रेगिस्तानी टिड्डा (शिस्टोसेरका ग्रेगेरिया) खेती के लिए सबसे खतरनाक प्रवासी कीटों में से एक है, जिससे कई क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा के लिए इसका नियंत्रण जरूरी हो गया है।
हालांकि रेगिस्तानी टिड्डे आमतौर पर एकांत में रहते हैं, जब तक कि कोई चीज - जैसे तेज बारिश उन्हें भारी संख्या में झुंड में इकट्ठा होने के लिए प्रेरित करती है, जिसके कारण अक्सर विनाशकारी होते हैं।
यह प्रवासी कीट भारी विनाश के स्तर तक पहुंच सकता है और एक झुंड एक वर्ग किलोमीटर को कवर करते हुए एक दिन में 35,000 लोगों को खिलाने तक के पर्याप्त भोजन को चट कर सकता है। इस तरह फसलों के भारी विनाश से स्थानीय स्तर पर खाद्य कीमतों में वृद्धि होती है और भुखमरी के आसार बढ़ सकते हैं।
अब कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की एक टीम ने यह अनुमान लगाने का तरीका विकसित किया है कि रेगिस्तानी टिड्डे कब और कहां झुंड में आएंगे, ताकि समस्या के हाथ से निकलने से पहले ही उनसे निपटा जा सके।
यह मौसम के पूर्वानुमान से संबंधित आकड़ों और हवा में कीटों की गतिविधियों के अत्याधुनिक कम्प्यूटेशनल मॉडल का उपयोग करता है, ताकि यह अनुमान लगाया जा सके कि झुंड नए भोजन और प्रजनन के मैदानों की तलाश में कहां जाएंगे। ताकि प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में फिर कीटनाशकों का छिड़काव किया जा सकता है।
शोध पत्र में शोधकर्ताओं के हवाले से कहा गया है कि अब तक टिड्डियों के झुंडों का पूर्वानुमान लगाया और उन्हें नियंत्रित करना "सफल और असफल" दोनों रहा है। उनका नया मॉडल राष्ट्रीय एजेंसियों को टिड्डियों के बढ़ते खतरे पर तुरंत प्रतिक्रिया करने में सक्षम बनाएगा।
रेगिस्तानी टिड्डों पर नियंत्रण खाद्य सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी प्राथमिकता है, यह अफ्रीका और एशिया के कई क्षेत्रों में छोटे किसानों के लिए सबसे बड़ा प्रवासी कीट है और राष्ट्रीय सीमाओं के पार लंबी दूरी की यात्रा करने में सक्षम है।
जलवायु परिवर्तन के कारण चक्रवात और तीव्र बारिश जैसी घटनाओं के कारण रेगिस्तानी टिड्डियों के झुंडों के आने के आसार बढ़ जाते हैं। इनसे रेगिस्तानी क्षेत्रों में नमी आती है जिससे पौधे पनपते हैं और टिड्डियों को भोजन मिलता है जिससे उनका प्रजनन शुरू हो जाता है।
पीएलओएस कम्प्यूटेशनल बायोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि रेगिस्तानी टिड्डों के प्रकोप के दौरान अब कई दिन पहले इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि झुंड कहां जाएंगे, ताकि उन्हें विशेष स्थानों पर नियंत्रित कर सकें। यदि उन्हें उन जगहों पर नियंत्रित नहीं किया जाता है, तो इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि वे आगे कहां जाएंगे, ताकि वहां तैयारी की जा सके।
अहम बात यह है कि यदि टिड्डों का बड़ा आक्रमण होने की आशंका है तो इससे पहले कि इससे फसल का बड़ा नुकसान हो, तुरंत प्रतिक्रिया दी जाए। विशाल झुंड वास्तव में निराशाजनक स्थिति पैदा कर सकते हैं, जहां लोग भूख से मर सकते हैं।
शोध पत्र में शोधकर्ताओं के हवाले से कहा गया है यह मॉडल हमें भविष्य में जमीनी स्तर पर काम करने में मदद करेगा, बजाय इसके कि हम शुरू से शुरू करें जैसा कि ऐतिहासिक रूप से होता आया है।
शोध में कहा गया है कि शोध टीम ने 2019 से 2021 में बड़े पैमाने पर उछाल के जवाब में रेगिस्तानी टिड्डे के व्यवहार के एक व्यापक मॉडल की जरूरत को महसूस किया, जो केन्या से भारत तक फैल गया और इन क्षेत्रों में गेहूं के उत्पादन पर भारी दबाव डाला। इसने गन्ना, ज्वार, मक्का और जड़ वाली फसलों को नष्ट कर दिया।
शोध पत्र में शोधकर्ताओं के हवाले से कहा गया कि पिछली बार टिड्डियों के हमले के प्रति प्रतिक्रिया बहुत ही सामान्य थी और जितनी हो सकती थी, उसमें कुशलता की कमी थी। शोधकर्ताओं ने बताया कि उन्होंने एक व्यापक मॉडल बनाया है जिसका उपयोग अगली बार इस विनाशकारी कीट को नियंत्रित करने के लिए किया जा सकता है।
हालांकि इस तरह के मॉडल पहले भी आजमाए जा चुके हैं, लेकिन यह पहला ऐसा मॉडल है जो झुंड के व्यवहार का तेजी से और मजबूती से अनुमान लगा सकता है। यह कीटों के जीवनचक्र और उनके प्रजनन स्थलों के चयन को ध्यान में रखता है और टिड्डियों के झुंड की छोटी और लंबी अवधि दोनों तरह की गतिविधियों का पूर्वानुमान लगा सकता है।
शोध के मुताबिक, नए मॉडल का पिछली टिड्डे की गतिविधि के हवाले से वास्तविक निगरानी और मौसम संबंधी आंकड़ों का उपयोग करके कठोर परीक्षण किया गया है। यह सरकारों और संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा रेगिस्तानी टिड्डे के झुंडों की निगरानी, पूर्व चेतावनी और प्रबंधन की जानकारी देगा।
शोध पत्र में शोधकर्ताओं के हवाले से कहना है कि जिन देशों ने कई सालों में टिड्डेों का सामना किया है, वे अक्सर प्रतिक्रिया देने के लिए तैयार नहीं होते हैं, उनके पास आवश्यक निगरानी दल, विमान और कीटनाशकों की कमी होती है। क्योंकि जलवायु परिवर्तन टिड्डेों के झुंडों की आवाजाही और फैलने को बदलता है, इसलिए बेहतर योजना की जरूरत पड़ती है, जिससे नया मॉडल समय पर विकसित हो सके।