वर्ष 2019-2021 की अवधि में रेगिस्तानी टिड्डियों के सबसे तेज हमले देखे गए थे। टिड्डियों का यह आक्रमण केन्या से लेकर भारत तक फैल गया था। इससे फसलों और सामान्य वनस्पतियों को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा था। अब टि्ड्डियों के इस आक्रमण से बचने के लिए वैज्ञानिकों ने एक मॉडल तैयार किया है। यह मॉडल कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) और यूके के मौसम कार्यालय के वैज्ञानिकों ने सामुहिक रूप से बनाया है। प्रवासी टिड्डियों की आबादी के व्यवहार की भविष्यवाणी करने के लिए एक एकीकृत मॉडलिंग का ढांचा विकसित किया है।
मॉडल में मौसम और पर्यावरणीय आंकड़ों के संयोजन के साथ-साथ वायुमंडलीय परिवहन मॉडल का उपयोग करके यह उपकरण झुंड की गतिविधियों और रेगिस्तानी टिड्डियों के तेजी के बढ़ने का पूर्वानुमान आसानी से लगा सकता है।
ध्यान रहे कि टिड्डियों का आक्रमण नाटकीय और अचानक होता है और उनके बढ़ने के दौरान वे विशाल झुंड बनाते हैं और लंबी दूरी तय करने क्षमता होती है। साथ ही अपने रास्ते में आने वाली हर वनस्पति को नष्ट करने की भी क्षमता उनमें होती है। वैज्ञानिकों द्वारा इस उपकरण के निर्माण के पीछे का मुख्य उद्देश्य था सरकारी एजेंसियों, कृषि शोधकर्ताओं और किसानों को टिड्डियों के भविष्य में आक्रमण के पूर्व तैयार होने की सूचना देना है।
इस ढांचे को एकीकृत करके विकसित किया गया है। जिसमें टिड्डियों के प्रजनन स्थलों का चयन, अंडे की परिपक्वता, भोजन और प्रजनन के लिए उपयुक्त क्षेत्रों की तलाश में भोजन और झुंड का फैलाव, झुंड के प्रवास के दैनिक मार्गों की भविष्यवाणी करने के लिए हवा के प्रक्षेपवक्र के लिए मौसम-संचालित मॉडल का समावेश, भोजन के लिए वनस्पति की स्थिति और उपलब्धता को देखते हुए एक ही स्थान पर झुंड के भोजन की अवधि की भविष्यवाणी करने के लिए रिमोट-सेंस्ड डेटा का उपयोग करना, उड़ान में देखे गए झुंडों के लिए उड़ान की दिशा, संभावित उत्पत्ति और लैंडिंग स्थलों का आकलन करना, 83 प्रतिशत की सटीकता के साथ नया उपकरण प्रजनन क्षेत्रों की भविष्यवाणी करने में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है जो जमीनी निगरानी के दौरान छूट सकते हैं।
मॉडल विकसित करने के लिए अध्ययन का क्षेत्र पांच उप-सहारा देशों (केन्या, इथियोपिया, सोमालिया, इरिट्रिया और जिबूती) तक था। ध्यान रहे कि यह देश 2019 में टिड्डियों के आक्रमण से प्रभावित थे। इन क्षेत्रों में दर्ज झुंड की आवाजाही के पैटर्न के खिलाफ भी इसका परीक्षण किया गया है।
पीएलओएस कम्प्यूटेशनल बायोलॉजी पत्रिका में दिसंबर, 2024 में प्रकाशित शोधपत्र के शोधकर्ताओं के अनुसार, “मॉडल रेगिस्तानी टिड्डों के भोजन व्यवहार को भी ध्यान में रखता है, जहां झुंड एक लैंडिंग साइट पर जितना समय बिताते हैं वह साइट पर भोजन की उपलब्धता से निर्धारित होता है। हमारा उद्देश्य उपलब्ध डेटा और रेगिस्तानी टिड्डे के जीव विज्ञान की वर्तमान समझ के आधार पर एक सुसंगत और व्यापक रूपरेखा प्रदान करना था।”
वैज्ञानिकों ने कहा कि रेगिस्तानी टिड्डों पर पिछले मॉडलिंग में किए गए अध्ययनों में हॉपर बैंड से उत्पन्न होने वाले रेगिस्तानी टिड्डों के झुंडों के प्रवासी व्यवहार को शामिल नहीं किया गया था। नए उपकरण ने इसे संबोधित किया है और न केवल झुंडों के भोजन और आवाजाही को एकीकृत किया है, बल्कि रेगिस्तानी टिड्डों के पूरे जीवन चक्र को पर्यावरणीय परिस्थितियों के साथ एकीकृत किया है। फ्रेमवर्क विकसित करने के लिए, वैज्ञानिकों ने 100 मीटर रिजाल्यूशन पर भूमि कवर के कोपरनिकस वैश्विक मानचित्र से भूमि कवर वर्गीकरण के लिए भूमि कवर डेटा निकाला। भूमि कवर मानचित्र पृथ्वी की सतह के विभिन्न प्रकारों जैसे शहरी क्षेत्रों, विरल वनस्पति, खेती की गई वनस्पति पर स्थानीय जानकारी का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसके बाद उन्होंने प्रजनन क्षेत्रों और तिथि की पहचान करके एक प्रजनन उपयुक्तता मानचित्र तैयार किया।
इसके बाद जांच की कि क्या निर्दिष्ट स्थान पर पर्यावरणीय परिस्थितियां अंडे देने के लिए उपयुक्त हैं। हॉपर उद्भव के लिए अंडे के ऊष्मायन अवधि की गणना करने के बाद वैज्ञानिकों ने परीक्षण किया कि क्या उपलब्ध वनस्पति के संदर्भ में स्थितियां टिड्डे के भोजन के लिए उपयुक्त थीं। अंतिम चरण झुंडों का फैलाव और भोजन था, जिसमें हवा की सहायता से फैलाव पथ का विश्लेषण और यह परीक्षण करना शामिल था कि जमीन पर उपलब्ध वनस्पति लगातार लैंडिंग स्थलों पर झुंड को कितने समय तक बनाए रख सकती है।
भारत को 2020-21 में इतिहास के सबसे खराब टिड्डियों के हमलों में से एक का सामना करना पड़ा था, जब रेगिस्तानी टिड्डे 26 साल के अंतराल के बाद देश में आए और राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कई जिलों पर हमला किया।