खरीफ सीजन की फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा कर दी गई है। फाइल फोटो: अग्निमीर बासु 
कृषि

धान सहित खरीफ फसलों का नया समर्थन मूल्य जारी, किसानों पर क्या होगा असर?

फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी को लेकर एक बार फिर से बहस शुरू हो गई है कि किस फॉर्मूले के तहत नया मूल्य घोषित किया जाए

Raju Sajwan

केंद्र सरकार ने विपणन वर्ष 2025-26 के लिए 14 खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि को मंजूरी दे दी। एक बार फिर सरकार ने दावा किया कि किसानों को उत्पादन की लागत से अधिक लाभ दिलाने के मकसद से यह वृद्धि की है। वहीं, विशेषज्ञों का कहना है कि इससे किसानों को फायदा नहीं बल्कि नुकसान होगा।

कितनी हुई वृद्धि

आइए, सबसे पहले जानते हैं कि 28 मई को आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की बैठक में एमएसपी में कितनी वृद्धि की गई। सबसे अधिक वृद्धि नाइजरसीड (रामतिल) के लिए की गई, जिसमें 820 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी हुई है। हालांकि रामतिल किस कीमत में बाजार बेची जाती है और इसका आदिवासी किसानों को क्या फायदा मिलता है, डाउन टू अर्थ की एक पुरानी रिपोर्ट से समझा जा सकता है। इसके बाद रागी में 596 रुपए, कपास में 589 रुपए और तिल में 579 रुपए की वृद्धि हुई है।

धान (सामान्य किस्म) का एमएसपी 2369 रुपए प्रति क्विंटल तय किया गया है, जो पिछले वर्ष 2300 रुपए था। ज्वार (हाइब्रिड) का एमएसपी 3699 रुपए किया गया है, जो पहला 3371 रुपए था। बाजरा का नया एमएसपी 2775 रुपए प्रति क्विंटल तय किया गया है। रागी का रुपए 4886 रुपए, मक्का का 2400 रुपए, अरहर (तूर) का 8000 रुपए, मूंग का 8768 रुपए और उड़द का 7800 रुपए तय किया गया है। तिलहन फसलों में मूंगफली का MSP 7263 रुपए, सूरजमुखी का 7721 रुपए, सोयाबीन का 5328 रुपए, तिल का 9846 रुपए और नाइजरसीड का 9537 रुपए प्रति क्विंटल किया गया है। कपास (मीडियम स्टेपल) का 7710 रुपए तथा लॉन्ग स्टेपल कपास का 8110 रुपए तय किया गया है।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक डा. वीरेन्द्र सिंह लाठर का कहना है कि खरीफ सीजन की मुख्य फसल धान सहित अधिकांश फसलों के एमएसपी में मात्र 3 फीसदी की वृद्धि की गई है, जो वार्षिक थोक मूल्य सूचकांक से भी कम है, जिससे किसानों को भारी नुकसान होगा, क्योंकि कृषि मूल्य एवं लागत आयोग के अनुसार सी2 (कुल) लागत के आधार पर धान का मूल्य 3135 रुपए प्रति क्विंटल है, जबकि घोषित एमएसपी पर किसानों को 766 रुपए प्रति क्विंटल का घाटा होगा, और अन्य फसलों जैसे ज्वार, बाजरा, मक्का, अरहर, मूंग, उड़द, मूँगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी, तिल, नाइजर और कपास में भी किसानों को क्रमशः 1110, 539, 528, 2259, 2446, 2244, 1807, 1629, 1826, 3681, 2192 और 2366 रुपए प्रति क्विंटल तक का नुकसान होगा।

लाठर के मुताबिक केंद्र सरकार द्वारा पिछले चार दशकों से व्यापक लागत (सी2) के स्थान पर "ए2+एफएल" फार्मूले पर एमएसपी तय करने और एमएसपी की कानूनी गारंटी न देने के कारण भारतीय कृषि लगातार घाटे का सौदा बनती जा रही है, जिससे किसान कर्ज में डूबते हुए आत्महत्या तक करने को मजबूर हो रहे हैं।

क्या हैं फार्मूलें?

सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा कृषि लागत और मूल्य आयोग की सिफारिशों के आधार पर करती है। यह आयोग एमएसपी निर्धारित करने के लिए तीन प्रमुख लागत फार्मूलों का उपयोग करता है।

1. ए2 लागत- यह लागत किसान द्वारा किसी फसल के उत्पादन में किए गए वास्तविक खर्च को दर्शाती है। इसमें बीज, उर्वरक, कीटनाशक, किराए पर ली गई जमीन, मजदूरी, मशीनरी और ईंधन जैसी वस्तुओं पर किया गया खर्च शामिल होता है।

2. ए2+एफएल लागत: इसमें ए2 लागत के साथ-साथ परिवार के सदस्यों द्वारा खेत पर किए गए श्रम (फैमिली लेबर) का मूल्य भी जोड़ा जाता है।

3. सी2 लागत: यह सबसे व्यापक लागत है, जिसमें ए2+एफएल के अलावा, किसान की अपनी जमीन का किराया (कल्पित किराया) और स्थायी पूंजी (जैसे ट्रैक्टर, सिंचाई उपकरण आदि) पर ब्याज भी शामिल होता है।

राष्ट्रीय किसान आयोग जिसे स्वामीनाथन आयोग के नाम से भी जाना जाता है, ने सिफारिश की थी कि एमएसपी को किसान की व्यापक लागत (सी2) से कम से कम 50 प्रतिशत अधिक होना चाहिए।

हालांकि, सरकार का कहना है कि एमएसपी को देशभर की औसत लागत से कम से कम 1.5 गुना रखा गया है, लेकिन यह लागत सरकार ए2+एफएल के आधार पर गणना करती है, ना कि सी2 के आधार पर, जैसा कि स्वामीनाथन आयोग ने सुझाया था।

इसलिए एमएसपी और किसान की वास्तविक लागत के बीच का अंतर अक्सर एक विवाद का विषय बना रहता है।