कृषि

चिंताजनक: लवणीय हो चुकी है दुनिया की 83.3 करोड़ हेक्टेयर से ज्यादा भूमि

Lalit Maurya

दुनिया की करीब 83.3 करोड़ से ज्यादा भूमि खारेपन यानी लवणता की अधिकता से प्रभावित हो चुकी है जोकि इस धरती करीब 8.7 फीसदी हिस्सा है। इनमें से ज्यादातर भूमि अफ्रीका, एशिया और दक्षिण अमेरिका में प्राकृतिक रूप से शुष्क या अर्ध-शुष्क वातावरण में पाई जाती है। यह जानकारी खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा जारी खारेपन से प्रभावित भूमि के वैश्विक मानचित्र (जीएसएएसमैप) में सामने आई है।

अनुमान है कि दुनिया भर के सभी महाद्वीपों में सिंचित भूमि का करीब 20 से 50 फीसदी हिस्सा इतना खारा हो गया है कि वो अब पूरी तरह से उपजाऊ नहीं बचा है, जिसके कारण, उन जमीनों पर निर्भर लगभग 150 करोड़ लोगों के लिए गम्भीर चुनौतियां पैदा हो गई हैं।

बढ़ते खारेपन के चलते ये जमीनें कम उपजाऊ हो गई हैं और उनकी उत्पादकता घट चुकी है, जिसके कारण दुनिया भर में भुखमरी और निर्धनता के खिलाफ जो प्रयास किए जा रहे हैं, उनपर खतरा पैदा हो गया है। इन जमीन में पानी की गुणवत्ता के साथ जैव विविधता भी घटती जा रही है, जिससे भूमि का क्षय बढ़ रहा है।   

खाद्य व कृषि संगठन को उम्मीद है कि नए मानचित्र, 118 देशों और सैकड़ों डेटा शोधकर्ताओं को साथ लेकर चलने वाली इस परियोजना के जरिए नीति-निर्माताओं को कहीं ज्यादा बेहतर जानकारी उपलब्ध हो सकेगी। यह जानकारी विशेषतौर पर बदलती जलवायु से निपटने और सिंचाई परियोजनाओं के लिए सार्थक और फायदेमंद साबित होगी। 

इस मानचित्र व उससे जुड़ी रिपोर्ट को 20 अक्टूबर को "खारेपन से प्रभावित जमीनों पर हुई वैश्विक संगोष्ठि” में जारी किया गया था। 22 अक्टूबर 2021 तक चलने वाली इस संगोष्ठि में पांच हजार से ज्यादा विशेषज्ञों ने शिरकत की थी।  इस कार्यक्रम में विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन के महानिदेशक क्यू डोंग्यू ने बताया कि कृषि आधारित खाद्य प्रणालियों को और ज्यादा कुशल, समावेशी, बेहतर और टिकाऊ बनाने के लिए बदलाव के नए तरीकों और उससे जुड़े नए रास्तों को खोजना होगा।

सदी के अंत तक 23 फीसदी तक बढ़ सकता है शुष्क भूमि का दायरा

एफएओ के अनुसार यह सही है कि यह जमीनें प्राकृतिक रूप से शुष्क या अर्ध-शुष्क वातावरण में पाई जाती हैं पर बढ़ते खारेपन के लिए मानव गतिविधियां भी जिम्मेदार हैं। इन जमीनों को ठीक तरह से प्रबंधित न करने, खाद व उर्वरकों का बहुत ज्यादा या गलत तरीके से उपयोग, वनों का आभाव और समुद्रों के बढ़ते जलस्तर के चलते इनमें लवणता बढ़ रही है। 

वैज्ञानिकों की मानें तो इसके लिए कुछ हद तक जलवायु परिवर्तन भी जिम्मेवार है। अध्ययनों से पता चला है कि सदी के अंत तक शुष्क भूमि का दायरा 23 फीसदी तक बढ़ सकता है, जिसका ज्यादातर हिस्सा विकासशील देशों में होगा। 

एफएओ के अनुसार जैसे-जैसे भूमि में पानी में घुलनशील नमक और सोडियम की मात्रा बढ़ रही, वैसे-वैसे वैश्विक स्तर पर खारेपन का जोखिम भी बढ़ रहा है। ऐसे में इस समस्या से निपटने के लिए अनेक तरह के उपकरणों और संसाधनों की जरुरत है। इसमें भूमि प्रबंधन के शाश्वत तरीकों को अपनाना और उसके बारे में जागरूकता फैलाना, साथ ही नई तकनीकों को बढ़ावा देने से लेकर मजबूत राजनैतिक प्रतिबद्धता तक शामिल है। 

 देखा जाए तो एसडीजी के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए स्वस्थ और उपजाऊ जमीन का होना अनिवार्य है। यही नहीं उपजाऊ जमीनें एफएओ के चार मुख्य सिद्धांतों के लिए भी आधार प्रदान करती हैं। जिनमें बेहतर उत्पादन, पोषण, एक बेहतर पर्यावरण और बेहतर जीवन शामिल है, जिससे सभी को साथ लेकर आगे बढ़ा जा सके। ऐसे में जमीनों में बढ़ते लवणीकरण को रोकना, जलवायु परिवर्तन और इकोसिस्टम की बहाली के बारे में जानकारी व ज्ञान को साझा करना भी अत्यंत जरुरी है।