राज्य सरकारें चला रही हैं कई योजनाएं, लेकिन...

केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय और राज्य सरकारों ने भी विभिन्न योजनाएं चलाईं हैं। क्या हैं ये योजनाएं-

Amit Khurana, Vineet Kumar

पर्यावरण और स्वास्थ्य पर रासायनिक खेती के गंभीर दुष्प्रभाव को देखते हुए धीरे-धीरे ही सही लेकिन जैविक व प्राकृतिक खेती की तरफ लोगों का झुकाव बढ़ रहा है। यह खेती अपार संभावना ओं का दरवाजा खोलती है। हालांकि भारत में यह खेती अब भी सीमित क्षेत्रफल में ही हो रही है। सरकारों द्वारा अभी काफी कुछ करना बाकी है। अमित खुराना व विनीत कुमार ने जैविक खेती के तमाम पहलुओं की गहन पड़ताल की। पहली कड़ी में आपने पढ़ा, खेती बचाने का एकमात्र रास्ता, लेकिन... । दूसरी कड़ी में पढ़ें- 


देश में रसायन मुक्त कृषि मुख्यत: किसानों और सिविल सोसाइटी के प्रयासों से आगे बढ़ी है। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय और राज्य सरकारों ने भी विभिन्न योजनाएं चलाईं हैं। भारत में जैविक खेती नीति का एक छोटा सा दस्तावेज 2005 में लाया गया। उद्योग और वाणिज्य मंत्रालय द्वारा नेशनल प्रोग्राम फॉर ऑर्गेनिक प्रॉडक्शन कार्यक्रम (एनपीओपी), जैविक प्रमाणीकरण के लिए 2001 से चल रहा है। इसके अंतर्गत थर्ड पार्टी सर्टिफिकेशन होता है। कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) और मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चैन डेवलपमेंट फॉर नॉर्थ ईस्ट रीजन (एमओवीसीडीएनआर) योजना 2015 से चलाई जा रही है। इन योजनाओं के माध्यम से राज्य सरकारें किसानों को जैविक खेती के कार्यक्रम में शामिल कर उनका सहयोग करती हैं। इसके अलावा नेशनल सेंटर ऑफ ऑर्गेनिक फार्मिंग द्वारा नेशनल प्रोजेक्ट ऑन ऑर्गेनिक फार्मिंग वर्ष 2004 से जैविक और बायो- फर्टिलाइजर आदि के उत्पादन और इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए चलाया जा रहा है। 



कुछ राज्य सरकारें केंद्र की राष्ट्रीय विकास योजना और मिशन फॉर इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ हॉर्टिकल्चर के बजट का कुछ हिस्सा जैविक खेती में इस्तेमाल करती हैं। राज्य सरकारें अलग से भी अपनी योजनाएं जैविक और प्राकृतिक कृषि के लिए चलाती हैं। सरकार द्वारा जैविक सर्टिफिकेशन, एनपीओपी प्रोग्राम के अंतर्गत थर्ड पार्टी सर्टिफिकेशन और पार्टिसिपेटरी गारंटी स्कीम के अंतर्गत विकेन्द्रीकृत तरीके द्वारा किसानों को शामिल करके किए जाने का प्रावधान है। हाल ही में भारत सरकार की ओर से एक महत्वाकांक्षी योजना “भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति” को बड़े स्तर पर शुरू करने की चर्चा थी। कृषि मंत्रालय ने इसके लिए 4,371 करोड़ रुपए का प्रस्ताव रखा था, लेकिन यह स्वीकार नहीं किया गया और अब इसे पीकेवीवाई योजना का एक छोटा अंग बना दिया गया है। इसके लिए अलग से बजट का भी कोई प्रावधान नहीं किया गया है। 

दिल्ली स्थित पर्यावरण थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की रिपोर्ट “स्टेट ऑफ ऑर्गेनिक एंड नेचुरल फार्मिंग इन इंडिया- चैलेंजेज एंड पॉसिबिलिटीज” को सितंबर 2020 में नीति आयोग आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार द्वारा जारी किया गया। इस रिपोर्ट के अनुसार, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के मार्च 2020 के आंकड़ों के अनुसार, देश के 27.8 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में जैविक खेती हो रही है। यह देश के शुद्ध बोए गए क्षेत्रफल 14.01 करोड़ हेक्टेयर का मात्र 2 प्रतिशत है। इसका लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा एनपीओपी, 21.5 प्रतिशत हिस्सा पीकेवीवाई, 2.6 प्रतिशत हिस्सा एमओवीसीडीएनआर योजना और 6 प्रतिशत हिस्सा राज्य सरकारों के विभिन्न कार्यक्रमों के अंतर्गत आता है। इन सबके अतिरिक्त भारत के जंगलों से 14.9 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल से जैविक उत्पाद इकठ्ठा किए जाते हैं। 

