दो साल पहले अस्तित्व में आए केंद्रीय सहकारिता मंत्रालय द्वारा किए जा रहे खर्च पर सवाल उठने लगे हैं। चालू वित्त वर्ष में केंद्रीय सहकारिता मंत्रालय ने 31 जनवरी 2023 तक केवल केवल 136.34 करोड़ रुपए खर्च किया था, लेकिन 24 दिन बाद यह खर्च बढ़ कर यानी 24 फरवरी 2023 तक मंत्रालय का व्यय बढ़कर 513.50 करोड़ रुपए पहुंच गया।
संसद में रखी गई कृषि, पशुपालन एवं खाद्य प्रसंस्करण पर गठित संसदीय समिति की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है।
अपनी रिपोर्ट में समिति ने कहा है कि वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान सहकारिता मंत्रालय को 900 करोड़ रुपए का बजटीय अनुमान आवंटित किया गया था। बाद में संशोधित अनुमान के वक्त बजटीय सहायता को बढ़ाकर 1624.74 करोड़ रुपए कर दिया गया था। इसके बाद फिर से अनुपूरक अनुदान मांगों के अनुसार इस बजट को बढ़ाकर 2056.13 करोड़ रुपए कर दिया गया।
इससे उलट, केंद्रीय सहकारिता मंत्रालय बजट को खर्च करने के मामले में कुछ खास नहीं कर पाया। रिपोर्ट के मुताबिक 31 जनवरी 2023 तक मंत्रालय केवल 136.34 करोड़ रुपए ही खर्च कर पाया, जो कुल बजट का लगभग 6.7 प्रतिशत था।
रिपोर्ट के अनुसार मंत्रालय ने समिति को बताया कि जनवरी 2023 तक खर्च करने की प्रगति कम थी, क्योंकि 2022-23 में ही सहकारिता मंत्रालय को अलग बजट आवंटित किया गया था। मंत्रालय की सभी योजनाएं और कार्यक्रम चालू वर्ष 2022-23 के दौरान ही तैयार की जा रही थी।
लेकिन संसदीय समिति की इस रिपोर्ट में आगे जो जानकारी दी गई है, वह चौंकाने वाली है। रिपोर्ट के मुताबिक मंत्रालय ने आगे बताया है कि 24 फरवरी 2023 को उसका कुल खर्च 513.50 करोड़ रुपए पहुंच गया। जो कि अनुमानित बजट (900 करोड़ रुपए) का 57 प्रतिशत है।
खर्च को लेकर समिति ने जब मंत्रालय से पूछताछ तो की तो मंत्रालय ने विश्वास दिलाया कि कुछ जरूरी मंजूरी मिलने के बाद अनुदान से मिलने वाली राशि को खर्च करेगा। हालांकि मंत्रालय ने एक माह के दौरान लगभग 377 करोड़ रुपए खर्च करने के बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया।
संसदीय समिति ने मंत्रालय को सलाह दी कि वह 2022-23 की सभी योजनाओं और कार्यक्रमों पर होने वाले खर्च को सभी जरूरी औपचारिकताएं समय पर पूरी करे।
यहां यह उल्लेखनीय है कि पहले सहकारिता विभाग, केंद्रीय कृषि, कृषक कल्याण एवं सहकारिता मंत्रालय के अधीन था। लेकिन देश में सहकारिता के क्षेत्र में संभावनाओं को देखते हुए केंद्र सरकार ने अलग सहकारिता मंत्रालय का गठन किया।
इसका फैसला 6 जुलाई 2021 को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में लिया गया। इसका मकसद देश में सहकारिता आंदोलन को और अधिक मजबूती करना है और इसके लिए अलग प्रशासनिक, कानूनी और पॉलिसी फ्रेमवर्क तैयार करना है।
आरटीआई के दायरे में आएं सहकारी समितियां
संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस समय देश में 8.54 लाख सहकारी समितियां पंजीकृत हैं, इनमें प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों (पेक्स) की संख्या 95 हजार है। लेकिन इन सहकारी समितियों के कामकाज में पारदर्शिता और स्पष्टता का अभाव है। चाहे, ये समितियां केंद्र के अधीन हों या राज्य सरकारों, केंद्र शासित क्षेत्रों के अधीन हों।
इसलिए समिति ने सिफारिश की है कि केंद्रीय मंत्रालय सभी सहकारी समितियों को सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत लाने पर विचार किया जाए। समिति के इस प्रस्ताव पर मंत्रालय के अधिकारियों ने राज्य सरकारों से बात करने की बात कही है, साथ ही केंद्र सरकार के अधीन चल रही मल्टी स्टेट कॉ-परेटिव सोसायटीज को भी आरटीआई के अधीन लाने पर विचार करने का आश्वासन दिया है।
सौ साल पुराना इतिहास
भारत में सहकारिता का इतिहास 100 साल से भी अधिक पुराना है। सबसे पहले 1904 में सहकारिता की औपचारिक पहल शुरू हुई। पहली कॉपरेटिव क्रेडिट सोसायटीज एक्ट 1904 में बना, लेकिन यह केवल ऋण सहकारी समितियों तक ही सीमित था। लेकिन आजादी के बाद सहकारी क्षेत्र ने काफी विस्तार किया और देश की अर्थव्यवस्था में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण होती चली गई। 1950-51 में जहां 1.81 लाख सहकारी संस्थाएं थी, आज उनकी संख्या बढ़ कर 8.54 लाख हो चुकी है।