कृषि

खरीफ फसल की एमएसपी से क्यों खुश नहीं हैं किसान संगठन

DTE Staff

1 जून को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने खरीफ सीजन 2020-21 के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि को मंजूरी दी, लेकिन किसान संगठन इससे खुश नहीं हैं। किसान संगठनों का कहना है कि सरकार ने खरीफ सीजन की मुख्य फसल धान के समर्थन मूल्य में पिछले पांच साल के मुकाबले सबसे कम वृद्धि की है।

भारतीय किसान यूनियन द्वारा 2 जून को जारी बयान में कहा गया कि सरकार ने वर्ष 2016-17 में धान के समर्थन मूल्य में  4.3 प्रतिशत की वृद्धि की थी, जबकि उसके बाद 2017-18 में 5.4 प्रतिशत, 2018-19 में 12.9 प्रतिशत, 2019-20 में 3.71 प्रतिशत वृद्धि की गयी, लेकिन वर्तमान सीजन 2020-21 में यह पिछले पांच वर्षों की सबसे कम केवल 2.92 प्रतिशत वृद्धि है।

इस पर नाराजगी जताते हुए भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि एक बार फिर सरकार ने महामारी के समय आजीविका के संकट से जूझ रहे किसानों के साथ भद्दा मजाक किया है। इससे पहले आर्थिक पैकेज के नाम पर सरकार ने किसानों के साथ मजाक किया था।

उन्होंने कहा कि यह देश का भंडार भरने वाले और खाद्य सुरक्षा की मजबूत दीवार खड़ी करने वाले किसानों के साथ धोखा है। एक ओर जहां सरकार दावा कर रही है कि किसानों को लागत मूल्य से डेढ़ गुणा अधिक एमएसपी दिया गया है, वहीं टिकैत ने कहा कि यह कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा तय की गई लागत के बराबर समर्थन मूल्य नहीं है।

टिकैत ने कहा कि किसानों को कुल लागत सी2 पर 50 प्रतिशत जोड़कर बनने वाले मूल्य के अलावा कोई मूल्य मंजूर नहीं है। सरकार महंगाई दर नियंत्रण करने के लिए देश के किसानों की बलि चढ़ा रही है। इसी किसान के दम पर सरकार कोरोना जैसी महामारी से लड़ पायी है। इस महामारी में खाद्य पदार्थों की आपूर्ति का नहीं मांग का संकट बना हुआ है।

उन्होंने बताया कि सरकार द्वारा घोषित धान के समर्थन मूल्य में प्रत्येक कुन्तल पर 715 रुपये का नुकसान है। ऐसे ही एक कुन्तल फसल बेचने में ज्वार में 631 रुपये, बाजरा में 934रुपये, मक्का में 580 रुपये, तुहर/अरहर दाल में 3603 रुपये, मूंग में 3247 रुपये, उड़द में 3237 रुपये, चना में 3178 रुपये, सोयाबीन में 2433 रुपये, सूरजमुखी में 1985 रुपये, कपास में 1680 रुपये, तिल में 5365 रुपये का नुकसान है।

टिकैत ने कहा कि सरकार किसानों काे बताए कि आखिर इस वृद्धि के लिए कौन सा फार्मूला अपनाया गया। भाकियू की मांग है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को भी कानून बनाया जाए। न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर खरीद करने वाले व्यक्ति पर अपराधिक धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जाए।