बाढ़ के कारण बर्बाद हुआ धान का खेत, तरनतारन, फोटो : विकास चौधरी 
कृषि

पंजाब बाढ़ के बाद : बदल गई मिट्टी की रासायनिक संरचना, रबी में बढ़ सकती है मुश्किलें

पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में मिट्टी की जांच के बाद पाया कि कुछ खेतों में एक मीटर से अधिक मोटी परत जमा हो गई, जबकि अन्य स्थानों पर पतली परतें हैं। मिट्टी का बनावट रेतीली से लेकर महीन दोमट तक थी और अधिकांश स्थानों की मिट्टी क्षारीय पाई गई

Vivek Mishra

पंजाब की हालिया बाढ़ ने खेती-किसानी के लिए जमीन पर सबकुछ बदल कर रख दिया है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) ने बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों की मिट्टी के नमूनों की जांच के विश्लेषण में पाया है कि हिमालय की तलहटी से आई लाल गाद (सिल्ट) ने जहां कुछ इलाकों में खनिज तत्वों की मात्रा बढ़ाई है, वहीं इसने मिट्टी के पोषण संतुलन को बिगाड़कर कठोर परतें (हार्डपैन) बना दी हैं, जिससे आने वाली रबी फसलों की उत्पादकता पर खतरा मंडरा रहा है।

पीएयू के कुलपति डॉ. सतबीर सिंह गोसल ने कहा कि बाढ़ ने पंजाब की कृषि की “नींव”, यानी मिट्टी की संरचना, को ही बदल दिया है। उनके अनुसार, पहाड़ों से आई मिट्टी में भले ही कुछ उपयोगी खनिज हों लेकिन इससे राज्य की मौलिक मिट्टी का संतुलन बिगड़ गया है।

उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय ने प्रभावित जिलों में मिट्टी के नमूने एकत्र करने और किसानों को सुधारात्मक उपायों के बारे में मार्गदर्शन देने के लिए विशेष टीमें भेजी हैं ताकि रबी बुवाई से पहले स्थिति को सामान्य किया जा सके।

पीएयू के मृदा विज्ञान विभाग के डॉ. राजीव सिक्का ने अमृतसर, गुरदासपुर, फिरोजपुर, कपूरथला और पटियाला जिलों के गांवों में मिट्टी के परीक्षण किए। जांच नतीजों में पाया गया कि विभिन्न स्थानों पर तलछट (सिल्ट) की गहराई, बनावट और संरचना में भारी भिन्नता थी। कुछ खेतों में एक मीटर से अधिक मोटी परत जमा हो गई थी, जबकि अन्य स्थानों पर पतली परतें थीं। मिट्टी का बनावट रेतीली से लेकर महीन दोमट तक थी और अधिकांश स्थानों की मिट्टी क्षारीय पाई गई। विद्युत चालकता सामान्य रूप से कम थी, जिससे लवणीयता का कोई बड़ा खतरा नहीं दिखा।

डॉ. सिक्का के अनुसार, मिट्टी में जैविक कार्बन की मात्रा उत्साहजनक रूप से बढ़ी हुई थी। औसतन 0.75 प्रतिशत से अधिक, जबकि पंजाब का सामान्य स्तर 0.5 प्रतिशत है। कुछ नमूनों में यह एक प्रतिशत से भी अधिक पाई गई। हालांकि, जिन इलाकों में रेतीली परत अधिक थी, वहाँ कार्बन की मात्रा कम दर्ज की गई। फॉस्फोरस और पोटाश का स्तर स्थानानुसार भिन्न था, जबकि ऑयरन और मैंगनीज जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व सामान्य से काफी अधिक पाए गए। बाढ़ के पानी के साथ आए आयरनन की परत वाले रेतीले कण इस वृद्धि का कारण माने जा रहे हैं।

अनुसंधान निदेशक डॉ. अजर सिंह धत्त ने बताया कि कई स्थानों पर मिट्टी की सतही और गहरी परतों में कठोरपन विकसित हो गया है, जिससे पानी का रिसाव और पौधों की जड़ें बढ़ने में बाधा आ सकती हैं। उन्होंने भारी मिट्टी वाले क्षेत्रों में “गहरी जुताई” करने की सलाह दी, जबकि हल्की मिट्टी वाले क्षेत्रों में सिल्ट और चिकनी मिट्टी को अच्छी तरह मिलाने को कहा ताकि परतें न बनें।

एग्रीकल्चर एक्सटेंशन शिक्षा निदेशक डॉ. मखन सिंह भुल्लर ने किसानों से अपील की है कि वे मिट्टी में जैविक पदार्थ जैसे गोबर खाद, मुर्गी खाद और हरी खाद मिलाएं। इससे मिट्टी की संरचना सुधरेगी, सूक्ष्म जीवों की गतिविधि बढ़ेगी और पौधों की जड़ों को बेहतर विकास मिलेगा। उन्होंने धान की पराली जलाने से बचने और उसे मिट्टी में मिलाने पर भी ज़ोर दिया ताकि उर्वरता बढ़े।

रबी सीजन के लिए सलाह

विश्वविद्यालय ने किसानों को अनुशंसित खाद मात्रा का पालन करने की सलाह दी है। गेहूं और अन्य फसलों में बुवाई के 40–50 दिन बाद प्रति एकड़ 2 प्रतिशत यूरिया का छिड़काव (4 किलो यूरिया को 200 लीटर पानी में घोलकर) करने की सिफारिश की गई है। गेहूं और बरसीम में यदि मैंगनीज की कमी के लक्षण दिखें, तो 0.5 प्रतिशत मैंगनीज सल्फेट का फोलियर स्प्रे (100 लीटर पानी में 0.5 किलो प्रति एकड़) करने और एक सप्ताह बाद दोहराने की सलाह दी गई है।वहीं, डॉ. गोसल ने कहा कि बाढ़ ने वर्तमान और आगामी फसली चक्रों को जरूर प्रभावित किया है लेकिन यदि समय रहते मिट्टी का सही प्रबंधन किया जाए तो यही संकट एक अवसर में बदल सकता है।
उन्होंने कहा कि समन्वित परीक्षण, पोषक तत्व प्रबंधन और सामुदायिक जागरूकता के जरिए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय किसानों की मदद से राज्य की मिट्टी की उर्वरता और लचीलापन फिर से स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध है।