वेब सीरीज 'मिट्टी: एक नयी पहचान' ग्रामीण जीवन के संघर्षों को उजागर करती है।
यह सीरीज छोटे किसानों की समस्याओं, जैसे कर्ज, मौसम की मार और सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करती है।
राघव का किरदार उन्नत खेती के माध्यम से अपने दादाजी के सपने को पूरा करने की कोशिश करता है, जो दर्शकों को प्रेरित करता है।
पिछले कुछ सालों से ओटीटी प्लेटफॉर्म पर ग्रामीण पृष्ठभूमि को लेकर कई वेब सीरीज आईं। इनमें से “पंचायत” ने लोकप्रियता के नए मापदंड स्थापित किए। इसके अलावा “ग्राम चिकित्सालय” और “दुपहिया” को भी दर्शकों की खूब सराहना मिली।
इन वेब सीरीज में मुख्य रूप से उन मुद्दों को दिखाया गया है, जो ग्राम जीवन में आम लोगों से करीब से जुड़ी हैं। उदाहरण के तौर पर “पंचायत” के हर सीजन में सरकार की अलग-अलग योजनाओं की हकीकत सामने लाने की कोशिश की गई है, वहीं “दुपहिया” में दहेज प्रथा को मूल में रखा गया है। वहीं “ग्राम चिकित्सालय” में गांवों में सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं की हकीकत को दर्शाने की कोशिश की गई है। इसी कड़ी में 10 जुलाई को अमेजन एमएक्स प्लेयर प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुई वेब सीरीज “मिट्टी: एक नयी पहचान” ग्राम जीवन से जुड़े एक महत्वपूर्ण मुद्दे की ओर दर्शकों का ध्यान खीचती है।
बचपन से हम लोग सुनते आ रहे हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है और भारत की आत्मा गांवों में बसती है। लेकिन इसी देश में छोटे किसानों की हालत भी किसी से छुपी नहीं है। किसानों को कभी अपनी फसलों का उचित मूल्य नहीं मिल पता, तो कभी मौसम की मार से फसलों का नुकसान हो जाता है। कभी सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार की वजह से किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।
आठ कड़ियों वाली “मिट्टी: एक नई पहचान” वेब सीरीज में आम किसानों से जुड़े इन मुद्दों को बखूबी दर्शाया गया है। इस वेब सीरीज की शुरुआत एक विज्ञापन कंपनी में काम करने वाले लड़के राघव (इश्वाक सिंह) के एक प्रेजेंटेशन सीन से होती है, जिस दौरान उसे बार-बार अपने पिता का फोन आ रहा होता है। प्रेजेंटेशन खत्म होने पर जब वह अपने पिता को वापस फोन लगाता है, तो उसे अपने दादाजी (योगेंद्र टिकू) के गुजर जाने का समाचार मिलता है।
यह समाचार मिलते ही उसके चेहरे पर उदासी छा जाती है और उसकी आंखों के सामने बचपन की यादें और दादाजी के साथ गांव में बिताए गए पल घूमने लगते हैं। वह शीघ्र ही अपने दादाजी के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए गांव की तरफ रवाना हो जाता है। गांव पहुंचकर उसे पता चलता है कि उसके दादाजी ने उन्नत खेती के लिए बैंक से कर्ज ले रखा था, लेकिन खेती सफल नहीं होने की वजह से वह लोन नहीं चुका पाए और रिकवरी एजेंट के रोज-रोज के तानों की वजह से उनका स्वास्थ्य गिरता चला गया और वह चल बसे। राघव अपने दादाजी से बहुत प्यार करता था, इसलिए उसने वह लोन चुकाने का फैसला किया। लेकिन जब वह रिकवरी एजेंट के पास पहुंचा तो एजेंट ने फिर से दादाजी का अपमान शुरू कर दिया, जिससे आहत होकर राघव ने उन्नत खेती से प्राप्त आय से ही लोन चुकाने का फैसला कर लिया, ताकि वह अपने दादाजी के फैसले को सही साबित करके उनका खोया सम्मान वापस दिला सके।
