पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर और बाड़मेर जिलों में ऊंटों में त्वचा संबंधी मेंज बीमारी फैल रही है। बीते चार महीनों में दोनों जिलों के कई गांवों में ऊंट पालकों को इस बीमारी से परेशानी हो रही है। कोरोना संक्रमण के चलते हुए लॉकडाउन में ऊंटों का इलाज भी नहीं हो पा रहा है। स्थानीय भाषा में मेंज को ग्रामीण ‘पॉ’ बीमारी कहते हैं। मेंज के साथ ही ऊंटों में सर्रा तिबरसा रोग की भी पुष्टि हो रही है। इससे पशुपालकों में भय व्याप्त हो गया है।
यह बीमारी जैसलमेर जिले के करड़ा, पोछिणा, मसूरिया, लुणार, गूंजनगढ, बिंजराज का तला, सम, खाभा, मिठड़ाऊ और बाड़मेर जिले के सुंदरा, पांचला, केरला, रोहिणी ,समद का पार, जैसिंधर, अकली, तामलोर और मुनाबाव में फैल रही है।
जैसलमेर के सम पंचायत समिति के सांवता गांव में रहने वाले ऊंट पालक सुमेर सिंह भाटी 400 ऊंटों के मालिक हैं। भाटी श्री देगराय उष्ट्र संरक्षण एवं दूध विपणन विकास सेवा समिति के नाम से एक सोसायटी भी चलाते हैं। वे बताते हैं कि, “फरवरी से क्षेत्र के ऊंटों में मेंज (पॉ) बीमारी फैलनी शुरू हुई। मेरे 170 ऊंटों में ये बीमारी फैल चुकी है। 15 ऊंटनियों की अब तक मौत हो गई है। बीमारी के कारण ऊंटनियों की दूध देने की क्षमता भी कम हुई है। बीमार ऊंटनी 7 लीटर की जगह अब सिर्फ 4 लीटर दूध ही दे रही है।”
भाटी आगे बताते हैं, “ऊंटों में इस बीमारी के लिए एरोमैटिक नाम का टीका लगता है। लॉकडाउन के कारण ये टीका कहीं मिल नहीं रहा। सरकारी अस्पतालों में भी ये टीका उपलब्ध भी नहीं है। कोरोना संक्रमण के चलते सरकारी पशु अस्पतालों में डॉक्टर भी नहीं हैं। बीमारी के कारण ऊंटनियां दूध भी कम दे रही हैं।”
बता दें कि अकेले जैसलमेर में 40 हजार से ज्यादा ऊंटनियां हैं। भाटी का दावा है कि मेंज के कारण बड़ी संख्या में ऊंटनियों की मौत हो चुकी है। पशुपालक देसी नुस्खों से अपने पशुओं को बचाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं हो रहा।
राजस्थान पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, बीकानेर में प्रोफेसर डॉ. अनिल कटारिया से इस संबंध में डाउन-टू-अर्थ ने बात की। वे बताते हैं, “मेंज जानवरों में होने वाली साधारण बीमारी है। इसे साधारण भाषा में खुजली या दाद से समझा जा सकता है। ये शरीर में रहने वाले पैरासाइट्स हैं जो ज्यादा संख्या में होने पर बीमारी का रूप लेते हैं। हालांकि इससे पशुओं में मौत की दर कम होती है, लेकिन अगर ज्यादा वक्त तक बीमार रहे तो मौत भी हो जाती है।”
नरेंद्र सिंह सोढा के चार ऊंट बीते एक महीने से बीमार हैं। जैसलमेर जिले में सम तहसील के लूनाण पंचायत के रतनसिंह की ढाणी में रहने वाले नरेन्द्र बताते हैं कि लॉकडाउन के कारण बाहर नहीं जा सकते। पशुपालन विभाग में फोन किया, लेकिन कोई मदद नहीं मिल सकी।
राजस्थान पशुपालन विभाग के एडिशनल डायरेक्टर (हेल्थ) डॉ. भवानी सिंह राठौड़ ने कहा कि कोरोना के कारण ना तो अस्पताल बंद हैं और ना ही डॉक्टर छुट्टी पर हैं। हो सकता है कि उन इलाकों में डॉक्टर का पद खाली हो। मैं टीम भिजवा कर पता करता हूं।
उष्ट्र विकास योजना का पैसा भी नहीं दे रही सरकार
पशु पालकों का कहना है कि एक ओर तो ऊंटों में बीमारी फैल रही है, दूसरी ओर कोरोना संक्रमण के चलते नकदी का संकट खड़ा हो गया है। राजस्थान सरकार ने ऊंट तो राज्य पशु का दर्जा दिया, लेकिन उष्ट्र विकास योजना में दिए जाने वाली 10 हजार रुपए की राशि को बंद कर दिया है। सुमेर सिंह भाटी को नवंबर के बाद यह राशि नहीं मिली है। यदि सरकार यह पैसा दे देती तो ऊंटों के इलाज में काम आती।
बता दें कि ऊंटों की संख्या और प्रजनन को बढ़ावा देने के लिए 2016 में उष्ट्र विकास योजना शुरु की गई थी। इस योजना के तहत ऊंट पालकों को ऊंटनी के ब्याहने पर टोडरियों (ऊंटनी के बच्चे) के रख-रखाव के लिए तीन किश्तों में 10 हजार रुपए सरकार की ओर से दिए जाते हैं। योजना पर चार साल में 3.13 करोड़ रुपए खर्च होने थे। टोडरिया के पैदा होने पर तीन हजार, नौ महीने का होने पर तीन हजार और फिर 18 माह की उम्र होने पर चार हजार रुपए देय होते हैं।
अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है राज्य पशु ऊंट
ऊंट राजस्थान का राज्य पशु है और देश में सबसे ज्यादा ऊंट प्रदेश में ही हैं। बीते कुछ सालों में अवैध शिकार, बीमारी और उपयोगिता में कमी आने के कारण इनकी संख्या लगातार कम हो रही है। 2012 पशु गणना के अनुसार राज्य में 3, 25, 713 ऊंट थे। जो 2019 में घटकर 2,12,739 ही रह गए हैं। राजस्थान ऊंटों की संख्या के मामले में देश में पहले नंबर पर है। भारत में 2012 में जहां 4,00,274 ऊंट थे वे अब घटकर 2,51,956 ही रह गए हैं। आंकड़े बताते हैं कि देश के 84 फीसदी ऊंट राजस्थान में हैं। चिंता की बात यह है कि राजस्थान में ही ऊंटों पर सबसे ज्यादा संकट गहरा रहा है।