कृषि

पिपरमेंट की खेती करने वाले किसानों पर समय से पहले हुई बारिश की मार

Gaurav Gulmohar

उत्तर प्रदेश के रायबरेली के ऊंचाहार की किसान रमा देवी बीस साल से मेंथा की खेती कर रही हैं, लेकिन इस साल जिस तरह फसल बर्बाद हुई है उससे वो हताश नज़र आ रही हैं। रमा देवी ने लगभग 25 हजार की लागत से दो बीघा मेंथा लगाया था लेकिन अब वह भी डूबता नज़र आ रहा है।

"पहले एक बीघा में तीन टंकी मेंथा का पौधा निकलता था, लगभग 15 से 20 किलो मेंथा ऑयल निकल जाता था लेकिन इस बार बारिश के कारण एक बीघे में 10 किलो मेंथा ऑयल निकलना मुश्किल हो गया है। इस खेती में हांड़ तोड़ मेहनत है, सुबह से एक टँकी चढ़ी है शाम चार बजे तक निकलेगा। इस तपती गर्मी में आग के सामने आठ-आठ घण्टे रहना पड़ता है।" रमा देवी ने डाउन टू अर्थ को बताया।

 भारत में नकदी फसल मानी जा रही पिपरमेंट (मेंथा) की खेती इस साल घाटे की खेती बन गई है। इसे जापानी पुदीना के नाम से भी जाना जाता है। यूपी के बाराबंकी, रायबरेली, चंदौली, सीतापुर जैसे कई जिलों में बड़ी मात्रा में किसान मेंथा की खेती करते हैं लेकिन इस साल समय से एक महीने पहले शुरू हुई बारिश ने किसानों के अरमानों पर पानी फेर दिया। मई महीने से लगातार हो रही बारिश और खेतों में अधिक जलभराव से भारी मात्रा में मेंथा की खेती बर्बाद हो चुकी है।

किसान रबी और खरीब के बीच में जायद खेती में मेंथा उगाते हैं। मेंथा की खेती लघु समय लगभग 90 दिनों की होती है। यह खेती अधिक लागत, तकनीक और मेहनत वाली मानी जाती है। मेंथा तेल का इस्तेमाल दवाएं, सौंदर्य उत्पाद, साबुन, टूथपेस्ट के साथ ही अन्य कई उत्पादों में होता है।

इंटरनेशनल आर्काइव ऑफ एप्लाइड साइंस एंड टेक्नोलॉजी में जे. वी. कॉलेज बरौट, बागपत के कृषि विभाग द्वारा सितम्बर-2019 में प्रकाशित शोध के अनुसार, भारत में कुल 250 हजार हेक्टेयर में मेंथा की खेती होती है और कुल उत्पादन लगभग 520 हजार मीट्रिक टन होता है। यानी प्रति हेक्टेयर उत्पादन दर 2.02 मीट्रिक टन है। भारत प्रति वर्ष लगभग 35000 से 40000 टन मेंथा ऑयल का उत्पादन करता है।

इसी शोध के अनुसार भारत में कुल मेंथा का लगभग 90 फीसदी उत्पादन उत्तर प्रदेश करता है। भारत मेंथा ऑयल के कुल उत्पादन का लगभग 40 फीसदी उपभोग करता है और बाकी 60 से 62 फीसदी निर्यात करता है। वहीं दुनिया में चाइना 9 से 11 फीसदी और अन्य देश लगभग 7 फीसदी मेंथा ऑयल का उत्पादन करते हैं।

मेंथा की खेती करने वाले किसानों का कहना है कि इस साल जिस तरह बारिश से खेती बर्बाद हुई, इसी तरह लगभग दस साल पहले बर्बाद हुई थी। रायबरेली के दूसरे किसान उमरी निवासी बृजेश कुमार यादव ने 15 हजार की लागत से डेढ़ बीघा मेंथा लगाया था बारिश से इनकी फसल भी प्रभावित हुई है। वे बताते हैं कि "तीन महीने की फसल है। शुरू से ही देखभाल करना, तरह-तरह की दवाओं का छिड़काव करना और लगाने के बाद आठवें दिन पानी देना पड़ता है। बहुत खर्चीली खेती है लेकिन इस बार समय से पहले हुई बारिश से गांव के कई किसानों की फसल खेत में ही सड़ गई।"

बृजेश आगे कहते हैं कि "हम एक किलो मेंथा ऑयल सलोन में सेठ की दुकान पर 900 रुपये में बेचते हैं। सेठ उसी तेल को 1200 रुपये प्रति किलो की दर से बेचता है। यदि मेंथा ऑयल की सरकारी मंडी हो तो बिचौलिया प्रति किलो जो 300 रुपये का लाभ कमा रहा है वह सीधा किसानों को ही प्राप्त हो। सरकार को सभी फसलों की तरह ही मेंथा ऑयल का भी रेट तय करना चाहिए।"

मेंथा की खेती करने वाले ज्यादातर किसानों को फसल बीमा की जानकारी नहीं है और किसानों ने बताया कि अभी तक सरकार की ओर से बारिश से बर्बाद मेंथा की खेती का कोई सर्वे नहीं कराया गया है।