देवास जिला प्रशासन ने किसानों के भारी विरोध के बाद एक ही दिन में अपने उस आदेश को वापस ले लिया है जिसमें कहा गया था कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों से खरीदी गई उपज अब उन्हें वापस की जाएगी। उपायुक्त कार्यालय सहकारिता द्वारा 22 जुलाई को जारी आदेश में कहा गया था कि कुल 1,031 किसानों को 7,674 मीट्रिक टन गेहूं की उपज लौटाई जाएगी।
जिले के सभी गेहूं उपार्जन केंद्रों के प्रभारियों को भेजे गए आदेश में कहा गया था कि जिले में कुल 4,11,970 मीट्रिक टन गेहूं का उपार्जन किया है। इसमें से 4,04,296 मीट्रिक टन गेहूं उपार्जन की प्रविष्टि ई उपार्जन पोर्टल पर हुई है। लेकिन साइलो से संलग्न 8 उपार्जन केंद्रों में 56 किसानों से उपार्जित 403 मीट्रिक टन और अन्य 48 उपार्जन केंद्रों में 975 किसानों से उपार्जित 7,271 मीट्रिक टन गेहूं की प्रविष्टि ई उपार्जन पोर्टल बंद होने के कारण नहीं हो सकी। इससे कुल 1031 किसानों का बकाया लंबित है। इन किसानों को बकाया लौटाने के बजाय उनसे खरीदा गया गेहूं लौटाने का दिया गया था। आदेश में कहा गया है कि 31 जुलाई से पहले किसानों को गेहूं वापस कर दिया जाए। ऐसा न करने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की चेतावनी दी गई थी।
यह आदेश बहुत से लोगों को खटक रहा था। किसान नेता योगेंद्र यादव ने इस पर प्रतिक्रया देते हुए ट्विटर पर लिखा, “ऐसा कभी सुना है? मध्य प्रदेश सरकार किसानों से गेहूं खरीदती है लेकिन ई उपार्जन पोर्टल डाउन रहने पर सूचना अपलोड करने में विफल रहती है। सरकार अपनी असफलता के लिए गेहूं लौटाकर किसानों को दंडित कर रही है।”
देवास में भारतीय किसान संघ के सतवास तहसील के सह मीडिया प्रभारी शुभम पटेल ने डाउन टू अर्थ को बताया कि यह बेतुका आदेश किसानों को परेशान करने वाला था। किसान अपनी उपज के मूल्य के इंतजार में हैं। सरकार अगर उपज का मूल्य देने के बजाय उन्हें अनाज लौटा देती तो उनके सामने परेशानी खड़ी हो जाती। वह बताते हैं कि किसानों ने बड़ी जद्दोजहद के बाद लॉकडाउन के समय मई-जून में अपनी उपज बेची है। उपज विक्रय केंद्र तक पहुंचाने में परिवहन लागत आती है। अगर सरकार के आदेश को अमल में लाया जाता तो किसानों एक बार फिर परिवहन लागत लगानी पड़ती। इससे उन्हें भारी नुकसान होता।
शुभम पटेल के मुताबिक, सरकार के इस आदेश के बाद किसान संगठन लामबंद हो गए और जिला प्रशासन को इसे वापस लेने का ज्ञापन सौंपा। किसानों ने चेतावनी दी कि अगर आदेश वापस नहीं लिया गया तो बड़े स्तर पर आंदोलन शुरू किया जाएगा और इसमें सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंच सकता है। शबनम बताते हैं कि किसानों के भारी विरोध को देखते हुए सरकार ने 22 जुलाई की शाम को अपना आदेश वापस ले लिया।