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राजस्थान: कृषि कल्याण शुल्क से किसे होगा फायदा?

Madhav Sharma

5 मई को राजस्थान सरकार ने कृषि उपज मंडी (संशोधन) अध्यादेश 2020 द्वारा राजस्थान कृषि उपज मंडी अधिनियम 1961 में संशोधन करते हुए, इसके खंड 38 की धारा 17 में 71-क की नई धारा जोड़ी है। इसके तहत प्रदेश की मंडियों में खरीदी या बेची जाने वाली कृषि उपज पर कृषक कल्याण फीस ली जाएगी और संग्रहित फीस अधिनियम की धारा-19 के के तहत गठित कृषक कल्याण कोष में जमा होगी।

राज्य सरकार ने कृषि जिंसों पर पहले से ही 1.60 रुपए प्रति बोरी मंडी सेस लगाया हुआ है जो इस फैसले के बाद बढ़कर 3.60 रुपए प्रति बोरी हो गया है। सीधे तौर पर समझें तो 100 रुपए का कोई कृषि उत्पाद अब 103.60 रुपए में खरीदा या बेचा जाएगा। ये बढ़ी हुई राशि व्यापारियों को चुकानी है। व्यापारी वर्ग बीते 10 दिनों से इसी का विरोध कर रहा है।

दरअसल, राजस्थान सरकार ने 2019-20 के परिवर्तित बजट में एक हजार करोड़ रुपए के किसान कल्याण कोष की स्थापना की घोषणा की थी। सरकार ने दो हजार करोड़ रुपए बैंक लोन लेकर इस कोष में से 1500 करोड़ रुपए किसानों को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का पैसा इस बार चुकाया है। राजस्थान सरकार लोन की बजाय इस कोष में स्थाई आय का कोई जरिया तलाश रही है। इसलिए यह शुल्क लगाया गया है।

व्यापारी इसका विरोध कर रहे हैं। व्यापारियों ने 6 मई से प्रदेश की सभी 247 कृषि उपज मंडी और मिलों में बंद का आह्वान किया हुआ था, जिसे 13 मई को सरकार से बातचीत के बाद वापस लिया गया है। अब 15 मई से खरीद शुरू हो रही है।

जयपुर व्यापार महासंघ के अध्यक्ष सुभाष गोयल ने डाउन टू अर्थ से कहा, ‘व्यापारी अपनी जेब से लागत नहीं लगाता। इस बढ़ी हुई लागत को किसानों से ही लेगा यानी फसल के दाम कम करेगा और किसानों को नुकसान होगा। दूसरा, जब किसानों को नुकसान होगा तो दूसरे राज्यों की मंडियों में अपनी फसल बेचेंगे। जिससे हमें नुकसान होगा, लेकिन सरकार को फायदा नहीं होगा।’ राजस्थान खाद्य व्यापार संघ के अध्यक्ष बाबूलाल गुप्ता कहते हैं, ‘इस शुल्क से हमारा व्यापार दूसरे राज्यों में शिफ्ट होगा। जब कच्चे माल की आवक में कमी आएगी तो उद्योगों को भी माल नहीं मिल पाएगा और उन्हें भी नुकसान होगा।’

हालांकि किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट कहते हैं, ‘इस शुल्क का असल फायदा थोड़े समय बाद किसानों को ही मिलेगा। पिछली बार किसानों को कई दिन की देरी के बाद प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की राशि मिल पाई थी, क्योंकि राज्य सरकार के पास राज्यांश के तौर पर दी जाने वाली राशि का इंतजाम नहीं था। अब इस शुल्क के बाद एक हजार करोड़ रुपए जमा होने की उम्मीद है, जिससे किसानों को बीमा योजना का पैसा समय पर आवंटित हो पाएगा।’ 

रामपाल के मुताबिक, इस जमा राशि से न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमआईएस, नई मंडियों के निर्माण, अनाज छनाई, ग्रेडिंग मशीन और अन्य उपकरणों की स्थापना में भी किया जा सकेगा। क्योंकि इन सब चीजों के लिए राज्य सरकार ही प्रस्ताव पास करती है। ऐसे में इस कोष का उपयोग समय पर भुगतान के लिए भी किया जा सकेगा। 

वहीं, ग्रामीण किसान मजदूर समिति, गंगानगर के समन्वयक संतवीर सिंह कहते हैं, ‘किसान कल्याण शुल्क का भार अंततः किसानों पर ही आने वाला है। जब किसान अपनी फसल मंडी में लेकर जाएगा तो व्यापारी उसे पहले से कम कीमत पर खरीदेगा। उदाहरण के लिए सरसों का भाव 4 हजार/क्विंटल है। इस शुल्क के बाद व्यापारी को ये 4080/क्विंटल पड़ेगा। ऐसे में मंडियों में व्यापारी वर्ग फसल नीलामी के वक्त ये बात पहले से ही तय रखेगा कि सरसों का भाव 3920 रुपए ही रखना है। चूंकि किसान कई किमी भाड़ा लगाकर मंडी पहुंचा है तो उसे मजबूरी में ये बेचना पड़ेगा। क्योंकि मंडी के बाहर बेचने पर उसे सरसों के इससे भी कम दाम में बिचौलियों को बेचनी पड़ेगी।

राजस्थान कृषि विपणन विभाग के डायरेक्टर ताराचंद मीणा ने डाउन टू अर्थ को बताया कि इस शुल्क का किसानों से कोई संबंध नहीं है। किसानों से फसल खरीदने के बाद व्यापारी इसे जहां बेचेगा, उस बेचने पर ये 2 फीसदी शुल्क है। इससे जमा राशि किसानों के कल्याण के लिए उपयोग होगी। राज्य सरकार ने किसानों के कल्याण के लिए ये शुल्क लगाया है। जो विरोध कर रहे हैं, सरकार उनसे लगातार बातचीत कर रही है। जल्द समाधान निकाल लिया जाएगा।

सरकार के इस फैसले का किसानों पर दोतरफा असर देखने को मिल रहा है। लॉकडाउन के चलते पहले तो फसल खरीद प्रक्रिया एक मई से शुरू हुई, उसके चार दिन बाद ही इस शुल्क के विरोध में मंडियां बंद हो गईं। सरकार उचित मूल्य पर एक परिवार से एक फसल पर 40 क्विंटल अनाज ही खरीदती है। बाकी बचे अनाज को किसान मंडी बंद होने के कारण नहीं बेच पा रहे हैं। इसीलिए फसल घरों में पड़ी है।