टिड्डी दल इस वक्त भारत के उत्तर-पश्चिमी और मध्य भारत के कई इलाकों में हरियाली को तबाह कर रहे हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि टिड्डी दल को आगे बढ़ने में हवा का बहाव काफी मदद करता है।
मैरीलैंड यूनिवर्सिटी, अमेरिका के जलवायु वैज्ञानिक रघु मुर्तुगुड्डे ने डाउन टू अर्थ को बताया कि भारत के पश्चिमी तट के उत्तरी छोर से आने वाली पश्चिमी हवाएं दो भागों में बंटते हुए इसकी एक शाखा मध्य और उत्तर पूर्वी भारत में और दूसरी शाखा देश के दक्षिणी हिस्से की ओर जाती है। हवा के इस विभाजन की वजह आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु से लेकर गुजरात के बीच बने तुलनात्मक रूप से हवा के उच्च दबाव के वजह से होता है।
यही हवाएं टिड्डी के झुंड को राजस्थान के पूर्वी क्षेत्र में स्थित उत्तरप्रदेश-बिहार की तरफ ले जाने के बजाए, मध्यप्रदेश की तरफ मोड़ रहा है जो कि राजस्थान के दक्षिण-पूर्व में स्थित है।
सतही दबाव की रेखा दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम की तरफ जुड़ने की कोशिश करती है जिससे पश्चिमी तट के उत्तरी छोर से आने वाली हवाएं इस दबाव की रेखा के पीछे बहने लगती है। मुर्तुगुड्डे इसकी वजह बताते हैं कि मॉनसून की तैयारी में होने की वजह से धरती और समुद्र के तापमान में बड़े स्तर का अंतर होता है। हालांकि, भारत के ऊपर स्थानिक हवाओं के प्रवृत्ति का सटीक अंजाद लगाना काफी मुश्किल होता है, इसकी बड़ी वजह डेटा की कमी है।
उदाहरण के लिए, मध्यप्रदेश के प्रभावित 16 जिलों में से 12 जिलों में स्थित मौसम विभाग का स्वचलित मौसम केंद्र हवा, तापमान और दूसरे मौसम संबंधी जानकारी को लेकर कोई डेटा नहीं दिखा रहा है। हवा के स्वरूप का पता न चलने की वजह से ये समझना मुश्किल होता है कि टिड्डी टल आगे किस तरफ जाता है।
हवा के अलावा भी दो और कारण हो सकते हैं जिसकी वजह से टिड्डी दल का हमला उन इलाकों में भी होता है जहां पहले ऐसा नहीं हुआ है। पहला कारण है ईरान, पाकिस्तान और पश्चिमी सीमा के पास अनुकूल स्थिति का मिलना जिससे टिड्डी दल देश में जल्दी प्रवेश कर गए। पहला टिड्डी दल भारत-पाकिस्तान की सीमा से लगे राजस्थान में 11 अप्रैल, 2020 को देखा गया। दूसरी वजह है प्रभावित इलाकों में अति वर्षा जिसके कारण टिड्डी को जीवित रहने और संख्या बढ़ाने में मदद मिली।
"इससे पहले टिड्डी दल की संख्या इस कदर बढ़ी हुई नहीं थी। इस वजह से हर परिस्थिति उनके लिए अनुकूल हो जाती है। इसलिए जितने अंडे टिड्डियों ने जमीन में दिए थे, सब टिड्डी बन गए," केरल वन शोध संस्थान के शोधकर्ता धनेश भास्कर ने कहा।
धनेश भास्कर अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ के ग्रासहॉपर विशेषज्ञ समूह में भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं और भारत के टिड्डो पर नजर रखने वाली संस्था रेड लिस्ट असेसमेंट ऑफ इंडियाज ग्रासहॉपर के समन्वयक भी हैं।
वे आगे कहते हैं, "गर्मी में हुई बारिश के फुहारों ने टिड्डों का काम आसान कर दिया और उन्होंने एक बड़े समूह का रूप ले लिया। संख्या बढ़ने की वजह से टिड्डे नए इलाकों की खोज करने को मजबूर है।"
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक राजस्थान को प्रभावित करने के बाद, महाराष्ट्र में डिट्टों का आगमन 26 मई को हुआ और इसके बाद उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश में भी इसका हमला हुआ।
महाराष्ट्र 46 साल में पहली बार टिड्डी दल का हमला झेल रहा है। मध्यप्रदेश के 16 जिलों में टिड्डी दल के हमले की घटनाएं देखी गई। दिल्ली के लिए भी एक अलर्ट जारी किया गया लेकिन हवा के बहाव में बदलाव की वजह से यह शहर भी अनुकूल नहीं है। इसके बावजूद भी दिल्ली में सतर्कता बरती जा रही है और उत्तरप्रदेश के दो शहर आगरा और मथुरा भी मामले पर नजर रख रहे हैं।
प्रशासन कड़े से कड़ा तरीका अपनाकर राजस्थान, विशेषकर जयपुर के आसपास वाले इलाके में टिड्डी दल से जूझ रहे हैं। यहां पिछले कई दिनों से टिड्डी दल ने डेरा जमाया है और संभवतः ये पश्मिच की तरफ से हवा के बहाव के साथ आए हैं।
जमीनी स्तर पर मौजूद अधिकारियों के मुताबिक एक टिड्डों का झुंड जयपुर के पश्चिम-उत्तर में स्थित अलुडा में जमा हुआ है। इस वजह से आगरा और मथुरा पर भी खतरा बना हुआ है। डिट्टी दल रात में पेड़ और झाड़ियों पर विश्राम करते हुए एक दिन में 150 से 200 किलोमीटर उड़ सकती है ।