राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के 77वें दौर के ‘परिवारों की भूमि व पशुधन संपत्ति और खेती पर निर्भर परिवारों की स्थिति का आकलन’ नामक सर्वेक्षण में पाया गया कि ज्यादातर भारतीय किसान अपनी फसल स्थानीय बाजारों में बेचते है। सरकारी एजेंसियों और कृषि उत्पाद बाजार समिति यानी एपीएमसी में तुलनात्मक तौर पर वे अपनी फसलों का काफी कम हिस्सा बेचते हैं।
किसान धान, गेंहू और अरहर दाल समेत सर्वे में शामिल 18 प्रकार की फसलों का 55 से 93 फीसद स्थानीय बाजारों में बेचते हैं। वहीं दूसरी ओर, फसलों के बेचने की यह मात्रा कृषि उत्पाद बाजार समिति में तीन से 22 फीसद और सरकारी एजेंसियों में दो से 14 फीसद ही है। खास बात यह है कि लगभग सभी तरह की फसलों को बेचने के लिए ज्यादातर किसान स्थानीय बाजारों को वरीयता देते हैं।
उदाहरण के लिए धान की फसल को लें। किसान धान की अपनी कुल उपज का 75.1 फीसद स्थानीय बाजारों में बेचते हैं, जबकि सरकारी एजेंसियों और कृषि उत्पाद बाजार समिति को मिलाकर यह मा़त्रा 10.5 फीसद है। जहां तक गेंहू का सवाल है, किसान इसकी कुल उपज का 66 फीसद स्थानीय बाजारों में जबकि सरकारी एजेंसियों और कृषि उत्पाद बाजार समिति में किसान कुल मिलाकर 26 फीसद गेहूं बेचते है।
ऐसी फसलों में धान, गेहूं और गन्ने का शेयर सबसे ज्यादा है, जिन्हें किसान सरकारी एजेंसियों और कृषि उत्पाद बाजार समिति में बेचते हैं, इसकी वजह यह है कि ये फसलें न्यूनतम समर्थन मूल्य के दायरे में आती हैं और इन्हें खरीदने के लिए सुसंगठित चैनल पहले से बने हैं।
जहां तक दालों के बेचने का सवाल है, किसान आमतौर पर स्थानीय बाजारों को वरीयता देते है। किसान अरहर दाल की कुल उपज का 68 फीसद स्थानीय बाजारों में और 22 फीसद कृषि उत्पाद बाजार समिति में बेचते हैं। सरकारी एजेंसियों में किसान अरहर दाल की उपज का महज 1.7 फीसद ही बेचने जाते हैं।
मूंग दाल के मामले में तो स्थानीय बाजारों की भागेदारी और भी ज्यादा है। किसान इसकी कुल उपज का 93 फीसद यहीं बेचना पसंद करते हैं जबकि कृषि उत्पाद बाजार समिति और सरकारी एजेंसियों में लगभग पांच फीसद किसान ही फसल बेचते हैं।
सवाल यह है कि क्या स्थानीय बाजारों में अपनी फसलें बेचकर किसान संतुष्ट हैं? यह ऐसा सवाल है, जिसका जवाब राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने खुद भी तलाशने का प्रयास किया है। नतीजे बताते हैं कि ज्यादातर किसान इससे ‘संतुष्ट ’ हैं।
इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि स्थानीसय बाजारों में मिलने वाली कीमत को किसान अपनी फसल की लागत निकल आने के तौर पर भी देखते हैं। उदाहरण के लिए धान की फसल के मामले में लगभग 59 फीसद किसान स्थानीय बाजार में मिलने वाली कीमत से संतुष्ट हैं जबकि गेंहू मामले में यह अनुपात 66.2 फीसद हैं।
दूसरी ओर दालों के मामलों में संतुष्टि का स्तर अन्य फसलों की तुलना में कम है। उड़द दाल के मामले में केवल 40 फीसद किसान स्थानीय बाजार में मिलने वाली कीमत से संतुष्ट हैं जबकि अरहर दाल को लेकर 51 फीसद किसानों ने कीमत पर संतोष जाहिर किया।
संतुष्टि का यह स्तर दिखाता है कि बड़ी तादाद में किसान फसलों की बिक्री से मिलने वाली कीमत से खुश नहीं हैं। धान के मामले में 41 फीसद किसानों ने माना कि वे बिक्री की कीमतों से संतुष्ट नहीं हैं। इस असंतोष के क्या कारण हो सकते हैं ?
सर्वेक्षण में इसके लिए पांच कारणों की पहचान की गई, ये हैं: बाजार के मूल्य से कम कीमत, भुगतान में देरी, उधार लिए गए कर्ज का पैसा काट लेना, नापतौल और निर्धारण प्रक्रिया में खामी और अन्य। इन पांचों में ‘बाजार के मूल्य से कम कीमत’ सबसे प्रभावी कारण है, जिसकी वजह से किसान स्थानीय बाजारों में फसलों की बिक्री से संतुष्ट नहीं हैं। धान के मामलों में भी 37.1 किसानों ने माना कि यही वजह सबसे ज्यादा प्रभावी है।