कृषि मंत्रालय के मार्च 2020 के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में सिर्फ लगभग 19 लाख किसान ही जैविक खेती के लिए पंजीकृत हैं, जो देश के 14.6 करोड़ कृषि परिवारों का सिर्फ 1.3 प्रतिशत है (देखें, जैविक खेती की मौजूदा स्थिति, पेज 32)। कुछ राज्यों जैसे- सिक्किम, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, केरल, उत्तराखंड, मिजोरम, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश ने 100 प्रतिशत जैविक या प्राकृतिक खेती में बदलने का लक्ष्य बनाया हुआ है। आंध्र प्रदेश ने 2027 और हिमाचल प्रदेश ने 2022 तक पूर्ण प्राकृतिक कृषि राज्य बनने का लक्ष्य रखा है। लगभग 12 राज्यों ने अपनी स्टेट ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन एजेंसियां बना रखी हैं और कुछ राज्यों के अपने खुद के जैविक ब्रांड भी है, जैसे एमपी ऑर्गेनिक, ऑर्गेनिक राजस्थान, केरला नेचुरल, जैविक झारखंड, नागा ऑर्गेनिक, त्रिपुरा ऑर्गेनिक, ऑर्गेनिक मणिपुर, फाइव रिवर पंजाब, बस्तर नेचुरल, नासिक ऑर्गेनिक आदि। हालांकि जमीनी हकीकत यह है कि जहां सिक्किम देश का पहला पूर्ण जैविक राज्य बन गया है वहीं अभी तक अधिकतर राज्यों का एक छोटा हिस्सा ही जैविक या प्राकृतिक खेती के अंतर्गत आ पाया है। इन आंकड़ों से साफ है कि देश की जैविक नीति 2005 में आने के बावजूद, खास काम नहीं हुआ है। हालांकि देश के कई हिस्सों में फैले ऐसे जैविक किसान भी हैं, जो वर्षा आधारित और आदिवासी क्षेत्रों में पंजीकृत नहीं है और इसलिए उनकी संख्या को सरकारी आंकड़ों में शामिल नहीं किया गया है। 

देश के शुद्ध बोए गए क्षेत्रफल के मात्र दो प्रतिशत हिस्से में ही जैविक खेती का होना चिंता का विषय है, जबकि भारत सरकार के भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के जैविक खेती पर एक दीर्घकालिक रिसर्च कार्यक्रम “नेटवर्क प्रोजेक्ट ऑन ऑर्गेनिक फार्मिंग” के काफी सकारात्मक व उत्साहवर्धक परिणाम सामने आ रहे हैं। यह रिसर्च कार्यक्रम वर्ष 2003-04 से 12 राज्यों में चल रहा है। इसके नतीजे बताते हैं कि कई जैविक फसलों की पैदावार, रासायनिक आधारित फसलों के मुकाबले 5-20 प्रतिशत बढ़ गई है। ये फसलें हैं- लंबी भिंडी, हल्दी, कपास, गाजर, काली मिर्च, लोबिया, प्याज, अदरक, सेम फली, मूंग, सूरजमुखी, लहसुन, मक्का, सोयाबीन, बरसीम, बैंगन, मिर्ची, शिमला मिर्च, टमाटर, चारा, आलू, मटर, मूली और फूल गोभी। कुछ स्थानों पर आलू, पत्ता गोभी, फ्रेंच बीन, मसूर, मूली, इसबगोल, सरसों, गोभी, बेबीकॉर्न, धान, काबुली चना और मूंगफली की जैविक पैदावार 5-20 प्रतिशत गिर गई। जैविक के अंदर सभी मुख्य फसलों जैसे धान, मक्का, सोयाबीन, काबुली चना और देसी कपास में शुरुआती 1-3 वर्षों में पैदावार थोड़ी घट गई, जो बाद में रासायनिक फसलों के बराबर हो गई या उससे भी ज्यादा बढ़ गई। हालांकि गेहूं के मामले में ऐसा नहीं हुआ और जैविक की पैदावार रासायनिक से हमेशा कम रही। जैविक विधि में सभी फसलों में मिट्टी का जैविक कार्बन 10-20 प्रतिशत बढ़ गया और खेत की कुल आमदनी 20-352 प्रतिशत तक बढ़ गई।