यहीं से राघव की जिंदगी मे बड़ा परिवर्तन आने लगता है। वह इस समय अपने अंतर्द्वंद्व से जूझता दिखाई देता है, जहां एक ओर उसकी विज्ञापन कंपनी की अच्छी सैलरी वाली नौकरी है, वहीं दूसरी ओर अपने दादाजी का सपना। वह जल्द ही इस अंतर्द्वंद्व में से अपने दादाजी के सपने को चुनता है और उन्नत कृषि की बारीकियों को सीखने के लिए एक सरकारी अधिकारी की मदद लेकर कुछ सफल किसानों से मिलता है। इससे उसे थोड़ा आत्मविश्वास मिलता है। वह खेती में पारंपरिक ज्ञान के साथ नई कृषि तकनीक जैसे पॉलीहाउस, ड्रोन और सेंसर का सफल उपयोग करता है। वह उन्नत खेती के लिए अपने खेत की मिट्टी की जांच करवाता है और फिर फूलों की खेती करने का फैसला करता है। इस निर्णय पर गांव के लोग काफी उपहास करते हैं, लेकिन वह हिम्मत नहीं हारता और शुरुआती असफताओं के बाद एक दिन न सिर्फ फूलों की खेती में सफल होता है, बल्कि गांव के लोगों को भी उन्नत खेती के लिए प्रेरित करने में कामयाब होता है।
इस दौरान राघव का एक संवाद, “तुम अपने नाम के आगे इंजीनियर, डॉक्टर, आर्किटेक्ट लगा सकते हो तो मैं किसान क्यों नहीं लगा सकता”, कृषि को एक प्रभावी व्यवसाय की तरह स्थापित करने की सफल कोशिश है।
यह सीरीज भारत में छोटे किसानों को खेती में आने वाले तमाम दिक्कतों को बखूबी चित्रित करता है, चाहे वह कर्ज के बोझ तले दबकर अपनी जिंदगी खत्म कर देने का मामला हो अथवा मौसम की मार की वजह से फसलों के नुकसान का। चाहे वह टिड्डी दल के हमले का मामला हो या सरकारी कृषि नीतियों के पालन में भ्रष्टाचार का। यह सीरीज सधी हुई कहानी और मंजे हुए अभिनय और निर्देशन के दम पर दर्शकों के मस्तिष्क पर छाप छोड़ने में सफल है।
इस सीरीज में बेरोजगारी और ग्रामीण युवाओं का नौकरी के लिए शहर की तरफ पलायन के मुद्दे को भी बखूबी चित्रित किया गया है। इस सीरीज ने इस मिथक को भी तोड़ने की कोशिश की है कि खेती एक घाटे का काम है। सीरीज में दिखाया गया है कि कैसे सही तकनीक का उपयोग कर खेती को फायदे का कारोबार बनाया जा सकता है।
इस सीरीज की पृष्ठभूमि में ग्रामीण परिवेश का चित्रण इस प्रकार से किया गया है, जो शहरी चकाचौंध और तेज रफ्तार भागती जिंदगी को गांव के शांत, धीमे और सुकून भरे वातावरण में लौटने को प्रेरित कर सके। साथ ही असहमतियों के बावजूद सुख-दुख में लोगों का एक-दूसरे के साथ खड़ा रहना ग्रामीण समाज में अभी भी व्याप्त अटूट सामाजिक बंधन को दर्शाता है।
इश्वाक सिंह का किरदार “राघव” के रूप में पूरी तरह से विश्वसनीय लगता है, जो उस किरदार में एक शांत और ईमानदार छवि प्रस्तुत करने की सफल कोशिश करते हैं। इस सीरीज में हास्य का तड़का राघव के बचपन के दोस्त माहू और बैजू से आता है, जो नेकदिल लेकिन बेरोजगार युवक हैं और असहमतियों के बावजूद हमेशा राघव के साथ खड़े दिखाई देते हैं। एक सीधी-सादी सरकारी शीर्ष अधिकारी के रूप में कृतिका सिन्हा (श्रुति शर्मा) का संयमित लेकिन प्रभावशाली अभिनय सीरीज में गंभीरता भर देता है।
ओटीटी प्लेटफॉर्म पर क्राइम थ्रिलर की बाढ़ के बीच “मिट्टी: एक नयी पहचान” ताजी हवा का झोंका की तरह है जो मिट्टी की सोंधी खुशबू बिखेरता है। यह कोई चमक-दमक या तमाशा पेश नहीं करती, बल्कि तेज रफ्तार जीवन को एक ठहराव देती है। यह उन किसानों की निराशा, हताशा और संघर्षों को समझने का अवसर देती है जो मुख्यधारा के सिनेमा के साथ ही शहरी लोगों की चेतना से दूर होते जा रहे हैं। खेती से लगातार दूर होते युवाओं को यह पेशेवर कृषक बनने की प्रेरणा देने के साथ ही खेती को एक गरिमामय रोजगार की तरह प्रस्तुत करती है।