कृषि

किसानों के विरोध के बाद कपास का समर्थन मूल्य मिलेगा

कपास मिल मालिक किसानों की अनुपस्थिति में नमी की मात्रा मापकर न्यूनतम समर्थन मूल्य देने से इंकार कर देते थे

Anil Ashwani Sharma

महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में कपास मिल मालिकों की मनमानी का विरोध कर रहे किसानों की बात मान ली गई है। अब किसानों द्वारा गठित एक समिति द्वारा कपास में नमी की मात्रा मापी जााएगी। इस मौके पर कॉटन कारपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) के अधिकारी भी शामिल होंगे। 

महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के कपास उत्पादक सभी 11 जिलों के किसान पिछले एक सप्ताह से इस बात का विरोध कर रहे थे कि मिल मालिक मिल के अंदर कपास की नमी मापते हैं और किसानों को उस वक्त दूर रखा जाता है। बाद में, किसानों को गुमराह करके उन्हें औने-पौने भाव लेने के लिए मजबूर करते हैं। किसानों के साथ नेशनल एलायंस ऑफ पीपुल्स मूवमेंट के कार्यकर्ता भी शामिल हो गए तो आंदोलन ने जोर पकड़ लिया। किसानों ने बताया कि नमी का बहाना बनाकर उन्हें कभी भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नहीं दिया जाता। 

एनएपीएम की समन्वयक मेधा पाटकर ने डाउन टू अर्थ को बताया कि लगभग एक सप्ताह के विरोध के बाद सीसीआई के अधिकारियों ने हमें भरोसा दिलाया है कि किसानों के साथ मनमानी नहीं होगी और नमी की मात्रा को सही तरीके से मापा जाएगा, ताकि किसानों को एमएसपी दिलाया जा सके। 

मेधा ने कहा कि पूरे देश के किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य के अधिकार को लेकर आंदोलित हैं। पांच नवंबर से देशव्यापी आंदोलन शुरू होंगे। महाराष्ट्र के प्रमुख कपास उगाने वाले जिलों के किसानों को भी एमएसपी नहीं मिल रहा है। एमएसपी 5800 रुपए है, जबकि किसानों को 4,000 रुपए से लेकर 4,800 सौ रुपए प्रति क्विंटल की दर से कपास बेचनी पड़ रही है। 

मेधा ने बताया कि वैसे तो हमारे साथी कई जिलों में मिल्स मालिकों  के पास गए लेकिन मैं स्वयं नंदूरबाद जिले में किसानों के साथ एक मिल पर गई। यहां भी अन्य जिलों की तरह किसानों को  न्यूनत समर्थन मूल्य नहीं दिया जा रहा है। जिले की शाहदा तहसील आदिवासी बाहुल है और यहां पर कपास की आठ मिलें हैं। ये ही इस तहसील में हुई कपास को खरीदती हैं। मेधा पाटकर और कपास उगाने वाले आदिवासी किसान तहसील में मौजूद आठ मिलों में से एक मिल मित्तल मिल विरोध दर्ज करने के लिए पहुंचे। लेकिन यहां पर किसानों द्वारा लाई गई कपास की नमी को हमेशा की तरह अधिक बता कर कम मूल्य देने  की बात कहीं गई।

ऐसे में मित्तल फाइबर पर किसानों के पहुंचने पर मिल के कर्मचारियों ने कपास में कितनी नमी इसे नापने के लिए लिए एक मशीन का उपयोग किया। लेकिन यहां सबसे बड़ी चतुराई यह है  कि यह मशीन किसानों के सामाने कपास की नमी की मापजोख नहीं करती बल्कि उसे मिल के अंदर ले जाकर किसानों की लाई कपास की नमी मापी जाती है। ऐसे में यह अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि यह मशीन कितनी पारदर्शी है।

मेधा ने बताया कि हमने इस संबंध में जब किसानों के साथ मिल मालिकों से मिले तो हमने कहा आपकी मनमानी अब नहीं चलेगी। आपको सरकारी समर्थन मूल्य देना होगा आप इससे मुकर नहीं सकते हैं। वह कहती हैं कि हमें यहां बहुत अधिक मैदानी संघर्ष नहीं करना पड़ा और लगातार संघर्षशील संवाद से ही बात बन गई और 4800 की जगह 5200 रुपए प्रति क्विंटल  देने की बात तय हुई। नवंबर के पहले हफ्ते से सीसीआई के नुमाइंदे जिलों के कपास विक्री केद्रों पर किसानों की निगरानी समिति के साथ बैठेंगे और वे इस बात की जांच करेंगे कपास की नमी कितनी है।