कृषि

आप्रेशन ग्रीन्स: किसानों का हमदर्द, पास या फेल?

ऑपरेशन ग्रीन्स का उद्देश्य किसानों को अपनी उपज का उचित मूल्य दिलाना और उपभोक्ताओं को उचित कीमत पर खाद्य वस्तुओं को उपलब्ध कराना है

Shagun

यह महाराष्ट्र के चिराई गांव के एक किसान की कहानी है। 24 दिसंबर को उन्होंने राज्य के मत्स्य पालन मंत्री नितेश राणे के गले में प्याज की माला डाल दी।  उन्होंने ऐसा प्याज की कीमतों में भारी गिरावट का विरोध करने के लिए किया।

दिसंबर की शुरुआत से प्याज की कीमतें लगभग 50% तक गिर गई हैं, और कई किसान अपनी उत्पादन लागत भी वसूल नहीं कर पा रहे हैं। पिछले दो हफ्तों में मंडियों में प्याज की कीमत 65% तक गिर चुका है।  

दिसंबर की शुरुआत में जहां प्याज 3,500 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर बिक रहा था, अब औसतन भाव केवल 1,200 रुपये प्रति क्विंटल (12 रुपये प्रति किलोग्राम) पर आ गया है। कुछ किसानों ने अपनी फसल 800 रुपये प्रति क्विंटल पर भी बेची है, जबकि प्याज की खेती पर आने वाली लागत औसतन 2,200-2,500 रुपये प्रति क्विंटल है।  

यह अचानक गिरावट तब हुई जब प्याज की नई फसल मंडियों में पहुंची, जिससे इसकी आपूर्ति बढ़ गई। यह संकट और गंभीर इसलिए है क्योंकि सरकार की प्रमुख योजना 'ऑपरेशन ग्रीन्स' के बावजूद किसानों को राहत नहीं मिल पा रही है।

ऑपरेशन ग्रीन्स का उद्देश्य किसानों को अपनी उपज का उचित मूल्य दिलाना और उपभोक्ताओं को उचित कीमत पर खाद्य वस्तुओं को उपलब्ध कराना है, लेकिन खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय ने 2024-25 के लिए आवंटित बजट का केवल 34% ही खर्च किया है।

दरअसल, ऑपरेशन ग्रीन्स की शुरुआत 2018 में की गई थी। इसका उद्देश्य किसानों को उनकी फसलों का उचित मूल्य दिलाने के लिए भंडारण सुविधाएं तैयार करना था, जिससे किसान अपनी उपज तब तक स्टोर करके रख सकें, जब तक उन्हें बेहतर कीमत न मिल जाए। इस योजना me कोल्ड स्टोरेज, पैकेजिंग, सॉर्टिंग, ग्रेडिंग और प्रोसेसिंग इंडस्ट्रीज का निर्माण करना शामिल था। साल 2021-22 में इस योजना का विस्तार किया गया और ऐसी 22 फसलों को स्कीम में शामिल किया गया, जो स्टोरेज न होने के कारण खराब हो जाती है। 

वर्तमान स्थिति 

इस योजना का अब तक का प्रदर्शन असंतोषजनक रहा है। 17 दिसंबर को पेश की गई कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण पर संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट के अनुसार, अक्टूबर तक केवल 60 करोड़ रुपये ही खर्च किए गए थे।  इसके अलावा, इस वित्त वर्ष में पूरे होने वाले 10 ऑपरेशनल प्रोजेक्ट्स में से केवल तीन पूरे हो सके।  

महाराष्ट्र में यह समस्या और स्पष्ट रूप से दिख रही है, जहां कीमतों में गिरावट की वजह से प्याज किसान खासे परेशान हैं। प्याज पर 20% निर्यात शुल्क लगाने के फैसले की वजह से किसानों की परेशानी और बढ़ गई है, क्योंकि इससे उनका मुनाफा और कम हो गया है। 

मई 2024 में यह निर्यात शुल्क प्याज की घरेलू कमी को नियंत्रित करने के लिए लगाया गया था, लेकिन अब जब मंडियों में प्याज का सरप्लस है, किसान इस शुल्क को हटाने की मांग कर रहे हैं ताकि निर्यात बढ़ सके और उनके मुनाफे में सुधार हो।